डॉ दिनेश उडानिया, ग्वालियर ( मप्र ), NIT;
जो मरीज़ वाक़ई ग़रीब है उसके लिए हर चिकित्सक उसे कई क़िस्म की रियायत देता है जैसे फ़ीस में कमी या माफ़, अपने से दवाई का इंतज़ाम करके देना या कई बार आर्थिक सहायता भी, पर अगर मरीज़ कार या टैक्सी में आए , ब्रान्डेड कपड़े ,जूते ,चश्मा ,मोबाइल ,घड़ी ,पर्फ़्यूम इस्तेमाल किया हुआ हो या महँगे आभूषण धारण किए हुए हो तो भी क्या वह जेनेरिक दवाए लेना चाहेगा?या उसका हक़दार है?
क्या आज कोई भी नेता अभिनेता सरकारी अफ़सर जेनेरिक दवा इस्तेमाल करते हैं?
आज ग़रीब दिखने वाला व्यक्ति भी बेस्ट दवा और इलाज चाहता है जिसमें कोई कमी ऐक्सेप्ट नहीं करता, खासकर अगर वह प्राइवट सेक्टर से इलाज करवाता है तब।
सस्ते ट्रीटमेंट के चक्कर में अगर मरीज़ को सही रिज़ल्ट न मिले तो सारा दोष डाक्टर के ऊपर लगाकर उसे हरैस्मेंट करने में या कन्सूमर कोर्ट में घसीटने में न तो मरीज़ या सरकार कोई रियायत करेगी।
अतः प्राइवट में इलाज करने वालों पर जेनेरिक मेडिसिन ही लिखने का कोई दबाव न हो।
डाक्टर अपने बुद्धि विवेक से किसे क्या और कौनसा दवा देना है निर्धारित कर लेगा उसके लिए कोई दिशा निर्देश देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
क्या आज जेनेरिक दवाएँ उचित मात्रा में हर जगह उपलब्ध हैं? पहले सरकार इसे सुनिश्चित करे।
डाक्टर को बलि का बकरा न बनाया जाए, अगर सरकार सिर्फ़ जेनेरिक दवाएँ ही इस्तेमाल करना चाहती है तो ब्रानडेड दवाएं बैन कर दे, 500 & 1000 के नोटों की तरह।
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