नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

अक्टूबर-नवंबर 2020 के दौरान पार्टी संगठन को मजबूती प्रदान करने की मंशा से जलगांव जिले के हर ब्लॉक में कार्यकर्ता सम्मेलन कर अपना दायित्व निभाने वाले तत्कालीन तथा वर्तमान NCP प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल आज 29 महीनों बाद उसी विषय के लिए फिर से जलगांव पधारे हैं। जिले के पारोला, जलगांव, भुसावल, मुक्ताई नगर, जामनेर में पाटिल ने ब्लॉक स्तर के सभी पार्टी सदस्यों को लेकर बैठक की। जामनेर के एक निजी स्कूल में आयोजित बैठक में एकनाथ खडसे, संजय गरुड़, रोहिणी खड़से, बंगाली सिंह चितोड़िया, संतोष चौधरी, अरविंद चितोड़िया, विलास राजपूत, किशोर पाटील समेत अन्य मान्यवर नेता गण मौजूद रहे। बैठक को गोपनीय करार देते हुए NCP ने इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की। 2020 को जामनेर ब्लॉक में NCP का पार्टी संगठन जहाँ था आज भी ठीक वहीं है उसमें कोई नवीनतम परिवर्तन नहीं देखा गया है, इसी तथ्य को पाटिल ने मेंशन किया कहा कि मार्च 2024 तक पूरे तहसील में बूथ कमेटियां बनकर कार्यान्वित हो जानी चाहिए। MVA सरकार जाने के बाद बीते आठ महीनों में NCP की जामनेर में ब्लाक स्तर की हालत और पतली हो चुकी है। जामनेर में NCP की चुनावी लड़ाई भाजपा के छह टर्म के विधायक और डेढ़ टर्म के मंत्री गिरीश महाजन से है। पुरोगामी विचारधारा की विरासत होने के बावजूद कैडर का अभाव और पार्टी के भीतर की अव्यवस्था के कारण NCP को हर बार इस सीट पर हार का मुंह देखना पड़ता है। नेता संजय गरुड़ के नेतृत्व में आंदोलनो के जरिये सड़कों पर भाजपा के खिलाफ बवाल काटने वाले कई पदाधिकारी अपना भविष्य खोजने के लिए NCP छोड़कर भाजपा में शामिल होते आए हैं। गयाराम वाला यह सिलसिला चुनाव आने के बाद तेज हो जाता है। एकनाथ खडसे जैसे कद्दावर नेता के अनुभवों और छवि के सहारे बिना कैडर के जीत प्राप्त करना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। बहरहाल सहकार क्षेत्र की APMCs में MVA के बैनर तले चुनाव लड़ने का फैसला जिला नेतृत्व की ओर से लिया गया है।
किसानों में असंतोष

कपास के दर वृद्धि की मांग पर बजट सत्र में कोई फैसला नहीं लेने वाली शिंदे फडणवीस सरकार को लेकर किसानों में भारी असंतोष है। मालेगांव में संपन्न सभा में उद्धव ठाकरे ने विनायक सावरकर को अपना भगवान बताते ही सरकार ने राज्य में सावरकर सम्मान यात्रा की घोषणा की। क्या राजनीतिक हलकों में यह स्क्रिप्ट पहले से सेट थी ऐसा सवाल पूछा जाने लगा है। अब सावरकर को लेकर ऊपरी सतह की बहस छिड़ गई है जिससे सावरकर के विषय में व्यापक प्रबोधन होने की कोई गुंजाइश नहीं है। सावरकर सम्मान यात्रा की आड़ में डबल इंजिन सरकार ने किसानों की समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने का प्रासंगिक अवसर पैदा कर लिया है।
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