क्रांति मोर्चा के आह्वान पर जामनेर में रहा बंद का मिलाजुला असर, मंदी के कारण व्यपारियों ने किया बंद से किनारा | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

क्रांति मोर्चा के आह्वान पर जामनेर में रहा बंद का मिलाजुला असर, मंदी के कारण व्यपारियों ने किया बंद से किनारा | New India Times


आज 29 जनवरी को बहुजन क्रांति मोर्चा ने CAA, NRC के विरोध मे राष्ट्रव्यापी बंद का आयोजन किया जिसका जलगांव जिले में मिलाजुला असर दिखाई पड़ा। जामनेर में भी बंद का लगभग यही आलम देखा गया। जामनेर में मंदी से परेशान व्यापारियों ने बंद से खुद को अलग रखा।

क्रांति मोर्चा के आह्वान पर जामनेर में रहा बंद का मिलाजुला असर, मंदी के कारण व्यपारियों ने किया बंद से किनारा | New India Times

एसोसिएशन का पत्र कुछ इस तरह है कि बुधवार 29 जनवरी 2020 को आयोजित भारत बंद का हम इसलिए अनुपालन नहीं करेंगे क्योंकि जो आंदोलन होता है वह सरकार के खिलाफ होता है उसका व्यपारियों से कुछ संबंध नहीं होता फिर हम खुद को बंद में क्यों शामिल करें? पहले से व्यापार में मंदी है, 2019 में 15 से 20 बार बाजार बंद रहा, बाढ़ के कारण व्यापार का नुकसान हुआ, मॉल ऑनलाइन शॉपिंग के चलते कारोबार नहीं हो पा रहा है इसलिये 29 जनवरी को होने वाले बंद में हम शामिल नहीं होंगे, पुलिस हमें सुरक्षा प्रदान करे ताकि हम लोग हमारी दुकानें शुरू रख सकें और आगे से कोई भी राजनीतिक दल व्यापारियों को बंद के लिए मजबूर न करे। यह सब उस मराठी पत्र का हिंदी अनुवाद है जिसे व्यापारी एसोसिएशन जामनेर इकाई ने पुलिस को सौंपा है। पत्र पर पदाधिकरियों के दस्तखत भी हैं।

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केंद्र सरकार द्वारा एक लाख करोड़ का पैकेज देने के बावजूद लड़खड़ाकर चलने को मजबूर कारपोरेट सेक्टर की स्थिति अब तक सुधर नहीं सकी है तो मंदी को लेकर लिखे कुछ लाइनों के इस खत से मोदी सरकार पर यकीनन कुछ भी असर नहीं होगा। वैसे पत्र में मोदी सरकार पर सीधा कटाक्ष करने से भी बचा गया है। नोटबन्दी के बाद इकनॉमी को लेकर पहली बार जामनेर के किसी व्यापारी संगठन ने राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर किसी राष्ट्रीय आंदोलन से किनारा करने का जो फैसला किया है वह अपने आप में राष्ट्रवाद हु तो है। व्यापारियों के संगठन ने मंदी के लिए केंद्र सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। इस पत्र की समीक्षा करने पर कई ऐसे सवाल खड़े होंगे जिससे इस पत्र में व्यक्त व्यापारियों की भावनाओं को केवल भावनाओं से ही समझ पाना उचित होगा उन्नीस बीस मीडिया इसे तार्किकता से जोड़कर लिखेगी या दिखाएगी नहीं। जैसे की पत्र में कहा गया कि कोई भी आंदोलन सरकार के खिलाफ होता है उसका व्यापारियो से कोई संबंध नहीं होता, बाढ़, ऑनलाइन शॉपिंग वगैरा वगैरा वाली लाइनें, जरा कल्पना कीजिए कि विपक्षी भाजपा ने इसी तरह बंद वाला आंदोलन अगर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के मुखालफत में किया होता तो क्या होता? शायद बताने की या समझने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जामनेर में संपन्न इस बंद के दौरान एक बड़ी अजीब बात देखी गई वह यह कि व्यापारी संगठन ने इकनॉमी की दुहाई देकर केवल बंद से किनारा किया, CAA, NRC को लेकर कोई प्रतिक्रिया दर्ज नहीं की वहीं दुसरी तरफ शहर में जो दुकानें खुली थीं उनके बाहर दीवारों पर CAA को समर्थन वाले कंपूटर प्रिंट ब्लैक एंड व्हाइट ग्राफिक्स चस्पा दिए गए थे वो किसने चस्पाए इसकी जानकारी नहीं है। किसी भी लोकतांत्रिक आंदोलन की सफलता जनभागीदारी पर निर्भर होती है। पुरे भारत में CAA, NRC के विरोध को लेकर लोकतांत्रिक तरीकों से चल रहे आंदोलनों को किस तरह से परोसा जा रहा है यह जनता देख रही है। CAA, NRC को लेकर जनता को बांटने का काम पेरी शिद्दत से किया जा रहा है। भगवा पार्टी द्वारा दिल्ली विधानसभा का आम चुनाव तो इसी मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। जलगांव समेत जिले में आंदोलन का मिलाजुला असर रहा।


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