अरशद रज़ा, अमरोहा ( यूपी ), NIT; आजकल पूरा देश वन महोत्सव के रंग में रंगा हुआ है।जहाँ भी देखो, जिसे भी देखो वो पौधे लगा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मेले की धूम हो। यही खासियत, यही खूबी है हमारे देश के लोगों की, यहां की माटी की जो इस देश को दुनिया में महान बनाती है।
वैसे तो इस महोत्सव में सभी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, पर शिक्षकों का जोश, उत्साह, मेहनत, लगन व कर्तव्यनिष्ठा इस महोत्सव में चार चाँद लगा रही है। प्रत्येक शिक्षक देश सेवा व समाजसेवा की भावना से वृक्ष लगाने में बढ़ चढ़कर भाग ले रहा है।वहीं दूसरी ओर स्कूल के बच्चे भी इस पर्व में अपना पूर्ण योगदान दे रहे हैं। शिक्षक बच्चों को वृक्ष लगाने व उनको पालने की शपथ दिला रहे हैं तथा बच्चों को वनो की उपयोगिता भी समझा रहे हैं।
वन-महोत्सव क्या है तथा इसकी क्या उपयोगिता है?
वन महोत्सव का मतलब है पेड़ों का उत्सव।वनों को विनाश से बचाने एवं ज़्यादा से ज़्यादा वृक्ष लगाने व अधिक-से-अधिक लोगों को जोड़ने की योजना को वन-महोत्सव का नाम दे दिया गया है। इसकी अनौपचारिक शुरुआत जुलाई 1947 में दिल्ली में डा. राजेन्द्र प्रसाद ,मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद और जवाहरलाल नेहरु ने सघन वृक्षारोपण हेतु आन्दोलन के रूप में बीड़ा उठाकर की थी, परन्तु वह इस कार्य मे विधिवत्ता नही रख पाये थे।
औपचारिक रूप से वन-महोत्सव की शुरूआत सन् 1950 में श्री के.एम. मुंशी द्वारा हुयी थी, जो आज भी प्रतिवर्ष हम वन-महोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं। वन-महोत्सव सामान्यतः जुलाई-अगस्त माह में मनाया जाता है।
प्राचीन काल से ही जंगल हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। मानव अपने भरण-पौषण के लिये पूर्ण रूप से वनों पर ही निर्भर था।इसके अतिरिक्त मानव सभ्यता का विकास भी वनों में ही हुआ था।
आज के युग में वृक्षों की उपयोगिता और भी अधिक है।वृक्षों का सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिये ही है। ये स्वयं तो हवा के झोंके, धूप, वर्षा और पाला सब कुछ सहते हैं, फिर भी ये हम लोगों की उनसे रक्षा करते हैं। यह वृक्ष वर्षा करने में सहायक हैं तथा वृक्ष की जड़ें भूमि के कटाव को रोकने में सहायता करतीं हैं।
वृक्ष धरती का श्रृंगार कर सुंदर प्रकृति का निर्माण करते हैं। वृक्ष ही हमारे सांस लेने के लिये ऑक्सिजन गैस बनाते हैं। यह लोगों को विश्राम-स्थल, धूप के कष्ट से बचाते हैं और पशु-पक्षियों को आश्रय स्थल भी देते हैं। वृक्षों से हमे इंर्धन, इमारती लकड़ी व औषधि मिलती हैं। कुल मिलाकर पेड़ हमारी पहली सांस से लेकर अंतिम संस्कार तक मदद करते हैं।
आज की इस विकास की दौड़ में हम अपने स्वार्थ के लिए वनों को अंधाधुंध काट रहे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप प्रकृति का सन्तुलन दिन- ब- दिन बिगड़ता जा रहा है। भूकम्प, बढ़ता तापमान, सूखा, बाढ़, आंधी व तूफान आदि वनों की कटाई के ही दुष्परिणाम हैं। बेतहाशा वनों की कटाई से कई वन्य प्राणी लुप्त हो गए हैं एवं अनेक विलोपन के कगार पर हैं।
आज का मानव अब वनों के महत्व को समझने लगा है और वनों के संरक्षण की दिशा आगे बढ़ रहा है। वन महोत्सव मानव की वनों के प्रति सकारात्मक सोच का ही नतीजा है।
आप और हम वन महोत्सव अभियान में योगदान कर राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं।अधिक से अधिक छायादार व फलदार वृक्ष लगा उनको अपने संतान की भान्ति पालें-पोसें और संरक्षित करें। इस प्रकार अगर हमारे अपने प्रयासों से थोड़ी भी प्रकृति संरक्षित होती है तो सभी के प्रयासों से पूरी धरती संरक्षित हो सकेगी। धरती हमें मां की तरह अपने आंचल में शरण देती है। हमारा कर्तव्य है कि हम इसकी रक्षा अपनी मां की तरह करें।
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