अतीश दीपंकर, ब्यूरो चीफ, पटना (बिहार), NIT:
बिहार के भागलपुर एसएम कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर व टीएमबीयू के पीआरओ डॉ दीपक कुमार दिनकर ने शुक्रवार को ओडिशा के सम्बलपुर स्थित गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय (जीएमयू) के स्कूल ऑफ पॉलिटिकल साइंस में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) नई दिल्ली द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिन तीसरे तकनीकी सत्र में बतौर वक्ता अपनी बातें रखी।
डॉ दिनकर ने उक्त राष्ट्रीय सेमिनार में ‘भारत में पर्यावरणीय मुद्दे और समावेशी विकास’ पर व्याख्यान दिया।
अपने व्याख्यान में डॉ दीपक कुमार दिनकर ने कहा कि पर्यावरणीय चिंतन आज के समय की सामयिक और जरूरी विमर्श है। पर्यावरण के असंतुलन से मानव जीवन का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है क्योंकि पर्यावरण का सीधा संबंध मानव के जीवन और अस्तित्व से है। साथ ही पर्यावरण मानव जीवन का सबसे बड़ा आधार भी है। आज पर्यावरण की समस्याओं से पूरी दुनिया जूझ रहा है। समावेशी विकास की बातें आज बेमानी साबित हो रही है। छद्म विकास के नाम पर प्रकृति-पर्यावरण का घोर उल्लंघन किया जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। वन समाप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में विश्व के मानव समुदाय के समक्ष एक गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है। उन्होंने कहा कि सरकार को विकास का मॉडल पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर ही बनाना चाहिए। विकास के नाम पर पर्यावरण की क्षति से मानव का जीवन प्रभावित होगा।
डॉ दिनकर ने कहा कि मानव का जीवन मुख्य रूप से जल, जंगल, जमीन और जानवर पर निर्भर है।
इन सभी तत्वों या अवयवों में समन्वय बेहद जरूरी है। यदि इनके बीच अंसतुलन पैदा हुआ तो निश्चित तौर पर इससे मानव का जीवन भी प्रभावित होगा। जिससे मानव का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
राष्ट्रीय सेमिनार में अपनी बात रखते हुए डॉ दिनकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 28 जुलाई 2022 को पर्यावरण की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए इसे पूरी दुनिया और मानव समुदाय के लिए मानवाधिकार घोषित किया है। साथ ही स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार मानवाधिकारों की तीसरी पीढ़ी के दायरे में आता है। जो सामूहिक अधिकार भी है।
उन्होंने कहा कि सतत विकास स्थिरता के तीन स्तंभो पर टिका हुआ है- आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक। यह तीन चीजें इसकी आधारशिला है। पर्यावरणीय स्थिरता का तात्पर्य वायु, जल और जलवायु से है। सतत विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू उन गतिविधियों या उपायों को भी अपनाना है जो स्थायी पर्यावरणीय संसाधनों में मदद कर सके। जिससे ना केवल हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकेंगे बल्कि आने वाली पीढ़ियों की भी आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित कर सकेंगे।
तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ डीके राउत ने की जबकि सह-अध्यक्ष रेवेंशॉव यूनिवर्सिटी उड़ीसा के प्रोफेसर सिवव्रत दास थे। राष्ट्रीय सेमिनार की कन्वेनर डॉ वनिता महानंदिया ने आगत अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया।
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