अंकित तिवारी, नई दिल्ली, NIT:
लोक राज संगठन की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार आज बाबरी मस्जिद विध्वंस की 27वीं बरसी पर राजधानी दिल्ली में विशाल जनप्रदर्शन किया गया। विभिन्न सामाजिक संगठनों के हजारों कार्यकर्ताओं ने एक साथ मिलकर मंडी हाउस से संसद तक प्रदर्शन किया।
लोक राज संगठन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया, वेल्फेयर पार्टी आॅफ इंडिया, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, जमात ए इस्लामी हिन्द, पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया, यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट, लोक पक्ष, सिटिजन्स फाॅर डेमोक्रेसी, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (दिल्ली), कैंपस फ्रंट आॅफ इंडिया, दिल्ली पीपुल्स फोरम, सीपीआई (एम.एल.) न्यू प्रोलेतेरियन, एनसीएचआरओ, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया, मजदूर एकता कमेटी, हिन्द नौजवान एकता सभा, पुरोगामी महिला संगठन, स्टूडेंट इस्लामिक आर्गनाइजेशन, नेशनल वूमेन फ्रंट, आल इंडिया इमाम्स कौंसिल, द सिख फोरम और एपीसीआर आदि ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
मंडी हाउस से चलकर जलूस जंतर-मंतर पर पहुंचकर सभा में तब्दील हो गयी। जनसभा को लोक राज संगठन से एस राघवन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया से तसलीम रहमानी, वेलफेयर पार्टी आॅफ इंडिया से डा. एस.क्यू.आर इलियास, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी से कामरेड प्रकाश राव, पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया से मोहम्मद साकिब, जमात ए इस्लामी हिन्द से मलिक मोहतासीम खान, यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट से एडवोकेट शाहिद अली, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत (दिल्ली) से अब्दुल राशिद अगवां और लोक पक्ष से कामरेड के0के0 सिंह ने संबोधित किया।
इसके अलावा मंच पर उपस्थित थे इंडियन नेशनल लीग से मोहम्मद सुलेमान, दिल्ली पीपुल्स फोरम से अर्जुन सिंह, सिख फोरम से प्रताप सिंह, एनसीएचआरओ से अंसार इंदोरी, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया से डी.आर. सोरी, स्टूडेंट इस्लामिक आर्गनाइजेशन से माज सलान मनियार, हिन्द नौजवान एकता सभा से संतोष कुमार, पीपल्स फ्रंट दिल्ली से का. नरेन्द्र, एपीसीआर से एडवोकेट मोहम्मद अनवर, एआईएमआईएम से मो आरिफ सैफी आदि।
मंच का संचालन सिराज तालिब ने किया।
यह प्रदर्शन और जनसभा 27 वर्ष पहले हुए, उस जघन्य अपराध की निंदा करने के लिए आयोजित की जा रही है। जब एक इबादत स्थल का विध्वंस किया गया और देश भर में सांप्रदायिक हिंसा आयोजित की गई, जिसमें हजारों लोगों की जान गयी।
यह प्रदर्शन और जनसभा लोगों की एकता की हिफाजत करने और उसे मजबूत करने और गुनहगारों की सजा दिलाने की मांग करने के लिए आयोजित किये जा रहा है। इन गुनाहगारों में, उस समय केंद्र में बैठी कांग्रेस-नीत सरकार और उत्तर प्रदेश की भाजपा-नीत सरकार शामिल है।
लिब्राहन आयोग और श्रीकृष्ण आयोग ने इस विध्वंस और उसके बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा में राजनीतिक पार्टी के शीर्ष नेताओं के शामिल होने की ओर इशारा किया था। लेकिन 27 वर्ष बाद भी इन गुनाहगारों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी है।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार गुनहगारों के खिलाफ फौजदारी मुकदमें सीबीआई अदालत में धूल चाट रहे हैं। जिन लोगों पर इस ऐतिहासिक इमारत की हिफाजत की जिम्मेदारी थी और जिन लोगों पर लोगों की जान की हिफाजत करने की जिम्मेदारी थी, उन्हें आज तक जवाबदेह नहीं ठहराया गया है। कमान की जिम्मेदारी के उसूल को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया है।
