बुरहानपुर वासी देखें, समझें और फिर अपनाएं जापान की मियावाकी पौधे लगाने की तकनीक: पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस | New India Times

मेहलक़ा अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

बुरहानपुर वासी देखें, समझें और फिर अपनाएं जापान की मियावाकी पौधे लगाने की तकनीक: पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस | New India Times

नई तकनिक के माध्यम से बुरहानपुर की ज़मीं में जापान के मियावाकी पौधे लगाए जा रहे हैं यह शहरवासियों के लिए ऑक्सीजन बैंक की तरह कार्य करेगा। इस नई तकनिक से विदेशी पौधे लगाकर बुरहानपुर एक मॉडल बनने जा रहा है। इसमें समाज, सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर अपनी-अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए। जापान के मियावाकी पौधे लगाने की इस नई तकनीक को बुरहानपुर वासी देखें, समझें और फिर अपनाएं।
यह बात प्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने कही। बुधवार को श्रीमती चिटनिस एवं निवृत्तमान नगर निगमाध्यक्ष मनोज तारवाला, पूर्व पार्षद संभाजीराव सगरे, रूद्रेश्वर एंडोले, आशीष शुक्ला सहित एजेंसी के अधिकारियों के साथ मिलकर लालबाग रोड स्थित मरीचिका उद्यान में कार्यस्थल का अवलोकन कर तकनीक के बारे में विस्तृत जानकारी ली। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि यह पहल प्रदेश में अर्बन फॉरेस्ट्रेशन को बढ़ावा देने हेतु की गई है, ताकि कम से कम जगह में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगें और शहर के बीच जंगल बनाया जा सके, जो लोगों के लिए ऑक्सीजन बैंक हो। आबोहवा को सुधारने के लिए बुरहानपुर में इस तकनीक के माध्यम से पहली बार विदेशी पौधे लगाए जा रहे हैं। 10 हजार वर्गफीट भूमि पर 3 हजार 500 से अधिक जापान मियावाकी पौधे लगाए जाएंगे। ताकि कम से कम स्थान पर अधिक पौधे लगे और शहर के बीचो-बीच हराभरा जंगल विकसित किया जा सके। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि यदि हम इतने ही पौधे अगर लगाते है तो इसके लिए 45 एकड़ भूमि लगती है लेकिन इस तकनीक के माध्यम से बहुत ही कम जगह में अधिक पौधे लगाए जा सकते है।

यह है जापान की मियावाकी तकनीक
जापान के बॉटनिस्ट अकीरा मियावाकी ने हिरोशिमा के समुद्री तट के किनारे पेड़ों की एक दीवार खड़ी की, जिससे न सिर्फ शहर को सुनामी से होने वाले नुकसान से बचाया जा सका, बल्कि दुनिया के सामने कम्युनिटी व घने पौधारोपण का एक नमूना भी पेश किया। इस तकनीक में महज आधे से एक फीट की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इसमें जीव अमृत, भूसा और गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाता है।

तकनीक के यह हैं फायदे

  • एक हजार वर्गफीट में 300 से भी अधिक पौधे रोपे जा सकते हैं।
  • पौधे पास-पास लगने से मौसम की मार का असर नहीं पड़ता और गर्मियों के दिनों में भी पौधे के पत्ते हरे बने रहते हैं।
  • पौधों की ग्रोथ तीन गुना गति से होती है। जहां दूर-दूर होने वाले पौधारोपण को पांच साल तक देखरेख का समय देना पड़ता है। मियावाकी तकनीक से लगे पौधे तीन साल में ही बढ़ जाते हैं।
  • कम स्थान में लगे पौधे एक ऑक्सीजन बैंक की तरह काम करते हैं और बारिश को आकर्षित करने में भी सहायक हैं।
  • इस तकनीक का इस्तेमाल केवल वन क्षेत्र में ही नहीं बल्कि घरों के गार्डन में भी किया जा सकता है।

तकनीक के इस्तेमाल का तरीका

पीपल और बरगद जैसे पौधों के साथ कम ऊंचाई तक जाने वाले पौधे लगाए जाएं। पौधारोपण के समय जीवामृत और जैविक खाद का इस्तेमाल करें। पौधारोपण के बाद मिट्टी को पुरानी पत्तियों से ढक दें, ताकि मिट्टी की नमी बनी रहे। इस तरह तेज गर्मी में भी पौधे जीवित रह सकते हैं।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading