Edited by Sabir Khan;
अरशद आब्दी, लखनऊ, NIT; रेल मंत्रालय जहां ट्रेन यात्रियों की सुरक्षा पर हर वर्ष करोड़ों-अरबों रुपये खर्च कर रही है, वहीं आरपीएफ व जीआरपी के भ्रष्ट अधिकारी व स्टाफ चंद रुपयों की खातिर यात्रियों की सुरक्षा दांव पर लगा रहे हैं।हम ट्रेनों में सफर के दौरान अक्सर रेलवे स्टेशनों व ट्रेनों में बिना बैच के लोगों को खाने पीने की चीजें व दीगर सामान बेचते हुए देखते हैं जिनमें नाबालिग़ बच्चे भी शामिल होते हैं। अक्सर इन कारोबारियों की वजह से यात्रियों के सामान चोरी होने व जहरखुरानी का शिकायतें सामने आती रहती हैं, फिर भी इन पर अंकुश नहीं लगता है जबकि अंकुश लगाने की जिम्मेदारी आरपीएफ व जीआरपी की है। जाहिर सी बात है कि यह अवैध कारोबार बिना आरपीएफ व जीआरपी की संरक्षण के नहीं चल सकता है। तो सवाल यह पैदा होता है कि इन्हें संरक्षण देने वालों को बदले में क्या मिलता है? अगर बारीकी से इस रैकेट की छानबीन करें तो पता चलता है कि हर अवैध कारोबारी का हफ्ता फिक्स है। यह दस रूपये से लेकर सैकड़ों रूपये तक का होता है। जितने दूर तक माल बेचने की छूट मिलती है उतनी ही रिश्वत की रकम बढ़ती जाती है। यह कारोबार ऐसा है जो किसी से छुपा हुआ नहीं है बल्कि यह खुलेआम चलता है। यहां तक कि अगर पैंट्रीकार वाला ऐतराज करता है तो अवैध कारोबारियों और आरपीएफ व जीआरपी के जवानों के द्वारा धमकाया जाता है। इस मामले में रेल मंत्रालय व स्टेशन मास्टर भी चुप्पी साधे हुए हैं। यह चंद रूपयों की रिश्वतखोरी कुल मिलाकर करोड़ों अरबों रुपयों में पहुंच जाती है। मतलब साफ है कि इस गोरख धंधे में कहीं न कहीं उच्च अधिकारी भी शामिल हैं। जानकारी के अनुसार झांसी रेलवे स्टेशन भी अवैध कारोबारियों का अड्ड़ा बना हुआ है। यहां नकली गुटका वगैरह भी धडल्ले से बिक रहा है जिस पर न तो आरपीएफ कारवाई कर रही है और न ही जीआरपी, यहां तक कि इस मामले में स्टेशन मास्टर भी खामोश हैं।
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