जबकि गुनहगारों को कोई सजा नहीं मिली है, सुप्रीम कोर्ट ने उस जमीन की मिलकियत से जुड़े मसले पर अपना फैसला सुना दिया है, जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी। ऐलान कर दिया गया कि जिस जमीन पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी वह जमीन राम लल्ला विराजमान, बाल राम की मूर्ति की संपत्ति है। केंद्र सरकार को निर्देश दिए गए है कि वह राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक ट्रस्ट का गठन करें।
अपने इस फैसले के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं कि 1527 में उसकी स्थापना से 1856-1857 के बीच, मुसलमान लोग इस मस्जिद का इस्तेमाल करते थे। क्या, मुसलमान लोग वहां नमाज अदा करते थे, जिसके लिए वह बनायीं गयी थी, यह सवाल ही पूरी तरह से बेतुका है। इस बात के लिए दस्तावेज के रूप में सबूत पेश करने की मांग करना पूरी तरह से नाजायज है, क्योंकि इस बात को सभी जानते है कि 1857 के गदर के बाद बर्तानवी हुक्मरानों ने ऐसे तमाम दस्तावेजों को नष्ट कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बर्तानवी बस्तिवादी हुक्मरानों द्वारा बनाये गए दस्तावेजों का हवाला दिया है जिन्होंने अपनी बांटो और राज करो की रणनीती के तहत, जानबूझकर इतिहास को झुठलाने का काम किया था। दरअसल, वह बर्तानवी हुक्मरान ही थे जिन्होंने अपने सरकारी दस्तेवाजों के जरिये यह झूठ फैलाया कि राम के जन्मस्थान पर बने मंदिर को गिराकर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था।
“पूर्ण न्याय” दिलाने के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के निर्माण करने के लिए अयोध्या में किसी और जगह पर जमीन मुहैया कराने के निर्देश दिए है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इससे मुसलमानों के लिए 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के गैर-कानूनी विध्वंस की भरपाई हो जाएगी।
सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखने के नाम पर सभी को इस फैसले को स्वीकार करने के लिए कहा जा रहा है। लेकिन मानवता के खिलाफ इस गुनाह के लिए जिम्मेदार लोगों को यदि सजा नहीं मिलती है, इंसाफ नहीं हो सकता।
हम इस फैसले को किस तरह से मान सकते है, जहां गुनहगारों को कोई सजा न मिले? यह केवल मुसलमान लोगों पर नहीं है बल्कि हमारे देश के तमाम इंसाफ-पसंद लोगों पर यह एक हमला है।
हम हिन्दोस्तान के लोग इबादत के स्थान के विध्वंस के खिलाफ है। हम जमीर के अधिकार की हिफाजत करते हैं – यानि हर एक व्यक्ति के किसी में आस्था रखने और पूजा के तरीके को अपनाने के अधिकार की हिफाजत करते है।
हम इंसाफ के इस संघर्ष को जारी रखेंगे। हम इस मांग को लगातार उठाते रहेंगे कि जो लोग बाबरी मस्जिद में विध्वंस के लिए और 1992-93 के दौरान फैलाई साम्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार है, उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए। हम यह मांग करते हैं कि समाज के हर एक सदस्य के जमीर के अधिकार की एक सार्वभौमिक और अनुल्लंघनीय अधिकार बतौर इज्जत और हिफाजत की जानी चाहिए।
जन प्रदर्शन में की गई मांगे:
बाबरी मस्जिद विध्वंस के गुनाहगारों को सजा दो!
बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार किया जाये!
सांप्रदायिक और बंटवारे की राजनीति – नहीं नहीं!
हमारे लोगों के लिए शांति, एकता और समृद्धि – सही सही!
एक पर हमला, सब पर हमला! मस्जिद के विध्वंस की।
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