गोपाल किरन समाजसेवी संस्था ने क्रांति प्रेरणा रमाबाई अम्बेडकर का जन्म दिवस मनाकर किया संकल्प, महिला सक्तिकरण के लिए | New India Times

संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:

गोपाल किरन समाजसेवी संस्था ने क्रांति प्रेरणा रमाबाई अम्बेडकर का जन्म दिवस मनाकर किया संकल्प, महिला सक्तिकरण के लिए | New India Times

जो महान राष्ट्र निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर जी के पीछे सदैव खड़ी रही, जो अश्पृश्य उत्पीड़ित जनता की माता बनी। साधारणत महापुरुषों के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण औरअच्छे मिलते रहे बाबासाहब भी ऐसे ही भाग्यशाली महापुरुषों में से एक थे जिन्हें रमाबाई जैसी बहुत ही नेक और आज्ञाकारी जीवन साथी मिली। बाबासाहब को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही साथ था। ऐसी त्याग मूर्ति कर्तव्य परायण स्वाभिमानी सन्तोष सहयोग और सहनशीलता की मूर्ति माता रमा बाई की जयंती पर उनके चरणों मे कोटि कोटि नमन करता हूँ। बाबासहाब आम्बेडकर जी महापुरुष बनाने में रमाबाई के अमुल्य योगदान को भुल नही सकते। यह सत्य है कि माता रमाबाई का त्याग, प्रेम, अच्छाई,मेहनत अविस्मरणीय है ।बाबासाहेब का ध्यान रखना ,उन्हें सामाजिक कार्य की जिम्मेदारी में योगदान देना असाधारण कार्य था ।उन्हें याद करने का सबसे बेहतर तरीका है कि महिलाओं को और अधिक सशक्त करें यही हमारी कृतज्ञता होगी।
महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने को रोके । इसके लिये जरूरी है कि ,
1.महिलाओं की निजी,सरकारी,न्यायपालिका, रक्षा में पर्याप्त हिस्सेदारी।
2.वेतन मिलने वाले दिन ही कमाने वाले चाहे निजी क्षेत्र हो चाहे सरकारी 2%मां के एकाउंट में,2% पिता के,कम से कम 15% जीवन साथी के एकाउंट में अनिवार्य रूप से जाये।वैसे औसतन हर पत्नी का अधिकार 29000रुपये बैठता है।हर व्यक्ति पे बैक टू फैमिली पर चलने के लिए सांस्कृतिक और कानूनी रूप से प्रेरित हो।
3.भारत में आज भी 46% से 56%तक बाल विवाह हैं ,इन्हे खत्म करना आवश्यक है ,नई उम्र सीमा के अनुसार यह और भी अधिक है ।भंवरी देवी ने 9माह की बच्ची के बाल विवाह का विरोध किया और उसके साथ अत्याचार हुआ ।उसके संघर्ष की वजह से POSH Law बना।यह सोच हर घर में विकसित करनी होगी।
4 बाबासाहेब के हिन्दू कोड बिल ने भारत की सोच बदली है हालांकि परंपरावादी सोच सदैव ही महिला उत्पीड़न कराती रही है।हिन्दू कोड बिल को सांस्कृतिक परंपरा में स्वीकार करके महिलाओ को वास्तविक सामाजिक न्याय मिलेगा।
5.दहेज हत्या/हिंसा बहुत बड़ा कलंक है। इस पर कड़ा कानून, कार्यवाही और सामाजिक प्रयास बढ़ाने होंगे।

