अबरार अहमद खान/मुकीज़ खान, भोपाल (मप्र), NIT:
श्रमिक जनता संघ के नेतृत्व में खरगोन जिले की सेंचुरी मिल को अवैधानिक तरीके से ओने पौने दाम पर बेचे जाने तथा स्टांप चोरी सहित मजदूरों के हकों पर कुठाराघात किए जाने के खिलाफ आज सेंचुरी के सैकड़ों श्रमिक इंदौर आए और उन्होंने श्रम आयुक्त और संभागायुक्त कार्यालय के समक्ष सुबह 10:00 बजे से उपवास शुरू किया। उनकी भूख हड़ताल का नेतृत्व मेधा पाटकर कर रही थी। इंदौर के भी विभिन्न संगठनों ने रामस्वरूप मंत्री, प्रमोद नामदेव, बबलू जाधव, लखन सिंह डाबी, जयप्रकाश गुगरी, मुकेश चौधरी, मोहम्मद अली सिद्धकी, डीएस मिश्रा सहित कई नेताओं के नेतृत्व में पहुंचकर आंदोलन को समर्थन दिया।
भूख हड़ताल के दौरान ही संभागायुक्त श्री पवन कुमार शर्मा से आंदोलनकारियों का 10 सदस्य प्रतिनिधि मंडल मुलाकात करने पहुंचा और उन्हें सिलसिलेवार तरीके से सेंचुरी के श्रमिकों की समस्याओं से अवगत कराया। फर्जी तरीके से मिल की बिक्री किए जाने, हाई कोर्ट में लगातार सुनवाई को टाले जाने, श्रम आयुक्त अधिकारियों द्वारा सेंचुरी के श्रमिकों के साथ न्याय नहीं करने और कोर्ट के निर्णय की जानकारी देते हुए मांग की कि मजदूरों के हकों पर कुठाराघात करने वाले पर कार्रवाई हो तथा औद्योगिक क्षेत्र में अशांति ना फैले ऐसी व्यवस्था की जाए। आधे घंटे तक संभागायुक्त ने ध्यान से सभी समस्याओं को सुना। विभिन्न आदेशों को जिसमें हाई कोर्ट और ट्रिब्यूनल के आदेश भी थे उनको भी देखा तथा कहा कि इस संबंध में वे राज्य शासन से और अन्य अधिकारियों से चर्चा करेंगे तथा 10 दिन बाद फिर मीटिंग करेंगे। इसी बैठक में नर्मदा बचाओ आंदोलन संबंधी तथा संत्राटी स्थित मराल ओवरसीज कंपनी के मजदूरों की समस्याओं से भी संभागायुक्त को अवगत कराया। संभागायुक्त ने विश्वास दिलाया है कि वह मजदूरों की हर संभव समस्या हल करने की कोशिश करेंगे। तय हुआ है कि 19 अप्रैल को दोपहर 12:00 बजे फिर संभागायुक्त के साथ त्रिपक्षीय मीटिंग होगी। जिसमें समस्या का समाधान खोजा जाएगा। संभागायुक्त से हुई मीटिंग में मेधा पाटकर के अलावा रामस्वरूप मंत्री, कमल गुप्ता, संजय चौहान, देवीलाल, दुर्गेश खवसे, संतोष गुप्ता, राजेश खेते, सुखेंद्र मढैया, बबलू यादव, प्रमोद नामदेव आदि शामिल थे।
मेधा पाटकर का सवाल – मध्यप्रदेश में क्यों नहीं मिल रहा है मजदूरों को न्याय
धरना स्थल पर ही पत्रकारों से चर्चा करते हुए श्रमिक जनता संघ की अध्यक्ष तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने सवाल उठाया कि मध्य प्रदेश में श्रमिकों को न्याय क्यों नहीं मिल रहा? उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करने के कारण मजदूरों के हकों पर कुठाराघात हो रहा है।
राज्य शासन श्रम मंत्रालय और श्रम आयुक्त श्रमिकों के हित में, हर श्रम कानून का पालन करवाने में कार्यरत नहीं दिखाई दे रहे हैं। जबकि देशभर बेरोजगारी चोटी पर पहुंचने पर बहस जारी है, तब भी मध्यप्रदेश में एक-एक उद्योग में श्रमिक, अवैध रूप से हो रही छटनी और ठेका मजदूरी, स्वैच्छिक नहीं, अनैच्छिक रुप से थोपी जा रही निवृत्ति और वीआरएस की नगद राशि देकर बेरोजगारी अन्यायपूर्ण है। कई उद्योगपति श्रमिक संगठनों से संवाद नकारते हैं तो श्रम आयुक्त कार्यालय या जिला स्तरीय श्रम पदाधिकारी कार्यालय का फर्ज बनता है कि उद्योगपति और श्रमिकों के बीच बैठक बुलाकर समझौता याने रास्ता निकालने की प्रक्रिया चलाना और निराकरण नहीं होने पर उसे औद्योगिक ट्रिब्यूनल को न्यायिक प्रक्रिया के लिए सौपना। आज, मध्य प्रदेश में इस तरह की प्रक्रिया को टालना, ‘विवाद को नकारना होता है’ तो श्रम न्यायालय को प्रदेश की शासन की ओर से, उठानी है उस जिम्मेदारी को अधिकतर टाला जा रहा है । यह औद्योगिक विवाद अधिनियम की ही नहीं, श्रमिक- मालिक के बीच का रिश्ता और औद्योगिक क्षेत्र में स्थिति कानून और व्यवस्था के तहत शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण बनी रहे, इस उद्देश्य की ही अवमानना हो रही है!
