फ़राज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ, बहराइच (यूपी), NIT:
बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वनग्राम बिछिया के निवासियों को बेदखली का नोटिस दिए जाने के बाद से लगातार इंकार आंदोलन चल रहा है। इसके तहत वन निवासी अपना विरोध प्रकट कर रहे हैं। वन निवासियों का कहना है कि सैकड़ों वर्षो से हम लगातार वन भूमि पर निवास करते चले आए हैं और इसके संबंध में बहुत सारे साक्ष्य लिखित रूप में मौजूद हैं फिर भी सभी प्रकार के कानून का उल्लंघन करते हुए परेशान करने के उद्देश्य से बेदखली के बावत नोटिस दी है। करोना वायरस के इस संकट काल में वन विभाग का यह कृत्य अत्यंत घृणित है। अब तक लगभग 81 वन निवासियों को वन विभाग ने नोटिस देकर 106 किलोमीटर दूर पर स्थित प्रभागीय वन अधिकारी कार्यालय बहराइच में साक्ष्यों सहित उपस्थित होने के लिए बुलाया है।
समाजसेवी सुशील गुप्ता ने कहा कि एक तरफ पूरे देश भर में कोरोना वायरस अपने पैर फैलाता जा रहा है और बहराइच जनपद में भी बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस के केस सामने आए हैं उसके बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोगों को नोटिस देना और 100 किलोमीटर दूर बहराइच की यात्रा कराना वन विभाग का दूसरा ऐतिहासिक अन्याय है।
जनता यूनियन के महासचिव फरीद अंसारी ने कहा कि नोटिस मिलने के बाद हैरान और परेशान वन निवासियों ने सांसद तथा विधायक से मिलकर अपनी बात रखी है और मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय लिया गया है लेकिन इन सबके बावजूद विधिक कार्यवाही हेतु लोगों को मुकदमे बाजी के लिए सामने आना पड़ रहा है और नोटिस का जवाब देने की तैयारी चल रही है।
बिछिया व्यापार मंडल के चेयरमैन दिनेश चन्द्र ने कहा कि गांव वालों ने नाराजगी के चलते वन विभाग का हुक्का पानी बंद कर दिया है और उनके साथ किसी भी प्रकार का उठक बैठक या लेनदेन या कार्यक्रमों में भागीदारी से अस्पष्ट इनकार कर दिया है।
वन निवासियों के अधिकारों के लिए लंबे अरसे से संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता जंग हिंदुस्तानी का कहना है कि एक तरफ वन निवासियों के दावा परीक्षण का कार्य उपखंड स्तरीय समिति के समक्ष लंबित है और अभी मान्यता और सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है दूसरी तरफ वन विभाग ने अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 नियम 2008 तथा संशोधित नियम 2012 का उल्लंघन किया है साथ ही वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 2006 की धारा 38 वी के सभी अनुच्छेदों का यथा यथा विधि अनुपालन नहीं किया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता समीउददीन ने कहा कि वन विभाग किसी भी प्रकार से वन निवासियों को मालिकाना हक नहीं देना चाहता है और ना ही वन ग्रामों को राजस्व ग्राम होने देना चाहता है।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता मुश्ताक अली ने कहा कि एक तरफ वननिवासियों के लिए वन अधिकार कानून के तहत मान्यता और सत्यापन की प्रक्रिया चल रही थी तो जानबूझकर बिना किसी विशेषज्ञ समिति के अथवा ग्राम वासियों की सहमति के बिना कतरनिया घाट के उन क्षेत्रों को कोर जोन घोषित कर दिया गया जिनमें पर्याप्त रूप से मानव आबादी सदियों से मौजूद रही है ।
ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति के अध्यक्ष सरोज गुप्ता का कहना है कि सेंट्रल स्टेट फार्म में आम के बागों की अवैध ठेके के विरुद्ध लोगों ने आवाज उठाई थी इस के नाते नाराज होकर वन विभाग ने लोगों के विरुद्ध बेदखली की नोटिस दी है क्योंकि बिछिया बाजार कभी भी वन विभाग की कार्य योजनाओं में अतिक्रमण के रूप में दर्ज नहीं रहा है।
वन निगरानी समिति के अध्यक्ष राम किशुन ने कहा कि वन निवासियों की जागरूकता के चलते वनक्षेत्रों में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और इसका श्रेय स्थानीय निवासियों को तथा सशस्त्र सीमा बल को जाना चाहिए । फिलहाल वन विभाग की इस कार्यवाही से वन क्षेत्र के सभी गांव के लोग नाराज हैं और नोटिस का जवाब देने के साथ-साथ उच्च अधिकारियों से मिलने तथा एक बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
धार्मिक स्थल सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष सरोज यादव का कहना है कि वन विभाग शासन प्रशासन संविधान नियम और कानून किसी चीज को नहीं मान रहा है और मनमानी कर रहा है जिसके लिए संवैधानिक तरीके से आर पार की लड़ाई लड़ी जाएगी।
स्थानीय ग्राम वासी हाजी अजहर अली ने कहा कि हम किसी भी कीमत पर अपनी सदियों पुरानी परंपरागत संस्कृति को खोना नहीं चाहते हैं। हमारे शांतिपूर्ण जीवन यापन में हस्तक्षेप करना अच्छी बात नहीं है।
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