प्राकृतिक खेती मृदा स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी: डॉ धीरेंद्र मिश्रा. विकास खंड बबीना के ग्राम पलींदा में कृषक वैज्ञानिक ने दी महत्वपूर्ण जानकारी | New India Times

अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी (यूपी), NIT:

प्राकृतिक खेती मृदा स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी: डॉ धीरेंद्र मिश्रा. विकास खंड बबीना के ग्राम पलींदा में कृषक वैज्ञानिक ने दी महत्वपूर्ण जानकारी | New India Times

विकासखंड बबीना के ग्राम पालीदां में बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा के वैज्ञानिक डॉक्टर धीरेंद्र मिश्रा ने किसानों को प्राकृतिक खेती का महत्व, आवश्यकता, इसके प्रमुख लाभ, कैसे प्राप्त करें कि बिंदुवार विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने खेत पर ही किसानों से संवाद करते हुए कहा कि आज के समय प्राकृतिक खेती एवं गो आधारित खेती की बहुत आवश्यकता है क्योंकि लगातार भूमि पर रासायनिक कीटनाशकों तथा खाद का प्रयोग, भूमि को प्रतिवर्ष पलटने से भूमि की उर्वरा शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। उन्होंने किसानों से संवाद करते हुए बताया कि प्राकृतिक खेती वह खेती होती है जिसमें मानव द्वारा निर्मित किसी भी प्रकार का रसायन या कीटनाशक उपयोग में नहीं लाया जाता सिर्फ प्राकृतिक तरीके से निर्मित जिसमें पशुओं के गोबर की खाद, कीट व्याधि के नियंत्रण हेतु औषधीय पौधों के अर्क का उपयोग होता है, किसी भी तरह के कृषि रसायन का उपयोग वर्जित है। यह खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है, इसके लिए किसान के पास कम से कम एक देसी गाय होनी चाहिए ताकि जरूरत के मुताबिक गोबर एवं गोमूत्र का संग्रह किया जा सके। घर के आसपास उपलब्ध सामग्री द्वारा गोबर की खाद जीवामृत, बीजामृत, घन जीवामृत कीटनाशक दस पर्णीय अर्क एवं संजीवक बनाकर फसलों में इनका इस्तेमाल कर सकें। इसके अतिरिक्त इसमें पेड़ पौधों के पत्तों की खाद, पशुपालन गोबर खाद उपयोग में लाया जाता है, यह एक प्रकार से विविध प्रकार की कृषि प्रणाली है जो फसलों और जीव जन्तु पेड़ों को एकीकृत करके रखती है। उन्होंने कृषकों को बताया कि प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में नीम के पत्ते, गाय के गोबर की खाद, जीवाणु खाद, फ़सल के अवशेष और अन्य प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- चूना-मिट्टी आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है और भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। डॉ0 धीरेंद्र मिश्रा ने किसानों से संवाद करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती की आवश्यकता काफी बढ़ रही है, पिछले कई वर्षों से खेतो में उपयोग होने वाले रसायनों कीटनाशकों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ता जा रहा हैं। भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बहुत बदलाव हो रहे है जो हमारे लिए काफी नुकसानदायक होते है। रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है। किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशको में ही चला जाता है।

यदि किसान और अन्य व्यक्ति जो खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए। खेती में खाने पीने की चीजे काफी उगाई जाती है जिसे हम उपयोग में लेते है। इन खाद्य पदार्थों में जिंक और आयरन जैसे कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है।
उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती का महत्व बताते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती (natural farming) कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार खेत पर उपलब्ध या आसपास के पेड़ के पत्तो से कीटनाशक निर्मित कर काम में लिया जाता है। प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में दस पर्णीय अर्क अग्नि अस्त्र, ब्रम्हास्त्र , फ़सल अवशेष कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक कीटणुओं से बचाया जाता है।
उन्होंने बताया कि पिछले कई वर्षों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग है। इसमें लागत भी बढ़ रही है।
भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे है जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं। रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है। किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रेसर होना चाहिए।
उन्होंने बताया कि खेती में खाने पीने की चीजें काफी उगाई जाती है जिसे हम उपयोग में लेते है। इन खाद्य पदार्थों में जिंक और आयरन जैसे कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते है। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जमीन की उर्वरक क्षमता खो रही है। यह भूमि के लिए बहुत ही हानिकारक है और इससे तैयार खाद्य पदार्थ मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा असर डाल रहे है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद उपयोग जरूरी हो गया है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ मिश्रा ने बताया कि प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत है। पहला सिद्धांत है खेतों में किसी भी प्रकार से कोई जोताई नहीं करना। यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को बार बार पलटना। धरती अपनी जुताई स्वयं प्राकृतिक एवम स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश होने वाले केंचुओं व छोटे प्राणियों, जीव तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है। दूसरा सिद्धांत है कि किसी भी तरह की तैयार खाद में रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और हरी पत्तीयो या सूखी पत्तियों को गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।
तीसरा सिद्धांत है, नड़ाई-गुड़ाई न की जाए। न तो हलों से न कीटनाशको के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए और चौथा सिद्धांत रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।
उन्होंने कृषकों को प्राकृतिक खेती के फायदे जानकारी दी और
किसानों की दृष्टि से लाभ बताते हुए कहा कि भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।फसलों की उत्पादकता में वृद्धि। बाज़ार में जैविक उत्पादों (Organic Food) की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है और मिट्टी की दृष्टि से जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा और जलधारण की क्षमता बढ़ती है।
इसके अतिरिक्त पर्यावरण की दृष्टि से भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है।मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।
इस मौके पर श्री अतीक अहमद वैज्ञानिक केवीके, डॉ विमल राज कृषि वैज्ञानिक केवीके, विषय वस्तु विशेषज्ञ सुश्री अल्पना बाजपेई सहित बड़ी संख्या में किसान विशेष रूप से महिला किसान उपस्थित रहे।


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