अशफाक कायमखानी, जयपुर(राजस्थान), NIT; यूनानी पैथी के इतिहास पर मैं पूर्व में काफी लिख चुका होने के चलते इतिहास की तरफ ना झांकने के बजाये मौजूदा दौर पर ध्यान केन्द्रित करते हुये बताता हूँ कि राजस्थान में पिछले साल तक प्रदेश की राजधानी जयपुर में कार्यरत दो यूनानी मेडिकल कालेज से हर साल नब्बे यूनानी चिकित्सक बनकर बाहर निकलने पर करीब बीस चिकित्सक तो अन्य अपने प्रदेशों का रुख वापिस कर लेते थे लेकिन सत्तर के करीब चिकित्सक राजस्थान के अलग अलग हिस्सों में ही रहकर चिकित्सा जैसे सेवाभावी पेशा अपना कर बडी मात्रा में जयपुर व फिर कुछ प्रदेश के अन्य भागों में रचबस जाते रहे हैं। इसी साल से टोंक में सरकारी यूनानी मेडिकल कालेज शुरु होने से पच्चास सीट का इजाफा होने से इस साल करीब 140 स्टूडेन्टस को इस यूनानी पैथी में प्रवेश मिला है। इतना सब कुछ होने के बावजूद ज्यादातर यूनानी चिकित्सक इस पैथी के साथ पुरी तरह इंसाफ ना करते हुये बडी तादात में एलोपैथी प्रेक्टिस करके इस पैथी के साथ दगा करने से आज भी बाज नहीं आ रहे हैं। जबकि रेशम के कीड़ो से एक पद्दति के मार्फत कैंसर की दवा बनाने के अलावा इस पैथी की पुरी तरह वनस्पतियों से सभी दवाइयां बनाई जाती हैं। जिसमें साइड इफेक्ट शून्य होता है। वही साधारण व जटिल बीमारियों के अतिरिक्त ” हिजामा “, जोंक को गंदा खून पिलाने जैसी कुछ ऐसी परफेक्ट विधी है जो केवल यूनानी पैथी में ही पाई जाती है।
राजस्थान के टोंक शहर में कदिमी यूनानी अस्पताल है, जहां काफी लोग देश के अन्य इलाकों से भी इलाज कराने आते हैं। सालों पुराने दर्द को हिजामा पद्दति से दूर करवाकर सालों पुराने दर्द रोगी एकदम ठीक होकर जाते रहते हैं, वही जमा गंदा खून जोंक सिस्टम से जोंक को पिलवाकर टोंक से काफी रोगी शिफा होकर जाते रहते हैं, लेकिन टोंक की तरह राजस्थान के अन्य भागों में सरकारी व गैर सरकारी यूनानी अस्पताल कायम जरुर हैं, पर टोंक वाला इलाज अन्य जगह रत्तीभर भी नहीं हो रहा है। जबकि अनेक जगह तो हिजामा व जोंक लगाई के इलाज पद्दति से मरीज वाकिफ ही नहीं हैं। वो दर्द के लिये दर्द निवारक गोली व इंजेक्सन ही लगा देते हैं जो यूनानी उसूलों के सख्त खिलाफ भी है।
राजस्थान में एलोपैथी, आयूर्वेद व होम्योपैथी के मेडिकल कैम्प अक्सर जगह-जगह साल भर लगते रहते हैं, लेकिन दुनियां में सबसे पुरानी चिकित्सा पद्दति यूनानी पैथी के कैम्प पूरे सुबे में लगते अभी तक सुना नहीं है। हां बेचारे पुराने हकीम जरुर साल में हकीम अजमल खां के योमे पैदाइश के मोके पर एक जलसा जरुर जयपुर में मुनक्किद करके इस पेथी को जिन्दा रखने की कोशिशें जरुर करते आ रहे हैं। अक्सर यह भी देखने को मिला है कि अनेक एलोपैथी के फिजिशियन होने के बावजूद वो कुछ दवाई यूनानी भी लिखते रहते हैं। तभी आपने देखा होगा की साफी सहित कुछ दवाइयां अंग्रेजी मेडिकल स्टोर पर भी खूब बिकती व वहां रखी होती हैं। वहीं यूनानी चिकित्सक इसके उलट अंग्रेजी दवाइयां जमकर लिखकर या पीस कर मरीज को दे रहे हैं।
