रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
झाबुआ जिले के पेटलावद ब्लास्ट कांड की सातवीं बरसी आज 12 सितंबर को है। जैसे जैसे वर्ष बीतते जा रहे हैं वैसे वैसे ब्लास्ट की घटना को लोग भूलते जा रहे हैं लेकिन जिन लोगों ने अपनों को खोया है उनके घाव अभी तक नहीं भरे हैं और ना ही भर सकते हैं, अपनों को खोने का दर्द को वही जानते हैं किंतु राजनीतिक दावों और वादों के बीच अपनों को खोने का दर्द दब कर रह गया है। ब्लास्ट की घटना में 78 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।
12 सितंबर 2015 कि वह काली सुबह जब सुबह 8:20 पर ब्लास्ट की घटना हुई थी तब पेटलावद के नगर का हर नागरिक उस धमाके की गूंज से स्तब्ध हो गया था। हर कोई घटना स्थल के आसपास एकत्रित होकर घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने लगा था।
चुनावी सरगर्मी में लगे लोग ब्लास्ट की घटना को याद ही नहीं कर पा रहे हैं जिन लोगों ने ब्लास्ट के समय आमजन के विश्वास को तोड़ घटना के जवाबदारों का सहयोग किया वह आज जनता के बीच जाकर वोट की मांग करने का प्रयास कर रहे हैं.
परिजनों को है याद आत्म शान्ति के लिए करा रहे भागवत
ब्लास्ट में अपनी जान गंवाने वाले परिजनों के परिवारों के द्वारा घटना स्थल पर ही भागवत कथा का आयोजन कर मृत आत्माओं की शांति व उनकी मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना की जा रही है. कथा वाचक पंडित नरेन्द्र नंदन दवे ने बताया कि भागवत कथा के माध्यम से मृत आत्माओं को मुक्ति मिलेगी.
वादे रहे अधूरे
सरकार द्वारा किए गए वादों पर कोई अमल आज तक नहीं हो पाया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ब्लास्ट की घटना के बाद 3 दिन तक पेटलावद में ही रुके रहे और ब्लास्ट में जान गंवाने वाले एक एक व्यक्ति के घर तक पहुंचे और उनके परिजनों से कई वादे कर आए लेकिन उन वादों में से कई वादे आज भी अधूरे हैं. कई परिवारों ने अपने घर के मुखिया को खोया, उन्हें नौकरी का वादा किया पर आज तक नौकरी नहीं दी। वहीं नगर वासियों से शिवराज सिंह ने ब्लास्ट पीड़ितों की याद में एक स्मारक बनाने का वादा किया था। किंतु आज तक वह स्मारक कहीं नहीं बन पाया। क्योंकि नगर परिषद में बैठे जनप्रतिनिधि उस स्मारक को बनाने के लिए प्रयास भी नहीं कर सके क्योंकि वह लोगों के दिलो-दिमाग से इस घटना को भुलाना चाहते थे।
नेता लगे चुनावी चक्कर में
अपने चुनावी समीकरणों के चक्कर में नगर के नेता आम जनता के दिलो दिमाग से ब्लास्ट की घटना को भुलाना चाहते हैं और केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं.
इस बार भी ब्लास्ट की बरसी पर केवल परिजन ही श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे या नेताओं को भी पेटलावद के काला दिवस की याद रहेगी.
क्या है घटना
12 सितंबर 2015 की सुबह नगर के नया बस स्टैंड के समीप एक दुकान में छोटा सा धमाका हुआ उसको देखने के लिए कई लोग दुकान की शटर के पास एकत्रित हुए और शटर खोलकर पानी डालकर उस धमाके की आग को बुझाने की कोशिश करने लगे लेकिन शटर खोलने के पहले ही दूसरा बड़ा धमाका हुआ उसमें वहां उपस्थित सभी लोगों के चीथड़े उड़ गए, यहां तक की पास में होटल पर नाश्ता कर रहे हैं कई लोग भी इस धमाके के शिकार हुए वहीं गुजरात का एक परिवार जो नाश्ते के लिए रुका था उसके भी दो-तीन परिजन इस घटना में मृत हुए वहीं मकान मालिक के परिवार के 4 सदस्य की भी इस घटना में मारे गए.
घटना के मुख्य आरोपी रहे राजेन्द्र कासवा इस घटना में मृत हुआ या कहीं चला गया यह आज तक राज ही रहा है. उस काले दिन पेटलावद में एक साथ 32 लाशों को जलते हुए देखा गया था वह दर्द आज भी लोगों के सीनों में जिंदा है किंतु राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले नेताओं ने उस दर्द को भुला दिया है और केवल अपने हितों के लिए इस घटना को इतिहास के पन्नों में बंद कर दिया है.
वैसे जिस स्थान पर ये विभत्स हादसा हुआ है उससे कुछ दूरी पर चौराहा है और घटना से पहले ये सिर्फ चोराहा था उसके बाद इसका सौंदर्यीकरण करते हुए नामकरण अहिंसा सर्कल किया गया लेकिन हादसे के बाद आक्रोशित जनता ओर पीड़ित परिजनों ने इसे श्रद्गांजली चौक में बदल दिया तब से अब तक इसे श्रद्गांजली चौक के नाम से जाना पहचाना लगा लेकिन एक माह पूर्व इस स्थल पर गो माता कि मूर्ति बिठाकर गोविंद गो सेवा समिति का रूप दिया। इस तरह से इन 7 सालों में यह चौराहा हर घटना का साक्षी बना है। जो आज भी पीड़ितों की तरफ से इस हादसे के जिम्मेदारों को सजा देने के दृश्य को देखने का साक्षी बनना चाहता है।
टूट रही है न्याय की आस
इस पूरे मामले को लेकर सरकार, पुलिस और प्रशासन की भूमिका मामले को शांत करने और ब्लास्ट पीड़ितों का ध्यान हादसे से बांटाने के अलावा कुछ नहीं रही, अन्यथा कमजोर और बिना गवाहों के बनाये गए पुलिस केस से इस हादसे के जिम्मेदार के परिजन कोर्ट से इतनी आसानी से नहीं छूट पाते।
सरकार ने भले ही मुख्य आरोपी को फाइलों में मृत बता दिया हो लेकिन आज भी लोग मुख्य आरोपी राजेन्द्र कांसवा के मौत की बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। सरकार की एसआईटी, न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट आज भी संदेह के घेरो में है और लोग सरकारी तंत्र की पूरी लापरवाही मानते हैं। सरकार आरोपियों के खिलाफ आज भी उच्च न्यायालय में अपील करने की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर पाई भले ही सरकार, पुलिस, कोर्ट से आरोपियों को राहत मिल गयी हो लेकिन पीड़ित आज भी न्याय के लिये सबसे बडी भगवान की अदालत पर भरोसा कर के बैठे हैं। यहाँ से तो पीड़ित लोगों को न्याय मिलने की आस धीरे धीरे कम होती जा रही है।
जनता देगी जवाब
आम नागरिकों के पास आज यह समय है जब वह ब्लास्ट पीड़ितों की पीड़ा का जवाब नेताओं को दे सकते हैं और सरकार के सामने पीड़ितों का दर्द व उनकी मांगें भी रख सकते हैं. सरकारें दोनों पार्टियों की आईं और गईं किंतु उन्होंने केवल वादे ही किए पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए कोई प्रयास या मदद नहीं की.
ब्लास्ट की इस बरसी पर क्या कुछ होगा या फिर वही घड़ियाली आंसू बहा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जायेगी।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.