मुस्लिम समुदाय की नाराजगी से राजस्थान के पंचायत चुनाव में कांग्रेस को करना पड़ सकता है मुश्किलों का सामना | New India Times

अशफाक़ कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मुस्लिम समुदाय की नाराजगी से राजस्थान के पंचायत चुनाव में कांग्रेस को करना पड़ सकता है मुश्किलों का सामना | New India Times

राजस्थान के 21 जिलों में 23 नवंबर से चार चरणों में हो रहे पंचायत समिति व जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों को मुस्लिम समुदाय की उनके बहुल क्षेत्रों में गहलोत सरकार व कांग्रेस पार्टी की तरफ से जारी अन्याय पूर्ण नीतियों व उनकी लगातार जारी अनदेखी के कारण मुश्किलातों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री गहलोत के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार को दो साल पूरे होने को आये हैं लेकिन कांग्रेस सरकार गठन की शुरुआत से लेकर अब तक के सरकारी रवैये को लेकर मुस्लिम समुदाय में अनेक मुद्दों को लेकर जारी सरकार से सख्त नाराज़गी की आग में घी डालने का काम मदरसा पैराटीचर्स के नियमतिकरण व अल्पभाषा के सरंक्षण व उसके खिलाफ सरकारी स्तर पर किये जा रहे प्रयासों को लेकर एक नवम्बर को चूरु से करीबन 1100 किलोमीटर की दांडी पैदल यात्रा पर शिक्षक शमशेर भालूखां के रवाना होने से हुआ है। उधर उर्दू शिक्षक संघ राजस्थान के अध्यक्ष आमीन कायमखानी द्वारा लगातार उर्दू को लेकर शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा के दावों की असलियत जनता के सामने लाकर लगातार पोल खोलते रहने से खासतौर से मुस्लिम समुदाय का युवा तबका जगह जगह सरकार के खिलाफ सड़कों पर आकर आंदोलन जारी रखते हुये रैलियां, सभा व पैदल यात्राएँ करने के साथ साथ मुख्यमंत्री गहलोत व शिक्षा मंत्री डोटासरा की शव यात्राएं निकालकर पुतले दहन करने के बावजूद सरकार के कानों तक किसी भी रुप से अभी तक जूं तक नहीं रेंगने के चलते पंचायत समिति व जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस को सबक सिखाने के लिये कहीं पर कांग्रेस का बायकॉट व कहीं पर कांग्रेस उम्मीदवारों को हराने वाले उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने का मुस्लिम युवा तबका ऐलान कर रहा है।
हालांकि राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस नामक दो दलीय सिस्टम होने के कारण कांग्रेस मुस्लिम समुदाय की मांगों व उनको लेकर कभी भी सीरीयस नहीं होती है। क्योंकि अधीकांश कांग्रेस नेताओं का मानना है कि मुसलमान कितना भी कांग्रेस से नाराज रहे लेकिन जब मतदान करने मतदान केंद्र जायेगा तब मजबूरन भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के पक्ष में ही कांग्रेस का निशान हाथ का बटन दबाकर ही मतदान करना होता है। तो जब नाराज़गी मतदान में तब्दील ना हो तो फिर उनकी डिमांड को सरकार द्वारा सीरीयस लेना लोग बेकार की बातें मानते हैं।
राजस्थान में गहलोत सरकार के गठन के समय मात्र एक मुस्लिम विधायक शाले मोहम्मद को मंत्री बनाकर उसके केवल अल्पसंख्यक मंत्रालय तक सीमित रखना, फिर एक महाधिवक्ता व सोलह अतिरिक्त महा अधिवक्ताओं की नियुक्ति में मुस्लिम को प्रतिनिधित्व ना देना, मुस्लिम समुदाय के सम्बंधित अधीकांश बोर्ड निगम का गठन ना करना, राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व चार सदस्यों के मनोनयन मे मुस्लिम को किसी भी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं देने से मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ समुदाय में भारी आक्रोश व्याप्त होने के बाद आग में घी डालने का काम नगर निगमों में मुस्लिम पार्षद बड़ी संख्या में जीत कर आने के बावजूद एक भी नगर निगम में मुस्लिम मेयर उम्मीदवार नहीं बनाने से हुआ है। इसके बाद विभिन्न मांगों को लेकर शिक्षक शमशेर की जारी दांडी यात्रा से तो पूरे राजस्थान में उबाल ला दिया है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान में दो दलीय व्यवस्था होने के कारण राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय चाहे जितना किसी भी तरह से कांग्रेस व सरकार का विरोध करे लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत के कानों पर जूं किसी भी हालत में नहीं रेंगेगी क्योंकि भाजपा के पक्ष में किसी भी कीमत पर मुस्लिम समुदाय द्वारा मतदान नहीं करने की मजबूरी गहलोत भलीभांति समझते व मानकर चलते हैं। राजनीतिक दल को केवल मतों से मतलब होता है तो वो काम मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के पक्ष में मतदान करके करते आही रहा है। हां मुस्लिम समुदाय द्वारा जारी मंजूदा आंदोलन को लेकर खासतौर पर मुस्लिम विधायक व नेताओं की समुदाय में स्थिति पतली छाछ समान होती नजर आ रही है। वो समुदाय में जाकर मुद्दों पर बात करने से कनी काटने लगे हैं। जबकि समुदाय उक्त मुद्दों को लेकर सरकार के प्रति खुलकर नाराज़गी व्यक्त करता नजर आ रहा है।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading