सरवर खान जरीवाला, भोपाल, NIT; इस देश में प्याज की भी अजब कहानी है। यह प्याज कभी देश वासियों को रुलाती है तो कभी किसानों को। यह कभी कभी सत्ताधारियों को सत्ता से बेदखल कर के रोने को मजबूर कर देती है। मतलब यह हर हाल में किसी न किसी के रोने का सबब जरूर बनती है।
मध्यप्रदेश में एक बार फिर पिछले साल की तरह प्याज को सडक़ों पर फेंकने की नौबत आने वाली है। प्याज को लेकर मचती अफरातफरी के बीच हमारे किसान अभी परेशान हो रहे हैं। मुख्यमंत्री को अब जाकर यह सूझा है कि प्याज का पेस्ट बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। पिछले साल जब प्याज की बर्बादी हुई थी तब सरकार को यह अहसास हुआ था कि प्याज का भंडारण सामान्य गोदामों में नहीं हो सकता। इसके लिए विशेष प्रकार के हवादार वेयरहाउस दरकार है। दूसरी अन्य फल सब्जियों को लंबे समय तक बचाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की भारी कमी है। मप्र वेयर हाउसिंग कारपोरेशन ने पिछले साल इस समस्या से निजात पाने के लिए लंबे चौड़े प्रस्ताव दिए थे, लेकिन यहां तो क्षण में जीने वाले नेता हैं। जब प्यास लगती है तभी कुआं खोदते हैं। प्यास बुझते ही कुआ की खुदाई बंद। इसलिए प्याज के भंडारण और कोल्ड स्टोरेज के निर्माण का काम अभी भी फाइलों में कैद है। फिर बात प्याज से पेस्ट की ही क्यों? हमारे प्रदेश में तो टमाटर, मिर्ची, अदरक, धनिया, लहसुन भी प्रचुर मात्रा में होता है। फिर इन उत्पादों से जुड़े प्रस्संकरण उद्योग क्यों नहीं लगे। भरपूर कच्चे माल की उपलब्धता के बावजूद ऐसा क्यों नहीं हो सका? सरकार करोड़ों का खर्च वैश्विक निवेशक सम्मेलन पर करती हैं तो फिर खाद्य प्रस्संकरण उद्योग क्यों नहीं पनप सके? सरकार किसानों पर भी करोड़ों के खर्च के वादे करती है। तो फिर क्यों सरकार ने खुद ही प्रस्संकरण उद्योग खुलवान में किसानों की मदद नहीं की? जब गुजरात में अमूल का मॉडल सफल है तो गुजरात की हर बात की नकल करने वाली सरकार ने कोआपरेटिव आधारित किसानों की भागीदारी के साथ खाद्य प्रस्संकरण उद्योग क्यों नहीं खुलवा सकती? अब सरकार को प्याज को लेकर मुनाफाखोरी की चिंता सता रही है।
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