अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT;
राजस्थान मे एक सर्वे के मुताबीक इल्मी ऐतबार (qualiti education) से राजस्थान प्रदेश मे पांचवे नम्बर पर व कोटा के बाद सीकर शहर के भी शेक्षणिक हब बनने का असर खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलने की कहावत के चरितार्थ करने के कारण यहां का मुस्लिम समुदाय भी अब अपने परम्परावादियो को बाय बाय करते हुये अपने बच्चो को अपनी हेसियत से भी आगे जाकर आला से आला अंग्रेजी माध्यम की तालिम दिलाने के लिये मिशनरीज व अन्य उच्च दर्जे के विधालयो मे पिछले पंद्रह-बीस साल से जो भेजने की शुरुवात करने लगे थे तो वो अब जाकर पुरे समुदाय मे आम होने लगी है।हालांकि सीकर शहर में वाहिद चौहान ने भी सीकर की केवल बालिकाओं के लिये अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा देने की तत्कालीन समय मे ऐक्सीलेंस गलर्स स्कूल खोलकर शुरुवात करके एक नया केरीयर शुरु करने व उज्जवल भविष्य बनाने का मोका फरहाम किया था। जिस मोके का फायदा शेखावाटी के मुस्लिम समुदाय ने भी जमकर भरपूर उठाया लेकिन बालको के लिये समुदाय को अन्य अंग्रेजी माध्यम की स्कूल मे जाना पड़ने से गलर्स-बायज के शेक्षणिक स्तर मे अ़सतुलन सा आने से समाज मे एक अजीब से बेचेनी व चि़ता देखने को मिलने लगी थी। शुरुवाती दोर मे तो परम्परावादियो ने अंग्रेजी माध्यम की तालीम का जमकर विरोध किया लेकिन समुदाय के अनेक तालिमयाफ्ता युवा व दुसरे प्रदेशो मे तालिम लेकर आने वाली समाजी बहु-बेटियो ने इन परम्परावादियो की एक ना सुनते हुये हर हाल मे अपने बच्चो को अंग्रेजी माध्यम से पढाने की जिद को आदत मे बदलते हुये दिनी तालिम का इंतेजाम अलग से अतिरिक्त समय मे अपने घर पर करके आज यह साबित करके दिखा दिया है कि उनके बच्चे आज उन परम्परावादियो के बच्चो से तालिमी स्तर मे उनसे इक्कीस ही साबित होकर वतन व समुदाय की खिदमत कर रहे हैं।
उदाहरण के तोर पर शहर के मुस्लिम समुदाय मे बच्चो को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाने का ज्यो ज्यो चलन जब आम होने लगा तो समाज के लोगो द्वारा व्यक्तिगत या तंजिमी तोर पर संचालित होने वाले शेक्षणिक इदारो को या तो अंग्रेजी माध्यम मे तब्दील करना पड़ा या फिर अलग से अंग्रेजी माध्यम के नये इदारे कायम करने पड़े। सीकर में अंग्रेजी माध्यम की ऐक्सीलेंस गलर्स स्कूल को गिनती से एक दफा अलग करदे तो उसके बाद शहर के चिंतक, स्कोलर व आला तालिम याफ्ता पुर्व प्रिंसीपल खादिम हुसैन खत्री ने दीन मोहम्मद रोड़ पर अंग्रेजी माध्यम का कोऐजुकेशन का “अमन पब्लिक स्कूल” नामक कायम करके आज उसको सिनियर स्तर तक का विधालय बना दिया है। इसी तरह हुसैनगंज मे भी एक तंजीम ने “बज्म-ऐ-अहबाब” नामक कोऐजुकेशन का शानदार भव्य भवन बनाकर उसमे अंग्रेजी माध्यम का विधालय जो शुरु किया था। जो अब जाकर सिनियर स्तर का विधालय बन चुका है। इसी दवाब के चलते एक समाजी तंजीम द्वारा संचालित “नेशनल गलर्स स्कूल” को एक अन्य स्कूल से टाईअप करके उसके संचालक मोहम्मद रफीक को उसे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल मे इसी साल से तब्दील करने को मजबूर होना पड़ा है। दुसरी तरफ शहर मे “ऐक्सीलेंस गलर्स स्कूल” चलाने वाले वाहिद चोहान पर शहर के शेक्षणिक माहोल का दबाब इतना बना कि उनको गलर्स स्कूल के अलावा सीबीएसई पेटर्न का कोऐजुकेशन विधालय अलग से शहर मे नगर परिषद के पास खोलना पड़ा है।