कासिम खली, बुलढाणा ( महाराष्ट्र ), NIT; बुलढाणा जिला के जंगल भालुओं के रहेने के लिये अच्छा है, यही कारण है कि यहां भालुओं का बसेरा बडी संख्या में देखने को मिल रहा है। विगत दिनों बुलढाणा जिले के ‘ज्ञानगंगा अभयारण्य’ से सटे इलाकों में अचानक भालु आक्रमक होएगए थे, जिसके चलते भालुओं ने मनुष्यों पर हमले भी किये जिसमें कई लोगों की जान चली गई तथा कई लोग जख्मी भी हुए हैं। भालुओं की इस आक्रमकता को देखकर वन्यजीव क्षेत्र से जुडे विशेषज्ञ भी सकते में हैं। भालुओं की इस आक्रमकता का पता लगाने के लिये अब बुलढाणा में ‘रिसर्च-आॅपरेशन’ आगामी 10 अप्रैल से आरंभ होने जा रहा है।बुलढाणा जिले के मध्य भाग में ‘ज्ञानगंगा अभयारण्य’ है जहां पर कई प्रकार के वन्य जीवों का बसेरा है। कई बार यह वन्यचर अपना अधिवास छोडकर रिहायशी इलाकों की तरफ आ जाते हैं। विगत वर्ष 2016 के मई माह से अभयारण्य से गई गांव के इतराफ भालुओं ने इन्सानों पर कई हमले किये जिसमें 5 की मौत तथा 15 से अधिक लोग जख्मी हुए। इसी बीच गत 27 नवंबर को प्रधान मुख्य वनसंरक्षक सरजन भगत बुलढाणा के दौरे पर आए थे। तब उनके सामने बुलढाणा में भालुओं के इस आतंक का मुद्दा बुलढाणा डीएफओ बी.टी.भगत ने रखा तो श्री सरजन भगत ने कहा की वे भालुओं के स्वभाव में आए इस बदलाव के कारण खोजने के लिये भालुओं पर काम करनेवाली विश्वस्तरीय संस्था ‘इंटरनॅशनल युनियन फॉर कंजर्वेशन नेचर’ में काम करने वाले गुजरात के भालु विशेषज्ञ डॉ. निषाद धारिया को बुलाएँगे। तत्पश्चात भालु विशेषज्ञ डॉ. निषाद धारिया, अमरावती के वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. स्वप्निल सोनोने 20 दिसंबर को बुलढाणा पहोंचे थे और प्राथमिक जानकारी हासिल की थी। यह भालु ‘ज्ञानगंगा अभयारण्य’ और प्रादेशिक वनविभाग में घुमते हैं इस लिये वन्यजीव विभाग व प्रादेशिक वनविभाग के अधिकारीयों से संशोधन की अनुमती प्राप्त करना जरूरी थी, जिसे दोनों विभाग से 23 मार्च को अनुमती मिलने के बाद 30 मार्च को गुजरात के डॉ.निर्षाथ धारिया व अमरावती के डॉ.स्वप्नील सोनोने, बुलडाणा आए और ‘संशोधन’ का ‘एक्शन प्लान’ तय्यार किया। आगामी 10 से 15 अप्रैल के बीच यह ‘रिसर्च’ आरंभ होने जा रही है जिसमें प्रमुख रूपसे गुजरात की निशासिंह और अमरावती के श्रीपाद देशमुख शामिल रहेंगे। साथ ही मध्य काल में अमेरिका के एक भालु विशेषज्ञ को भी बुलाया जाएगा।
- ऐसे होगा भालुओं पर संशोधन
ज्ञानगंगा अभयारण्य के नक्शे पर मार्ग निश्चित करने के बाद जंगल में उसी मार्ग पर चला जाएगा। इस संशोधन के लिये सुबह और शाम को जंगल में घुमा जाएगा तथा भालुओं के पदमार्ग, मल तथा उनके व्दारा खोदी गई जमीन के निशान इकठ्ठा किये जाएंगे। जंगल का कौन सा भाग भालुओं के लिये उपयुक्त है इसका भी पता लगाया जाएगा। जंगल में घूमते समय जीपीएस प्रणाली का भी उपयोग किया जाएगा। जंगल में घुमने वाले वनकर्मी, स्थानिक किसान व चरवाहों से भी भालुओं की जानकारी बटोरी जाएगी। ग्रीष्मकाल के 3 माह तक यह पूरा डाटा जमा करने के बाद बरसात लगने के बाद वन्यजीव क्षेत्र में इस्तेमाल की जानेवाली अत्याधुनिक प्रणाली ‘जियोगरॉफिक इन्फॉरमेशन सिस्टम’ (जीआईएस) का उपयोग किया जाएगा। यह प्रणाली सेटेलाईट से जुडी रहेग
- विशेष समिती से लेना पडी अनुमती
बुलढाणा का ‘ज्ञानगंगा अभयारण्य’ वन्यजीव विभाग के अंतर्गत आता है। किसी भी अभयारण्य में संशोधन के लिये बिना अनुमती प्रवेश नही किया जा सकता है। बुलढाणा में भालुओं पर जो संशोधन किया जा रहा है उसमें वन्यजीव विभाग व प्रादेशिक वनविभाग का भुगर्भ शामिल है। इसी लिये इस संशोधन के लिये अमरावती संभागीय स्तर पर गठीत टेक्निकल कमेटी फॉर सेक्शनरी रिसर्च एन्ड प्राजेक्ट इन प्रोटैक्टेड एरिया नामी समिती से अनुमती ली गई है। इस समिती के अध्यक्ष मेलघाट टाईगर प्रोजेक्ट के सीसीएफ एम.एस.रेड्डी हैं जबकी प्रादेशिक सीसीएफ संजीव गौड सहीत अमरावती विश्वविद्यालय के झुलॉजी विभाग के प्रमुख सहीत संभाग के सभी डीएफओं इसके सदस्य है।
पिछले कुछ माह से भालुओं के हमलों का प्रमाण बढ गया है। इसी विषय में भालुओं के बर्ताव में आए इस बदलाव का पता लगाने की बात वरिष्ठ अधिकारीयों से की गई थी। जिसे मान्यता मिल गई है और अब आगामी 10 अप्रैल से ‘ज्ञानगंगा अभयारण्य’ व इस से सटे जंगल में यह संशोधन कार्य आरंभ होने जा रहा है। इस प्रकार की जानकारी डी.एफ.ओ.बुलढाणा बी.टी.भगत ने मीडिया को दी है।
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