  1. प्री -मैरिज काउंसलिंग और प्री -पेरेंटिंग काउंसलिंग को अनिवार्य करना होगा।यह महिलाओ के उत्पीड़न को काफी कम कर सकता है।
    7.विवाह और युद्ध में अंतर करना होगा ।विवाह को एक युद्ध की तरह लड़की वाले पक्ष को हराकर ,लूटकर ,कर्जदार बनाने की प्रक्रिया की स्वीकार्यता क्यों?विवाह को निर्माणकारी बनाकर बहुत बड़ा विध्वंस रोक सकते हैं।विवाह का आडम्बर बहुत बड़ा सामाजिक विध्वंस है।
    8.हमें कुछ सवाल बैन करने होंगे जैसे विवाह हुआ या नही,दहेज कितना मिला,सन्तान हुई या नहीं,लड़का हुआ या नही,विवाह में कैसी सजावट थी,हमें विवाह में क्यों नहीं बुलाया आदि।
    9.महिला व्यायाम, खेल,आत्म रक्षा प्रशिक्षण शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। हर गाँव,मोहल्ले में स्थित पंचायत घर,स्कूल ,पार्क में महिला लाइब्रेरी-जिम खोलकर महिला सशक्तिकरण को कई गुना कर सकते हैं।
    10.बिना जातिबंदी के महिला सशक्त नहीं हो सकती। ऑनर किलिंग, दहेज हत्या, बाल विवाह सब जाति को बचाने के कारण ही विकसित किये गये। जातिबंदी के लिए हर महिला को संघर्ष करना चाहिए।
    11.शिक्षा का पाठ्यक्रम अंधविश्वासों को समाप्त करने में असफल रहा है।महिलाओं को अंधविश्वास के एजेंट के रूप प्रयोग किया जाता है । महिला कल्याण अंधविश्वास से नही विज्ञान से हुआ है ।गैस चूल्हा, वाशिंग मशीन,मिक्सी की खोज विज्ञान ने की है इनकी उत्पत्ति किसी उपवास या टोटके से नहीं हुई ।हर महिला-पुरुष को विज्ञान प्रिय होना चाहिए,हिन्दू कोड बिल का अध्ययन करना चाहिए ।यह बात श्रीप्रकाश सिंह निमराजे, गोपाल किरन समाजसेवी संस्था, ग्वालियर ने रमाबाई अम्बेडकर जी के जन्म दिवस पर थाटीपुर, ग्वालियर ने कही । आपने अपनी बात को बढ़ाते हुऐ कहा कि बाबा साहब ने कलम से
    क्रांति कर दिखलाई थी
    क्योंकि स्याही के हर बूंद में
    त्यागमूर्ति रमाई समाई थी
    बलिदान समर्पण साहस एवं संघर्ष की प्रतिमूर्ति परम पूज्य बोधिसत्व डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जी की जीवन साथी
    माता रमाबाई अंबेडकर जी थी। माता रमाबाई अंबेडकर का वो त्याग जिसने बाबा साहेब को महान बना दिया। माता रमाबाई जो एक कर्तव्य परायण स्वाभिमानी गंभीरऔर बुद्धिजीवी महिलाथी घर की बहुत ही सुनियोजित ढंग से देखभाल करती थी माता रमाबाई ने प्रत्येक कठिनाई का सामना किया माता रमाई ने बहुजन समाज को सम्मान एवं खुशी का जीवन देने के लिए खुद और उनके बच्चों को त्याग दिया। प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उनकी जीवनसंगिनी का बड़ा हाथ होता है । जीवनसंगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद, वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता । क्रांतिप्रेरणा रमाई अम्बेडकर इसी तरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थी। अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवनसंगिनी सब पीछे छूट जाते हैं क्योंकि, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है । यही कारण है कि रमाई के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है । रमाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट वणन्द गावं में  7 फरवरी, 1897 में हुआ था । इनके पिता का नाम भीकूजी धोत्रे धुत्रे और माँ का नाम रुक्मणी था । महाराष्ट्र में कहीं-कहीं नाम के साथ गावं का नाम भी जोड़ने का चलन है । इस चलन के अनुसार उन्हें भीकूजी वाणन्दकर के नाम से भी पुकारा जाता था । भीकू वाणन्दकर अपनी आय से परिवार का  पालन-पोषण करते थे।  रमाई के बचपन का नाम रामी था ।  रामी की दो बहने बड़ी बहन गौरा और छोटी का नाम मीरा था, तथा एक भाई शंकर जो चारों  भाई-बहनों में सबसे छोटा था । बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ बम्बई में भायखला आकर रहने लगे थे।  रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल के सुपुत्र भीमराव से वर्ष 1906 में  हुआ था । उस समय भीमराव की उम्र उस समय 14 वर्ष थी और वे 10 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे । शादी के बाद रामी का नाम रमाई हो गया था । शादी के पहले रमा बिलकुल अनपढ़ थी, किन्तु शादी के बाद भीमराव आंबेडकर ने उन्हें साधारण लिखना-पढ़ना सीखा दिया था जिससे वह अपने हस्ताक्षर कर लेती थी । डॉ. अम्बेडकर रमा को ‘रामू’ कह कर पुकारा करते थे जबकि रमाबाई बाबा साहब को ‘साहब’ कहा करती थी।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी के संघर्षमय जीवन में रमाई ने अत्यंत ग़रीबी में अपने परिवार को सँभाला। यें वह दौर था जब डॉ आंबेडकर अभी विख्यात नहीं हुएँ थे। परदेस की पढ़ाई और सामाजिक कार्य इन कारणों की वजह से डॉ आंबेडकर व्यस्त हुआँ करते थे। ऐसे कठिन समय में क्रांतिप्रेरणा रमाई ने परिवार को सँभालने का बेड़ा उठाया। उनका त्याग और समर्पण इन्हीं से डॉ आंबेडकर आगे चलकर विश्वविख्यात हो गयें। इसी समयकाल में रमाई को अपने पुत्रों का भी बलिदान देना पड़ा। २७ मई १९३५ के दिन रमाई अपने साहब को छोड़कर विदा हो गईं। इस दिन समूचे संसार को पालनेवाले डॉ आंबेडकर किसी मासूम बच्चे जैसे रो पड़े थे। अपने पत्नी से वह असीम प्यार करते थे। आज हमारे समाज ने डॉ आंबेडकर जी के जीवन से अपनी पत्नी से बेहद प्यार करने का उदाहरण अपनाना चाहिएँ। ओर प्रस्तुत करना चाहिये। माता रमाबाई जी जैसी आदर्श पत्नियां यदि हों तो दुनिया का हर पति निश्चय ही. कामयाब होगा। जहांआरा,आकंक्षा
बाबासाहब प्रेम से रमाबाई को “रामू” कहकर पुकारा करते थे. दिसंबर 1940 में डाक्टर बाबासाहब बडेकर ने जो पुस्तक “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” लिखी व पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी “रामू” को ही भेंट की. भेंट के शब्द इस प्रकार थे. ( मै यह पुस्तक) “रामू को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं..”उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबासाहब डॉ. आंबेडकर का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबासाहब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था.इसके साथ ही कई लोगों ने अपने विचार रखे और रमाबाई से प्रेरणा लेकर महिलाओं ने साहस के साथ समाज का कार्य करने आगे बढ़ने का संकल्प आज लिया गया। क्रांतिप्रेरणा रमाई जयंती उपलक्ष्य हेतु सभी को हार्दिक हार्दिक मंगल कामनाएँ !


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By nit

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