सीकर शहर के मुस्लिम समुदाय मे शिक्षा के प्रति आई जाग्रति व अंग्रेजी माध्यम के प्रति ललक इन उपरोक्त इदारो तक ही आकर नही रुक रही है। बल्कि इन अंग्रेजी माध्यम के इदारो के अतिक्त शहर मे ईसाई मिशनरीज द्वारा संचालित स्कूल व अन्य व्यक्तिगत एवं संस्थाओ द्वारा संचालित बडी तादाम मे अंग्रेजी माध्यम की स्कूल मे उपरोक्त समाजी विधालयो से करीब तीस-चालीस गुणा अधिक मुस्लिम बच्चे इन अ़ग्रेजी माध्यम की विधालयो मे भी पढने जा रहे है। जो सिलसिला लगातार हर साल गति ही पकड़ता जा रहा है।
शहर की मेट्रीक्स नामक नामी कोचि़ग मे पढाने वाले व समाज का शेक्षणिक स्तर ऊपर उठाने को अपना कर्म मानने वाले कामा भरतपुर निवासी इंजिनियर सोराब खान मेव अक्सर कहते है कि समुदाय को अपने हर बच्चे को स्कूल तो भेजना ही होगा साथ ही क्वालिटी ऐजुकेशन पर उन्हे विशेष फोकस करना होगा। हमे हमारे बच्चो को शेक्षणिक दोड़ मे अन्य बच्चो के साथ दोड़ाने के लिये हर हाल मे आला दर्जे के शेक्षणिक इदारो मे प्रवेश दिलाने के अलावा सेनिक विधालय, नवोदय विधालय सहित केन्द्रीय विधालयो मे प्रवेश दिलाने की तैयारी पर भी हर हाल मे फोकस करना चाहिये। परम्परावादियो के काफी विरोध के बावजूद अपनी मां की हिम्मत के बल पर आला तालिम हासिल करके सीकर शहर के श्री कल्याण राजकीय कालेज मे प्रोफेसर झुंझूनु जिले की बेटी डा.जुबेदा मिर्जा अक्सर कहती है कि धन-दौलत, जमीन-जायदात बनाने के पिछे मारे मारे फिरने से बेहतर है कि वो अपने बच्चो को आला मुकाम वाली तालिम दिलाने के लिये जद्दोजहद करे तो परीणाम इससे कई गुणा अधिक बेहतर आयेगे। शुरुवाती दोर मे शहर मे किराये के मकान मे रह कर अपने दो बच्चो को अच्छा पढाने के जीद करने वाली प्रोफेसर डा.जुबेदा मिर्जा के दो बच्चो मे से बेटा IIT करके अमेरीका मे M.Tec करके अब वही सर्विस करने लगा है तो बेटी IIT कर रही है। जुबेदा मिर्जा ने यह भी बताया कि बच्चो की पढाई के लिये उनका अपना मकान बेचकर एक फ्लेट लेना पड़ा ओर फिर बेटे के अमेरीका मे एम.टेक करने के लिये सलेक्सन होने पर उन्हे फ्लेट बेचने का भी तय करना पड़ा लेकिन अचानक कोई इधर उधर मे मदद होने से फिर उन्हे फ्लेट बेचना तो नही पड़ा था। लेकिन वो कहती है कि बेटी की आगे की पढाई के लिये भविष्य मे अगर जरुरत पड़ी तो वो फिर ऐसा सोच व कर सकती है। राजस्थान मे ख्यातनाम मोटीवेशनर व झुंझूनु के नुवा गावं निवासी पर सीकर शहर मे निवास करने वाले डा.इस्तियाक खान अपनी सर्विस के अलावा मिलने वाले अतिरिक्त समय मे बच्चो को मोटीवेसन करके उनके दिलो मे कुछ कर गुजरने का जज्बा पेदा करने के साथ साथ केरियर गाइडेंस का काम भी सालो से करते आ रहे है। डा.