Edited by Abrar Ahmad Khan, NIT:
लेखक: सैय्यद खालिद कैस
कमलनाथ सरकार गिराने में आतुर भाजपा ने जहाँ देश को कोरोना वायरस जैसी महामारी के मुहाने में धकेल दिया वहीं दूसरी ओर कमलनाथ सरकार गिराकर एक असंवैधानिक सरकार का गठन कर दिया। जिसमें मंत्री परिषद के बिना मुख्यमंत्री है जो शपथ गृहण के बाद से आजतक ONE MAN Army बना हुआ है और महामारी से ज़्यादा जिसे प्रशासनिक अमले के तबादले की चिंता है और उसके हाथों हो रहे सभी शासकीय आदेश स्वतः असंवैधानिक हो रहे हैँ।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री तो हैं पर मंत्री परिषद नदारद है। इस पर टिप्पणी करने पर कुछ कुछ विद्वान एवं बैल बुद्धि बंधुओं का मत है कि इस समय मंत्री परिषद की कोई जरूरत नही है ओर मन्त्री परिषद ना होने के कारण समस्त शक्तियां मुख्यमंत्री में निहित हो गयी हैं जो कि अतार्किक ओर असंवैधानिक मत के सिवा कुछ भी नही है ।
भारतीय संविधान जिसकी शपथ लेकर प्रदेश में मुख्यमन्त्री के रूप में विराजमान शिवराज सिंह चौहान , राज्यपाल लालजी टंडन ओर उन विद्वानों को यह नही भूलना चाहिऐ
कि उसी संविधान के अनुच्छेद 164 (1A) के अनुसार किसी भी राज्य की मंत्री परिषद में कम से कम बारह सदस्य (मुख्य मंत्री सहित) होने चाहिए, जो मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में दिखाई नही देता । कमलनाथ सरकार को अल्पमत में कहने वाली भाजपा स्वयं मध्यप्रदेश में एक असंवैधानिक सरकार बनाये बैठी है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधो पर बैठकर सरकार बनाने वाली भाजपा यह भी भूल गई है कि 18साल कॉंग्रेस से मिले सम्मान को भुलाकर भाजपा का दामन थामने वाले छोटे सिंधिया का साथ कबतक का है यह भी निश्चित नही है । नरोत्तम , नरेंद्र तोमर ओर सिंधिया घराने को पानी पी पी कर कोसने वाले जयभान सिंह पवैया से छोटे सिंधिया की पटरी नही जमेगी ओर उसके प्रभाव निकट भविष्य में होने वाले चुनावों में ही दिख जाएंगे , यह भी एक संभावना है कि शिवराज मंत्रिमंडल गठन कर सिर दर्द से बचना चाह रहे हैं ओर यही उनकी संवैधानिक भूल होगी ।
वर्तमान में मध्यप्रदेश में कहा जा सकता है कि संविधान के अनुरूप मंत्री परिषद नहीं है। एक सदस्यीय मंत्री परिषद की कोई भी अनुशंसा राज्यपाल पर बंधनकारी नहीं है और ऐसी किसी अनुशंसा के आधार पर किया गया कोई भी कार्य या नियुक्ति न्यायालय द्वारा निरस्त की जा सकती है।
यह अजीब है कि शिवराज सिंह चौहान सीएम मध्य प्रदेश की शपथ लेने की जल्दी में थे कि देश में फैले कोरोना वायरस की रोकथाम से अधिक सत्ता हथियाने पर उनका ध्यान लगा था । 15-17 दिन जो सरकार गिराने में भाजपा ने खराब किए यदि उस समय ही कमलनाथ सरकार को इस ओर कठोर कदम उठाने दिया जाता तो मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस पर ओर प्रभावी तौर पर रोकथाम की जा सकती थी ओर मुमकिन है कि मध्यप्रदेश भी इस वायरस की चपेट में आने से बचाया जा सकता था , परन्तु उस अवधि में कॉंग्रेस सरकार बचाने ओर भाजपा गिराने में व्यस्त रही ओर समय गुजर गया । खैर ! अब बात हो रही है मध्यप्रदेश में बनी असंवैधानिकता की तो शिवराज सिंह को मुख्यमन्त्री नियुक्त हुए 10दिन से अधिक गुज़र चुके हैँ परन्तु
इन 10 दिनों से अधिक समय के बाद भी वह मंत्रिपरिषद का चयन करने में विफल रहे हैं।
संविधान के अनुच्छेद 163 के प्रावधानों के अनुसार, मुख्यमन्त्री के साथ मंत्रियों की परिषद है क्योंकि यह राज्यपाल की सहायता और सलाह देने के लिए प्रमुख है। मंत्रिपरिषद की अनुपस्थिति में कोई निर्णय अकेले मुख्यमन्त्री द्वारा नहीं लिया जा सकता था। एक मुख्यमन्त्री केवल बराबरी के बीच सबसे पहले है। इसलिए अकेले वह मंत्रिपरिषद के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं, क्योंकि नियुक्तियों या किसी भी प्रकार के निष्कासन के संबंध में कोई निर्णय मुख्यमन्त्री द्वारा नहीं किया जा सकता है। इस स्थिती में मुख्यमन्त्री के रूप में शिवराज सिंह द्वारा लिया गया निर्णय ओर जो भी आदेश जारी किए गए हैं वह मूलतः अवैध हैं। तबादला उद्योग का कमलनाथ सरकार पर आरोप लगाने वाली आज स्वयं कटघरे में खड़ी है ओर लॉक डाउन ख़त्म होने तक संभवतः भारी तौर पर तबादला उद्योग फलेगा फूलेगा ।
बेशक मेरे इस मत पर भाजपाई , भक्त ओर विशेषकर गोबर ज्ञानी मुझ पर कॉंग्रेसी होने के नाते यह आरोप अवश्य लगाएंगे कि शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश ज़्यादा प्रिय है इसलिए उन्होने मंत्रिमंडल गठन में समय बर्बाद करने के स्थान पर स्वयं मैदान संभाला जो कॉंग्रेस को भाया नही ओर वह शिवराज जी पर आरोप लगा रहे हैं । मुझे उनके सभी आरोप सहर्ष स्वीकार है , परन्तु प्रदेश भावनाओ से नही संविधान से चलता है ओर मध्यप्रदेश में वास्तविकता में संवैधानिक संकट है जो प्रदर्शित हो रहा है।
कोरोनावायरस के कारण पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति है इसलिए स्पष्ट रूप से एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है जो कि संवैधानिक मशीनरी की विफलता है संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मंत्रिमंडल का गठन नितांत आवश्यक है । वही दूसरी ओर लॉक डाउन के बाद अब तक शिवराज सिंह द्वारा लिये गये निर्णयों व आदेशों को न्यायालयों में चुनौतियों का सामना करना होगा यह भी निश्चित है , साथ ही सरकार भी उपचुनाव तक ही रहेगी यह भी निश्चित है।
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