अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
सियासत मे हरदम होता रहा है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठा हर सियासतदां अपने से कमजोर को अपनी सत्ता का भागीदार बनाता है ताकि उनके सत्ता सूख में कभी कोई उससे मजबूत होकर खलल ना डाल पाये। इसी सियासी फोरमूले पर 1998 में जब अशोक गहलोत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद सम्भाला तब से उन्होंने फिर कोशिश में सफलता पाई है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कोई मजबूत लीडर मनोनीत ना हो पाये ताकि उनको कभी चेलैंज का सामना ना करना पड़े।
हालांकि 1998 में अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री की शपथ ली तब वो राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (1 जुलाई-1995 से 14-अप्रैल-1999) थे। अशोक गहलोत के पहली दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक सफर में आने वाले अड़चनों को दूर करने के लिये एक सफल चाल यह चली कि पहले एक एक करके मजबूत लीडरशीप को कमजोर करके उनको व फिर उनके पूत्रों को आऊट करने के अलावा प्रदेश अध्यक्ष पद पर कमजोर से कमजोर नेता को अध्यक्ष बनाने में कामयाबी हासिल करते रहे। अशोक गहलोत के इस 22 साल के राजनीतिक सफर में बने प्रदेश अध्यक्षों में कुछ चेलैंज सीपी जौशी से उन्हें मिला और उसके बाद सचिन पायलट से लम्बे समय तक चैलेंज मिलता रहा है। प्रभारी महामंत्री अविनाश पाण्डे से मिलकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के खिलाफ माहौल तैयार किया। जब मामला पुरा पक कर तैयार हो गया तब संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल की मदद से पहले असओजी में रपट दर्ज करवाकर और आखिरकार आज पायलट को प्रदेश अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त गहलोत- पाण्डे व वेणुगोपाल की तिकड़ी ने करवा देने में सफलता पाई।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के 14-अप्रेल-1999 के बाद गिरिजा व्यास प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं फिर चौधरी नारायण सिहं व फिर उनके बाद बीडी कल्ला अध्यक्ष बने। कल्ला के बाद सीपी जोशी अध्यक्ष बने एवं जौशी के बाद डा. चंद्रभान अध्यक्ष बने। उसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत के नेतृत्व में हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 21 सीट पर आकर अटक गई तो कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट को राजस्थान की राजनीति में भेजकर 21- जनवरी 2014 को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया था। सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और भाजपा को सत्ता से हटाकर सत्ता प्राप्त की।
2018 में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री व सचिन पायलट के उपमुख्यमंत्री बनने के पहले दिन से ही दोनों नेताओं में शह व मात का खैल शुरु हो चुका था। जो आज पायलट को दोनों पदों से बर्खास्त करने के बाद जो पहले एक राजनीतिक दल में दोनों नेता खेल खेल रहे थे। अब दोनों अलग अलग दल में रहकर खुलेतौर पर एक दुसरे को मात देने का खैल खेलते नजर आ सकते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली व सत्ता में अन्य नेताओं को भागीदारी देने में कंजूसी बरतने के साथ साथ भविष्य में अपने लिये चैलेंज बनती लीडरशिप को कमजोर से कमजोर करने की नीति के कारण वो आज तक कांग्रेस सरकार को मुख्यमंत्री रहते रिपीट नहीं कर पाये हैं। 1998 में 156 सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में 2003 में जब विधानसभा चुनाव हुये तो कांग्रेस की सीट मात्र 56 आई। फिर 2008 में फिर 96 सीट कांग्रेस के जीतने पर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में 2013 में आम विधानसभा चुनाव हुये तो कांग्रेस मात्र 21 सीट पर आकर अटक गई। यानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार रिपीटर कभी नहीं बन पाये। पहले की तरह के परिणाम में आगे कभी भी हो सकने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम में देखने को मिल सकते हैं। एक दफा फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कमजोर प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत करवाकर अपने लिये चैलेंज मिलने की सम्भावना को एक तरह से खत्म सा कर लिया है।
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