कर्ज में डूबे राजस्थान के किसान गुलाब राम के बाद संजीव मीणा ने मौत को लगाया गले | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; ​कर्ज में डूबे राजस्थान के किसान गुलाब राम के बाद संजीव मीणा ने मौत को लगाया गले | New India Timesभारत के अन्य प्रदेशों की तरह ही राजस्थान का किसान भी कर्ज के बोझ के तले दबकर मौत को गले लगाने को मजबूर हो रहा है। जिनमें से अधिकांश केस तो रिपोर्ट तक ही नहीं होते हैं। लेकिन इसी महिने प्रदेश के दो किसानों द्वारा अलग-अलग जिलों में आत्महत्या करने का मामला प्रकाश में आने के बावजूद सरकारी स्तर पर आगे ऐसी घटना न घटने के लिये होने वाले सार्थक प्रयासों की सम्भावना अभी तक दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है। एक तरफ किसान मौत को गले लगा रहा था तो दुसरी तरफ सरकार के जिम्मेदार योग करने में यानी पेट कम करने मे मशगूल थे। इन गरिब-मजबूर-बेसहारा व कर्ज मे डूबे किसानों की आवाज उठाने के लिये पूर्व विधायक अमराराम मजबूती से लगातार संघर्ष करते हुये आवाज उठाते रहे हैं। लेकिन उनकी किसान सभा का प्रभाव जयपुर, अजमेर व बीकानेर सम्भाग में ही अधिक होने के चलते उस क्षेत्र के किसान तो अक्सर संघर्ष करके सरकार के घुटने समय समय फर टिकाते रहते हैं, पर प्रदेश के अन्य भागों में अभी तक किसानों की मजबूत आवाज कोई बन नहीं पाया है।

पिछले हफ्ते जालोर में एक आदिवासी किसान गुलाबाराम खुद के ही खेत में फांसी के फंदे पर झूल गया। आज खबर राजस्थान के बारां जिले से आई है।

बारां में एक किसान संजीव मीणा (30 वर्ष) ने पेड में फंदा लगा कर कल मौत को गले लगा लिया। शोक संतप्त परिजन कहते हैं कि संजीव भारी कर्ज से परेशान था। इसके बरक़्स प्रशासन कहता है संजीव मायूसी का शिकार था।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर रोज देश में 33 किसान खुदकशी कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर हिन्दू ही है। संजीव का नाम भी उस सूची में दर्ज हो गया है। उनके राज में भी ,इनके राज में भी मौत आज़ाद है, पर राजनीति का दिल नहीं पसीजता। कोई एक सौ साल पहले ,गुजरात का एक कृशकाय व्यक्ति बिहार के चम्पारण गया और काश्तकारों की दयनीय हालत देख कर विचलित हो गया। उसके बाद मोहन चंद कर्म चंद गांधी नामका यह शख्श कभी चैन से नहीं बैठा। वह किसान नहीं था। वो व्यापारी वर्ग से आता था। वह उस राज्य से आया था जो उद्योग व्यापार में निपुण माना जाता है। वह खुद को किसान साबित करने लिए फैब इंडिया के जूते भी नहीं पहंनता था। विदेश में रहा मगर दिल देशी था।

आज भारत की संसद में अपनी आजीविका खेती दर्ज कराने वालों की भरमार है। पर वे खामोश हैं। पक्ष विपक्ष ने किसान को उसके हाल पर तन्हा छोड़ दिया है।

अपनी छवि चमकाने के लिए जनसम्पर्क फर्मो को किराये पर लेनी वाली राजनीतिक जमात खुद तो चमक सकती है, मगर इससे भारत की चमक फीकी पड़ सकती है। भारत के 17 राज्यों में किसान की मासिक आमदनी 1700 रूपये माहवारी से भी कम है। ऐसे में वो न परिवार पाल सकता न गाय की परवरिश कर सकता है।

योग बीमार जिस्म को ठीक कर देता है। काश खेती भी एक बीमारी होती।

 मध्यप्रदेश में भड़की किसान आंदोलन की आग ने पूरी दुनिया का ध्यान वहां के किसानों व उनकी समस्याओं की तरफ खिंचा है। भारत के 130 किसान संगठन मिलकर मंदसौर के किसान गोलीकांड के ठीक एक माह बाद मंदसौर जाने वाले हैं। वो वहा से दिल्ली के जंतर मंतर तक और बिहार के चम्पारण तक जनजागृति यात्रा निकालेंगे। लेकिन उन यात्राओं में राजस्थान के किसानों की समस्याओं पर कितनी चर्चा एवं संजीव मीणा व गुलाबाराम जैसे अनेक राजस्थान के किसानों के कर्ज के कारण आत्महत्या करने का मुदादा किस हद तक छाया रहेगा यह अभी कहना मुश्किल है।

  कुल मिलाकर यह है कि मंदसौर के किसान आंदोलन की भड़की आग के बाद यूपी के सहारणपुर निवासी व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट ने भी राजस्थान में एक दिन का जिला स्तर पर धरना प्रदर्शन करने का नाटक अपने संगठन स्तर पर करवाया था। लेकिन एक भी जगह प्रभावी तौर पर वो प्रदर्शन कर नहीं पाये हैं। प्रदेश कांग्रेस संगठन में वैसे भी ज्यादातर वो नेता शामिल हैं जो ऐयरकंडीशन से बाहर निकल कर किसानों के मध्य जाकर उनके हाल जानने से कतराते रहते हैं। दूसरी तरफ वामपंथी किसानों के मध्य रहकर काम तो करते हैं लेकिन उनका प्रभाव क्षेत्र सीमित है।


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By nit

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