[ सेंचुरी यार्न और डेनिम मिल्स का अनुभव यही बताता है। कानून का उल्लंघन कर रही है स्वयं सरकार और उद्योगपतियों को फर्जीवाड़े के बावजूद पुरस्कृत कर रही है ।।
मराल ओव्हारसिज लिमिटेड का किस्सा तो और ही है । उनकी ओर से करीबन 80% श्रमिक,हमारे ” श्रमिक जनता संघ “के सदस्य बन जाते हुए भी प्रबंधक मीटिंग करना ही नामंजूर करते हैं। इस अवस्था में ,अंदरूनी विवाद है ही, तो नई यूनियन के सदस्यों का भी सम्मान नहीं, अवमानना ही होती है। ऐसे कई उदाहरण होते हुए भी श्रम आयुक्त कार्यालय, श्रम पदाधिकारी या श्रमिक न्यायालय (लेबर कोर्ट) से भी या तो सुनवाई नहीं होती क्योंकि शासन तथा कंपनी अपनी जवाब ही पेश नहीं करती, या तो शिकायत आगे बढ़ने ही नहीं दी जाती!
मेधा पाटकर रामस्वरूप मंत्री प्रमोद नामदेव और संजय चौहान ने कहा कि इसमें आजादी के बाद बने ,आज तक लागू रहे, कानूनों की पूर्णताहा अवमानना होती है। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, आजादी के बाद बने प्रथम श्रम कानून की, ट्रेड यूनियन एक्ट की,
[ तथा ठेका मजदूर कानून या स्थलांतरित मजदूर कानून का भी उल्लंघन स्पष्ट नजर आता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और गांव स्तर की आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से ग्राम विकास की कोई प्रक्रिया नहीं चलती है, कई परियोजनाओं से ही नहीं, शहरीकरण और औद्योगीकरण की चाल चलते हुए, आदिवासियों और अन्य किसानों को भी ललचा कर तथा उधारी की राशि देकर शहरों, उद्योगों में लाया जाता है तो उससे भी होता है विस्थापन! किसानों की ही जमीन लेकर, खेती को गैर खेती- उद्योगों में लगाकर जबकि रोजगार दिया जाता है तो वह भी छीनने की साजिश से और अवैध और अन्याय पूर्ण ,अत्याचारी भी होते हुए, शासक प्रशासक श्रमिकों के नहीं ,उद्योगपति के पक्ष में ही पेश आते हैं।
हम देख रहे हैं कि मध्यप्रदेश के बड़वानी, धार, अलीराजपुर क्या, जिले जिले के आदिवासियों को गाड़ियां भर भर के ले जाते हैं, अन्य राज्यों के ठेकेदार जो उन्हें शोषण करके, रात बेरात काम करवाके, बच्चों, बहनों तक भूखे और बीमार रखते हुए ,बंधक भी बनाते हैं। गांव में मनरेगा में भ्रष्टाचार और सही तथा समय पर मजदूरी का भुगतान न करते हुए अत्याचार भुगतनेपर …तो स्थलांतर के बाद भी वही होता है अनुभव!! इसमें भी मध्य प्रदेश की शासन व्यवस्था, विशेषत: श्रम मंत्रालय के अधिकारी, आंतर राज्य स्थलांतरित मजदूर कानून,1979 का पालन नहीं करते…!!. हमें ही आदिवासी बड़े-बूढ़े, बच्चों, महिला, युवा- मजदूरों को छुड़वा कर लाने की जंग छेड़नी पड़ती है।
इन तमाम स्थितियों में सेंचुरी जैसे उद्योगों के श्रमिक ‘श्रमिक अधिकार के लिए अहिंसक सत्याग्रही बनकर 2000 दिनों तक संघर्ष जारी रखते हैं और कानूनी लड़ाई भी ‘श्रमिक जनता संघ’ जैसे ,आजादी आंदोलन से उभरे श्रमिक संगठन को नकारना चाहते हैं।। हमारा ट्रेड यूनियन के नाते अवकाश और अधिकार, श्रमिकों का जीने का और आजीविका का अधिकार आजादी के बाद उभरे 44 कानूनों में से 29 केंद्रीय कानूनों को निरस्त करके, चार कमजोर कानून लाने की भी साजिश होती है तो हमें सविधान बचाने, श्रमिकों के सम्मान में ,सत्याग्रह जारी रखना पड़ता है।। आज देशभर के करीब 50 संगठनों ने हमारे समर्थन में शासन को चेतावनी दी है।
श्रमिक जनता संघ मध्य प्रदेश शासन को आज चेतावनी देना चाहता है कि वह तत्काल श्रम मंत्रालय का कारोबार भ्रष्टाचार मुक्त करे,नही तो शासन को श्रमिक विरोधी मानकर हम जरूर चुनौती देंगे।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.