Edited by Piyush Mishra;
भोपाल, NIT; अब इलेक्शन जीतने के लिए मोबाइल फोन और सोशल मीडिया की भूमिका बढती जा रही है। हाल में हुए चुनावों में यह काफी हद तक सपष्ट हो गया है। सारी राजनीतिक पार्टियाँ, नेता और सरकारें समझ तो गयी हैं की मोबाइल मार्केटिंग रहेगी सत्ता के गलियारों की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता, पर क्या होनी चाहिए मोबाइल स्ट्रैटेजी यह अभी भी सरकारें समझ नहीं पायी हैं। वरुण शर्मा, प्रतिष्ठित राजनीतिक सलहकार कहते हैं कि, 65 फ़ीसदी हिंदुस्तानी 35 वर्ष से कम आयु के हैं और 50 फ़ीसदी हिंदुस्तानी 25 वर्ष से कम आयु के हैं। यह रोचक आँकड़े हिंदुस्तान को विश्व का सबसे युवा देश बनाते हैं। ऐसे में सभी सरकारें, पार्टियां एवं नेता मोबाइल के माध्यम से अपने मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करने लगे हैं।
2014 में 24%लोग ख़बरें इंटर्नेट पर पड़ते थे, जो की 2016 तक 40% हो गया है। अगर आँकड़ों की मानें तो 2018 तक 60% लोग इंटर्नेट पर ख़बरें पढ़ेंगे। ग़ौर तलब है की देश भर से बड़े नेता वरुण शर्मा से पोलिटिकल स्ट्रैटेजी , डिजिटल स्ट्रैटेजी के साथ में एक विशेष रूप से बनायी हुई एक मोबाइल स्ट्रैटेजी बनाने का आग्रह कर रहे हैं।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ऐसे में बेहद दिलचस्प स्तिति में दिखता है। यहाँ पर आईएनसी और भाजपा बारी बारी सत्ता में आती है। हाल में दोनो ही पार्टियों का टेक्नॉलजी और मोबाइल में हाथ साफ़ तौर पर तंग नज़र आ रहा है। ऐसे में साफ़ है की जो नेता और पार्टी मोबाइल के माध्यम से मतदाताओं तक पहुँचने की स्ट्रैटेजी बनाने में कमियाब होगी, सत्ता उसी की होगी।
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