इस्तियाक खान कहते है कि शुरुवात मे तो वालदेन के दिलो मे शिक्षा के प्रति ललक उसके लिये आवश्यक धन खर्च करने का जज्बा पेदा करने के बाद फिर बच्चे को अपने जीवन का गोल फिक्स करके उसको पाने के लिये कड़ी मेहनत-एकाग्रता का भाव पेदा करने व निराषा के भाव को पुरी तरह दिल से निकालकर ही मंजिल को पाया जा सकता है। वो यह भी कहते है कि विज्ञान-गणित के ऐच्छीक विषय वालो के लिये IIT व NIT एवं मेडिकल के ही केवल रास्ते नही है बल्कि सैंकड़ों रास्ते और भी होते हैं। पर उन रास्तों की पहचान युवाओं को होना जरुरी है। नागोर जिले के निम्बी गांव के वासी व अभी जोधपुर निवास करने वाले पुलिस सेवा के आला अधिकारी मुमताज खान इस क्षेत्र मे आला मुकाम पाने के लिये कुछ ऐक्सट्रा टेक्नोलोजी के साथ कड़ी मेहनत करने की जरुरत पर बल देते है। उन्होने अनेक उदाहरण दिये जिनमे से दो उदाहरण का हवाला मै यहा देना जरुरी समझता हु। उन्होने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब घोड़ो से युद्ध होता था तो अलाऊद्दीन खिलजी की फौज ऐक्सट्रा टेक्नोलोजी के तौर पर के घोड़ो पर पागड़ा लगा कर आये थे। इन पागड़ो से घुडसवार गिरता व थकता नही तो उसी ऐक्सट्रा टेक्नोलोजी की ताकत पर खिलजी यूद्ध जीत पाया। दुसरा उन्होने यह बताया कि बाबर जब ऐक्सट्रा टेक्नोलोजी के तोर पर सेना के साथ तोप लेकर आया तो वो यूद्ध जीता। इसी तरह अब हमारे वतन भारत ने भी अनेक क्षेत्र मे अनेक ऐक्सट्रा टेक्नोलोजी हासिल करने पर ही मजबूत देश व दुनिया का शिरमोर बन पाया है। इन उदाहरणो के बाद मुमताज खान कहते है कि समुदाय के युवावो को निराषा के भाव हमेशा के लिये त्याग कर शेक्षणिक क्षेत्र मे ओर अधिक अतिरिक्त मेहनत वो भी लेटेस्ट टेक्नोलोजी के साथ एवं यानि अच्छे से अच्छे विधालय/इंसस्टीटयूट मे प्रवेश पाकर करनी चाहिये। जिसके बल पर वो कामयाब होकर वतन व समुदाय की खिदमत को सही ढ़ग से कर सकते है। दुसरी तरफ भारतीय सिविल सेवा मे पिछले साल कामयाबी का परचम लहराने वाली राजस्थान की बेटी फराह हुसैन ने बताया कि उनकी इस कामयाबी को आसान बनाने का एक प्रमुख कारण शुरुवात से आखिर तक की शिक्षा आला दर्जे की अ़ग्रेजी माध्यम के विधालयो मे होना भी है। वही दिल्ली मे अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर यातायात मिसेज असलम खान का भी अंग्रेजी माध्यम से तालिम हासिल करना उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय को अपने बच्चों के स्कूल समय के अतिरिक्त समय पर घर पर आवश्यक दीनी तालिम दिलाने का पुख्ता इंतेजाम करके आला से आला मुकाम रखने वाली विधालयों में अपनी आर्थिक स्थिती के मुताबीक अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाने पर पूरी तरह फोकस करना होगा। वरना शैक्षणिक दौड़ में काफी पिछड़ चुके मुस्लिम समुदाय को आगे चलकर इस दौड़ से अलग होकर गुमनामी में रहने व मज़दूरों का जीवन जीने को मजबूर होना पड़ेगा। अब तो मजदूर का भी जमाना लद चुका है। चारों तरफ स्कील्ड लेबर की ही डिमांड होने लगी है।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.