इंसानों, जानवरों व पक्षियों के लिये पानी के इंतेजाम का जज्बा होता जा रहा है कम | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर ( राजस्थान ), NIT; ​​इंसानों, जानवरों व पक्षियों के लिये पानी के इंतेजाम का जज्बा होता जा रहा है कम | New India Times
रेगिस्तान व बंजर जमीन के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्थान प्रदेश में जब बूंद बूंद पानी के लिये इंसान-जानवर व पक्षी कोसो दूर मारे मारे फिरते थे तब हमारे बूजुर्ग चाहे बरसाती पानी जमा करते थे या गावं के कुएं से नारों से सुबह सुबह तड़काऊ उठकर मसक द्वारा खींच खींच कर पानी निकालते थे या फिर इससे भी पहले जोहड़ो में बरसाती पानी को जमा करते थे, लेकिन उस मुश्किल हालात में भी हमारे बूजुर्ग राहगीरों के लिये प्याऊ (सबील) लगाकर, जानवरों के लिये खेल व पक्षियों के लिये किसी ना किसी रुप में परिण्डे का इंतेजाम जरुर करते थे। चाहे उन बूजुर्गो को हफ्ते में एक दफा मामूली पानी से या फिर नदी-नाले, जोहड़े या गावं आई कुएं के पास जाकर ही क्यों ना नहाना व कपडे धोने पड़े।​इंसानों, जानवरों व पक्षियों के लिये पानी के इंतेजाम का जज्बा होता जा रहा है कम | New India Times
हालांकि सभी धर्म की मान्यताओं पर नजर डाले तो प्यासे को पानी पिलाने का सवाब काफी अधिक बताया गया है। तभी हमारे बूजुर्गो के समय राजा या जागीरदार कुएं-बावड़ी या जोहड़ा खुदाई को प्राथमिकता देते थे, तो राहगीरोंके लिये बस्ती में हैसियत वाला अकेला या बस्ती के लोग मिलकर कच्ची-पक्की प्याऊ जरुर बनाकर उसमे मटका-झाल रखते थे। जिनमें पानी शुद्ध व ठण्डा तो रहता ही था वही उस प्याऊ पर एक महिला या पुरुष पानी का उचित इंतेजाम करने व राहगीरों को पानी पिलाने के लिये भी रखा जाता था। जिसकी तनख्वाह का इंतेजाम भी बस्ती के लोग मिलकर या गावं या बस्ती आई पी की उगाई करके किया जाता था। वो भी एक समय था जब घर के लिये नया मटका या झाल महिलाऐं खरीद करती थीं तो पहली खरीद सार्वजनिक प्याऊ पर रखने के लिये ही करती थीं। प्रदेश के शेखावाटी जनपद में रेल्वे स्टेशन, गांव व आम रास्तों के पास आज भी उन बूजुर्गो व सेठ सलाहकारों के बनाये हुये कुएं-प्याऊ व कुछ जगह बावड़ी शानदार रुप से सालों पहले बनी होने के बावजूद आज निशानी के तौर बनी होकर हमें पुरानी यादें याद दिलाते हुये जलसेवा की भावना को हमारे दिलों में जगाने में महत्वपुर्ण रोल अदा कर रही हैं।​इंसानों, जानवरों व पक्षियों के लिये पानी के इंतेजाम का जज्बा होता जा रहा है कम | New India Timesसमय ने पलटी मारी दानदाताओं का जेहन बदला एवं कुछ दूसरे तरह के पानी का इंतेजाम होने लगे तो अवाम के दिलों में जलसेवा की भावना की जलने वाली लो धिरे धिरे मंद होने लगी। घरों में फ्रिज का चलन चला, ट्यूबवेल बनने लगे, पानी की खैल की जमीन का उपयोग दुसरे काम मे होने लगा,और तो और इंसानों के लिये जल सुविधा का ज्यों ज्यों साधन बढने लगे त्यों त्यों इंसान खासतौर पर बेजुबान जानवर व पक्षियों के लिये जल सुविधा करने के नाम पर अखबार में फोटो तो छपवाने लगे हैं लेकिन हमारे बूजुर्गो की तरह वो ललक आज भी हमारे दिलों में अभी तक पैदा नहीं हो पाई है जो बिना किसी अर्थ के हमारे बूजुर्ग इन बेजुबानों के लिये पानी का इंतेजाम हर हाल में किया करते थे। चाहे कोई कुछ भी कहें लेकिन यह हकीकत है कि शेखावाटी के कुछ बनिये अपना पैसा व समय खर्च करके जलसेवा का इंतेजाम आज भी करते आ रहे हैं लेकिन अन्य लोगों में इस तरह की सेवा करने का जज्बा उस तरह से परवान चढ नहीं पाया है जिस तरह से चढना चाहिये था। आज भी कुछ लोग प्याऊ के बहाने कामर्शियल जगह पर जमीन कब्जाने की कोशिश भी करते हैं।​इंसानों, जानवरों व पक्षियों के लिये पानी के इंतेजाम का जज्बा होता जा रहा है कम | New India Timesहालांकि अपने आपको आज का सभ्य व शिक्षित समझने वाले समाज के कुछ फर्द एक साथ जब सफर करते हैं तो पांच सौ हजार रुपयों का वो बोतल बंद पानी गटक जाते हैं लेकिन उनको कोई यह कहे कि बस स्टैण्ड-रेल्वे स्टेशन या अन्य सार्वजनिक रास्तों पर शीतल जल के लिये फ्रिज या मटके के पानी वाली प्याऊ का सख्त गर्मी मे इंतेजाम करदो? तो देखो वो कितनी इधर ऊधर की बातें करते हुये अपने आपको ठीक ठहराने की कोशिश करता दिखाई देगा! वहीं राजस्थान के ऐतिहासिक सीकर शहर में कलकत्ता में कारोबार करने वाले सोभासरीया परीवार अनेक जगह पानी की प्याऊ लगाकर एवं मोहनलाल कैलाश चन्द्र सुण्डा ट्रस्ट के शेर सिंह सुण्डा गरमी में अपने ट्रैक्टर टेंकर से अपने खर्चे पर किसी भी टेलीफोन पर उसी मुकाम पर पानी पहुंचाने व खाली समय पर भरे टेंकर के उचित स्थल पर खड़ा कर गला तर करने का इंतेजाम सालों से करते आ रहे हैं।

कुल मिलाकर यह है कि सख्त गरमी का समय शुरु हो चुका है तो पानी का दुरुपयोग रोकने व प्यासे के गले तक पानी पहुंचाने का नेक काम जो भी अपनी क्षमता अनुसार कर सकता है वो जरुर करे। यह सदका व बडा सवाब वाला कार्य है।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading