सविता उपाध्याय, आगरा (यूपी ), NIT;
ऊर्जा मंत्री ने कहा है कि बिजली चोरी में पहली बार पकड़े जाने पर पांच साल और दूसरी बार पकड़े जाने पर सात साल की सजा का प्रावधान किया जा रहा है। इधर बिजली विभाग की टीमें उन्हीं मामलों में चोरी की रिपोर्ट लिखाती हैं, जिनमें बिजली चोर से लेन-देन नहीं हो पाता। सवाल यह है कि जो उपभोक्ता ही नहीं है, उसे चोरी के एक्ट में कैसे लाया जाएगा और फील्ड में अभियान चलाने वालों की निगरानी कैसे हो पाएगी।योगी सरकार की ओर से कहा गया है कि जिस क्षेत्र में बिजली चोरी नहीं होगी, वहीं 24 घंटे बिजली दी जाएगी। यह फरमान अखिलेश सरकार में भी पावर कारपोरेशन ने सुनाया था, लेकिन इससे लाइन लॉस कम नहीं हुआ। शहर में ही कुछ क्षेत्र चोरी के लिए बदनाम हैं, लेकिन इनकी ओर से विभाग पर राजनीतिक दबाव हमेशा रहा है। इन एक-दो क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होने वाली बिजली चोरी पूरे विद्युत वितरण मंडल (खंड-1) यानि मथुरा नगर में लाइन लॉस बढ़ा रहा है।
इसके अलावा ज्यादातर चोरी के मामलों में विभाग की प्रवर्तन टीम पहले अनाप-शनाप अधिभार लगाती हैं और बाद में लेन-देन के प्रयास किए जाते हैं। इस तरह की शिकायतें अधिकारियों को आए दिन मिल रही हैं। विभाग के अपने अवर अभियंता स्तर के इंजीनियर भी चोरी पकड़े जाने पर पहले आपसी समझौता से ही मामला खत्म करने का प्रयास करते हैं। चोरी की रिपोर्ट तो केवल लक्ष्य पूरा करने को लिखाई जाती रही हैं। तकनीकी पहलू यह भी है कि जिसके पास कनेक्शन ही नहीं है, वह विभाग का उपभोक्ता नहीं है। लिहाजा उस पर बिजली चोरी कानून लगाने में कानूनी पेचीदगी सामने आ सकती है। सर्वदा अभियान इसीलिए लाया गया है और इसे सख्ती से लागू किया जा रहा है।
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