सैंकड़ों सालों से रिवायत चली आ रही है कि लोग हकीम लूकमान का नाम लेकर कहते रहते आये हैं कि केवल मुर्दा को जिन्दा नहींरकर पाए, पर मामूली सांस आ रहे मरिजों को हकीम अपनी हिकमत से वापस चलने फिरने वाला बना दिया करते थे। पहले बादशाहों व बडे खानदान के खानदानी हकीम होते थे या वो हिकमत का काम खानदान में पीढी दर पीढी करते थे। जिनके घरों में ही अलग अलग नुस्खों से दवाइयां बनाई जाती थी। हां ज्यादातर हकीम अपनी विधि को अपने साथ ही दुनियां छोडते समय ले जाते रहे हैं। तभी इस विधि को खत्म करने में स्वयं उन नामी हकीमों का रोल भी माना जाता है। पहले यह हिकमत का काम पीर व रुहानियत सिलसिले वालों के यहां ही होती व बनती थी। राजस्थान के सीकर शहर में बडे हकीम साहब के नाम से पीर खानदान आज भी कायम है। जिनके यहां कई सो सालों से हिकमत व रुहानियत का सिलसिला चला आ रहा है। दूसरी तरफ सीकर के ही हुसैन गंज मोहल्ले में अनेक सालों से पीढी दर पीढी रुहानियत व हिकमत का काम फारुकी खानदान में आज भी चला आ रहा है। इसके अलावा जयपुर,जोधपुर व कोटा के साथ साथ टोंक में आज भी पीढी दर पीढी नामी हकीम अपनी करामत दिखाकर शिफा देते आ रहे हैं।
सुबे के एक छोटे से जिले सीकर में पिछले आठ-दस साल में अस्सी के करीब यूनानी चिकित्सक बन चुके हैं जिनमें से कुछ लोगों को छोड़ दिया जाये तो ज्यादातर चिकित्सक एलोपैथी प्रेक्टिस ही करने मे विश्वास जताते आ रहे हैं। वैसे काफी यूनानी चिकित्सक सरकारी नौकरी भी यूनानी पद्दति की हैसियत की डिग्री होने से पाने में सफल रहे हैं, फिर भी इसके साथ इंसाफ नहीं कर रहे हैं। इसके विपरित पिछले महिने टोंक में यूनानी पैथी मे इंटर्नशिप करने वाली कुछ गलर्स चिकित्सकों ने ” हिजामा ” व जोंक से गंदा खून चुसाने की विधि का अच्छा नोलेज हासिल करके क्षेत्र के मरिजों को काफी हद तक राहत पहुंचा रही हैं। हिजामा पद्दति से तो मैंने भी लाभ पाया है।
हालांकि यूनानी चिकित्सा पद्दति को उभारने में इस पद्धति के चिकित्सक तो कंजूसी करते आ ही रहे हैं, साथ ही इनसे बढकर इन दवाइयों का चलाने वाले स्टोर मालिक कंजूसी में इनसे भी एक कदम आगे चल रहे हैं। वो किसी तरह की मार्केटिंग-मेडिकल कैम्प लगाने की कभी भी किसी भी तरह की पहल करने की जरुरत ही नहीं समझते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि यूनानी पैथी का जनाजा निकालने का अगर कोई जिम्मेदार है तो स्वयं यूनानी चिकित्सक ही हो सकते हैं। जबकि बीमार इस पद्धति से इलाज करवाने की भरपूर कोशिश व सरकार बढावा देने के लिये जगह जगह सरकारी अस्पताल भी खोल रही है। हां कभी कभार इसके प्रति सरकारी स्तर पर उदासीनता भी दिखाई पड़ती है लेकिन खूद ठीक हो तो जग ठीक हो सकता है।
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