किसान कृषि अवशेष 'पराली' जलाएं नहीं आय का जरिया बनाएं: कलेक्टर | New India Times

अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी (यूपी), NIT:

किसान कृषि अवशेष 'पराली' जलाएं नहीं आय का जरिया बनाएं: कलेक्टर | New India Times

आज विकास भवन सभागार में पराली प्रबंधन में मशरूम उत्पादन कर प्रभावी नियंत्रण व आय प्राप्त कर लाभ कमाएं विषय पर आयोजित गोष्ठी के अंतर्गत कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी श्री रविन्द्र कुमार ने कहा कि पराली जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव एवं प्रभावी नियंत्रण विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी को विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है, उक्त जानकारी को आत्मसात करते हुए क्षेत्र की अन्य महिलाओं को भी जानकारी देते हुए आप उसे अपनी खेती किसानी में प्रयोग करें ताकि गांव का पर्यावरण दूषित ना हो और आय में बढ़ोतरी हो। जिलाधिकारी श्री रविन्द्र कुमार ने बताया कि जो लोग अपनी खेतों में पराली जलाते हैं,वह ना जलाएं क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरकता कम होती है व मिट्टी ऊसर हो जाती है,जिससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पराली जलाने से हमारा पर्यावरण दूषित होता है जिसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। उन्होंने महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि खेती किसानी में आपकी बड़ी हिस्सेदारी है, अतः आप स्वयं लोगों को जागरूक करें कि खेतों में आग ना लगाएं विशेष रूप से कृषी अवशेषों में आग ना लगाते हुए उन्हें गौशाला में देना सुनिश्चित करें। उन्होंने गोष्ठी में फसल अवशेष अथवा पराली जलाने से होने वाले नुकसान एवं इसके उचित प्रबंधन से होने वाले लाभों को समूह की महिलाओं को विस्तार से बतायें जाने के निर्देश दिए। उन्होंने सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग को बढ़ावा दिये जाने पर विशेष बल दिया। उन्होंने समूह की महिलाओं को फसल अवशेष के उचित प्रबंधन हेतु इन-सीटू योजनान्तगर्त नव विकसित क़ृषि यंत्रों यथा सुपर स्ट्रा मैनेजमेनट सिस्टम (सुपर एस0एम0एस0), हैप्पीसीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल, श्रब मास्टर, पेडी स्ट्राचार, श्रेडर, मल्चर, रोटरी स्लेार, हाइड्रोलिक रिवसेर्बल, एम0बी0प्लाऊ, बेलिंग मीन, क्राप रीपर की जानकारी देते हुये विभाग द्वारा अनुमन्य अनुदान से भी परिचित कराया और इन सभी का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने शासन की मंशा के अनुरूप धान का पुवाल ग्राम सभा द्वारा अपने खर्च पर निराश्रित गोवंश स्थल तक भेजे जाने की प्रक्रिया की भी जानकारी दी। गोष्ठी में उप कृषि निदेशक श्री के के सिंह द्वारा बताया गया कि पराली को जलाने से रोकने हेतु जनपद के सभी कम्बाईन हार्वेस्टर में सुपर स्ट्राॅ मैनेजमेन्ट सिस्टम लगाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। एस0एम0एस0 के बगैर जो कम्बाईन कटाई करते हुए पायी जायेगी, उसके मालिक के विरूद्ध एनजीटी की गाईडलाइन के अनुसार सुसंगत धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए कम्बाईन सीज कर दी जायेगी तथा अथर्दण्ड भी लगाया जायेगा। इसके निगरानी हेतु जनपद के सभी कम्बाइन पर जिलाधिकारी के द्वारा कमर्चारियों की ड्यूटी भी लगा दी गयी है तथा जागरूकता कायर्क्रम प्रत्येक ग्राम/ न्याय पंचायत कार्यक्रम आयोजित कराए जा रहे हैं। उन्होंने बताया गया कि कृषक फसल अवशेष को कम्पोस्ट में परिवतिर्त किये जाने हेतु निशुल्क डीकम्पोजर प्राप्त कर इसके प्रयोग की विधि कृषि विभाग के कार्मिको द्वारा प्राप्त करते हुए इस कार्य में आगे आने का सुझाव दिया । उक्त के अतिरिक्त उन्होंने महिलाओं को बताया कि विकास खण्ड स्तर पर सभी गांव में पराली प्रबंधन एवं पराली को आग ना लगाने संबंधित जागरूकता गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है, इनका अधिक से अधिक लाभ उठाएं।डीडी कृषि ने बताया कि जनपद में पराली प्रबंधन के संबंध में जागरूकता कार्यक्रम के बाद भी ग्रामीणों द्वारा कृषि अवशेष में आग लगाए जाने की घटनाओं की जानकारी एनजीटी के माध्यम से प्राप्त हुई,जिस के संबंध में 30 लोगों को नोटिस जारी किए गए हैं,तहसील मोंठ में सबसे अधिक पराली जलाए जाने की घटनाएं हुई है। उन्होंने बताया कि एक कंबाइन हार्वेस्टर को भी सीज़ किया गया है और दो लोगों के राशनकार्ड निलंबित किए गए हैं। विकास भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मशरूम उत्पादन हेतु विशेषज्ञों द्वारा महिला समूह की प्रतिभागियों को बताया कि मशरूम के अंदर विभिन्न पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं,जिसमे विटामिन प्रोटीन व अन्य तत्व शामिल हैं। जिनके नियमित उपयोग से हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा,उन्होंने बताया कि बहुत कम लागत में मशरूम का उत्पादन अपने घरों में किया जा सकता है। अतः आप सभी ज्यादा से ज्यादा संख्या में मशरूम उत्पादन करें और उसका उपभोग करें। उन्होंने मशरूम उत्पादन की विधि के बारे में बताया कि मशरूम में एक अलग स्वाद और समृद्ध प्रोटीन के साथ पोटेशियम, फास्फोरस, सेलेनियम, नियासिन आदि कई महत्वपूर्ण योगिक होते हैं जिसकी उत्पादन लागत कम होने के साथ लगभग 45 दिनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। उन्होंने कहा कि मशरूम बाहरी और आंतरिक दोनों स्थितियों में अच्छी तरह से विकसित(उत्पादन)हो सकता है, बाहरी खेती में बारिश,हवा या उच्च तापमान से खेती प्रभावित हो सकती है तथा उपज को कम कर सकती है परंतु मशरूम की प्रजातियों के साथ यह स्थिति नहीं है। विकास भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य विकास अधिकारी श्री शैलेष कुमार, डीडीओ श्री सुनील कुमार,श्री दीपक कुशवाहा एस0एम0एस, श्री विनय मोघे एस0एम0एस0, श्री गौरव जिला मिशन प्रबंधक, ब्लॉक मिशन प्रबंधक व विकासखंड बबीना के स्वयं सहायता समूह की महिलाए उपस्थित रहीं।


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