गणेश मौर्य, ब्यूरो चीफ, अंबेडकरनगर (यूपी), NIT:
जिले में औषधि विभाग आंखों पर पट्टी बांधकर धृतराष्ट्र की भूमिका निभा रही है और ड्रग विभाग की नाक के नीचे इस तरह के गोरखधंधे चल रहे हैं जिला मुख्यालय पहितीपुर रोड निकट (रिचुमल भट्ठा) शहजादपुर एक मेडिकल स्टोर ऐसा दिखा जहां किसी प्रकार का डर नहीं इस दुकान का ना तो लाइसेंस ना ही दुकान का नाम फिर भी दवा देने के साथ-साथ मरीजों का इलाज करता है।जिले में बिना रजिस्ट्रेशन के सैकड़ों से अधिक मेडिकल स्टोर खुलेआम चल रहे हैं, लेकिन औषधि विभाग की आंखें बंद हैं। खुलेआम मरीजों को बिना कोई विशेषज्ञ के दवाइयां बेची जा रही है। ग्रामीण इलाकों और छोटे छोटे कस्बों में मोटे मुनाफे वाली दवाएं बेचकर झोलाछाप व मेडिकल स्टोर संचालक मालामाल हो रहे है। मगर ड्रग इंस्पेक्टर इन सब मामलों में कुछ बोलने को तैयार नहीं।जानकारों का कहना है की सारा खेल मिलीभगत का है। यह अवैध मेडिकल स्टोर औषधि विभाग के कुछ लोगों की ऊपरी कमाई का जरिया हैं।
इन झोलाछाप मेडिकल स्टोरों पर पहले तो आने वाले मरीज को अपने पास से ही दवा दे देते थे, लेकिन अब यह भी डिग्रीधारी डाक्टरों की तरह मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखने लगे हैं। औषधि विभाग जनपद में चल रहे मेडिकल स्टोरों के आंकड़े बताना नहीं चाहती।लेकिन झोलाछापों की बदौलत इनकी दुकानें अच्छी चल रही हैं।एक मेडिकल स्टोर संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे यहां भूले से एक भी एक्सपायरी डेट की दवा निकल आये तो कार्यवाही हो जाती है। वह दवा किस कंपनी की बेच रहे हैं यह भी देखा जाता है, लेकिन अवैध दुकानों में झांकने भी कोई नहीं जाता। ड्रग विभाग के अफसरों को बताओ तो भी कोई कार्रवाई नहीं होती। एक दूसरे मेडिकल स्टोर संचालक का कहना था कि सब कमाई का खेल है। जानबूझकर अवैध मेडिकल स्टोर नजरअंदाज किये जाते हैं। इतना ही नही अवैध वाले को पहले ही छापेमारी की सूचना हो जाती है। उसकी दुकान पर कोई बोर्ड तो लगा नहीं होता, इसलिए वह छापेमारी के वक्त अपनी दुकान बंद कर इधर उधर हो जाता है।
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