अशफाक़ कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
लोक कहावत है कि गोली का घाव भर जाता है लेकिन बोली का घाव भरना मुश्किल माना जाता है लेकिन इस कहावत के विपरीत राजस्थान कांग्रेस में गहलोत व पायलट समर्थकों के मध्य करीब बत्तीस दिन चली राजनीतिक उठा पटक व कड़वाहट के मध्य मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा सचिन पायलट को निकम्मा व नकारा कहने के बावजूद जयपुर में आज मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग में उक्त दोनों नेता चाहे ऊपरी तौर पर सही लेकिन एक दुसरे की आवभगत में इस तरह कसीदे गढ़ रहे थे तो मानो दोनों नेताओं के मध्य कभी किसी भी तरह का खरास पैदा हुआ ही नहीं था जबकि दोनो नेताओं के अतिरिक्त दोनों के प्यादे जिन्होंने एक दूसरे के खिलाफ आडियो-वीडियो जारी करके व प्रेस एवं सभा को सम्बोधित करते समय जो शब्दों का इस्तेमाल किये थे उन प्यादों की पतली हालत देखने लायक थी।
विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बत्तीस दिन में आये खरास के बावजूद बड़प्पन दिखाते हुये गर्मजोशी से पायलट का इस्तकबाल करते हुये सब भूलकर आगे बढ़ने को कहा, वहीं पायलट ने भी मुख्यमंत्री गहलोत का अदब के साथ जवाब दिया और गांधी परिवार का शूक्रीया अदा किया। पायलट खेमे के विधायकों के गांधी परिवार की कोशिशों के बाद वापस लौट आने से कल 14 अगस्त को विधानसभा में कांग्रेस द्वारा लाये जाने वाले विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 123 मत पड़ने की सम्भावना है जबकि स्पीकर जोशी व मंत्री भंवरलाल मेघवाल के मत विभाजन में भाग नहीं लेने की सम्भावना जताई जा रही है। कांग्रेस के विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 107 मे से जौशी व मेघवाल को छोड़कर बाकी 105 मतों के अतिरिक्त दो माकपा, दो बीटीपी, एक लोकदल व तेरह निर्दलीय विधायकों के मतों को मिलाकर कुल 123 मत पक्ष में पड़ते लगते हैं। जबकि विश्वास मत के खिलाफ में बहत्तर भाजपा व तीन रालोपा को मिलाकर 75 मत पड़ सकते हैं। अगर किसी वजह से माकपा के दो मत अंतिम समय में तटस्थ रहने का फैसला करते हैं तो प्रस्ताव के पक्ष मे 121 मत आ सकते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि पायलट धड़े के वापस आने के बाद से ही उम्मीद जताई जा रही थी कि पायलट के राजस्थान की सियासत में दोनों पद गंवाने के बाद राजनीतिक तौर पर अगर कमजोर हुये हैं तो उनको विधायक दल की बैठक में आम विधायक की तरह मंच के सामने साधारण विधायक की तरह बैठना पड़ेगा लेकिन पद गंवाने के बावजूद पायलट बैठक में गांधी परिवार के मार्फत आने के चलते मुख्यमंत्री की बगल वाली सीट पर प्रमुख नेता के तौर पर स्थान पाने से उनकी राजनीतिक हैसियत को अभी भी मजबूत आंका जा रहा है।
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