मध्यप्रदेश का नीमच जिला चिकित्सालय बन चुका है मौत का अस्पताल, आरटीआई के जरिए जारी हुआ आकड़ा | New India Times

संदीप शुक्ला, नीमच ( मध्यप्रदेश ), NIT; मध्यप्रदेश का नीमच जिला चिकित्सालय बन चुका है मौत का अस्पताल, आरटीआई के जरिए जारी हुआ आकड़ा | New India Timesजिला चिकित्सालय नीमच में बच्चों व महिलाओं की मौत का आंकड़ा जारी करते हुए समिति सदस्य व युवा नेता तरूण बाहेती और संदीप राठौर ने बताया कि नीमच जिला चिकित्सालय मौत का अस्पताल बन चुका है। नीमच जिले के लिए यह शर्मनाक बात है कि पिछले 2 वर्ष 9 माह में जिला चिकित्सालय में 770 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिसमें 692 तो नवजात बच्चे हैं। शेष 78 बच्चे वे हैं जो बीमारी से ग्रसित थे और उपचार के दौरान उनकी मौत हुई है। साथ ही युवा नेताओं ने जिला चिकित्सालय नीमच में महिलाओं की मौत का आंकड़ा जारी करते हुए बताया कि 116 महिलाओं की भी पिछले 5 वषों में में मौत हो चुकी है, जिसमें प्रसूताओं से लेकर खून की कमी से ग्रसित महिलाएं शामिल है, जिसे देख यह कह सकते हैं कि नीमच का जिला चिकित्सालय हत्यारा जिला चिकित्सालय बन चुका है। युवानेताओं ने कहा कि जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों की असंवेदन शिलता के चलते हुए इन मौतों के मामले में इन्हें कभी माफ नहीं किया जा सकता है। अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश सरकार और उनके प्रतिनिधि उत्कृष्ठ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की बात कर रहे हैं। वे बताये कि उनके दावे कहा तक सार्थक साबित हो रहे हैं।

युवा नेता तरूण बाहेती व संदीप राठौर ने आरोप लगाया कि जिला चिकित्सालय में बार-बार चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ की लापरवाही उजागर होने के बाद भी शासन-प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधि विधायक दिलीपसिंह परिहार, कैलाश चावला, ओमप्रकाश सकलेचा व सांसद सुधीर गुप्ता से सवाल कर पूछा है कि क्या उन्हें इन मौतों के आंकड़ों से दर्द नहीं होता है। जिला चिकित्सालय की समस्याओं की जानकारी होने के बावजूद यह बात समझ से परे की आखिर उन्होंने क्यों इस मुद्दे पर क्यों आंखे मूंद रखी है। आए दिन जिला चिकित्सालय के प्रसूतिगृह में महिलाओं की मौत हो रही है। पिछले 2 वर्ष 9 माह में 770 बच्चों की मौत के अलावा पिछले 5 वर्ष में महिलाओं की मौत का आंकड़ा 116 तक पहुंच चुका है, फिर भी विधायक और सांसद को कोई सरोकार नहीं है। युवा नेताओं ने आरोप लगाया कि जिला चिकित्सालय का आलम यह है कि जब तक चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ की जेब गर्म नहीं होती है। तब तक वे प्रसूताओं और रोगिया का उपचार नहीं करते हैं। रोगी के परिजन जब तक रिश्वत के रूपयों का इंतजाम करते हैं। तब तक या तो रोगी के प्राण पखेरू हो जाते हैं। या फिर उसे रेफर कर दिया जाता है। 

युवा नेता श्री बाहेती व राठौर ने आरोप लगाया किे पिछले एक माह में संघर्ष समिति के समक्ष कई मामले में आ चुके हैं, लेकिन प्रत्येक मामले में शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। जांच के नाम पर सिर्फ लीपापोती हुई है। उन्होंने बताया कि विगत दिनों कुकड़ेश्वर के उदयराम की समय पर आक्सीजन नहीं मिलने के कारण खांसते-खांसते मौत हो गई थी, उस मामले में भी प्रशासन ने जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन कुछ नहीं हो पाया। ऐसा ही मामला डॉ. सविता चमड़िया का सामने आया था, जिसमें प्रसूति करने एवज में डॉ. चमड़िया ने प्रसूता के परिजनों से 15 हजार की रिश्वत मांगी थी, जिस पर संघर्ष समिति ने आंदोलन किया था, लेकिन उस मामले की जांच में लीपापोती कर दी गई। मामले में सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह रही है कि प्रशासन ने पीड़ित पक्ष का बयान लेने की जिम्मेदारी भी जिला चिकित्सालय के सीएमओ डॉ. केके वास्कले को सौंपी जिस पर पहले ही दवा घोटाले के आरोप सिध्द हो चुके हैंऔर उन्हें विधायक दिलीपसिंह परिहार का सरंक्षण प्राप्त है, जिसके कारण वे पिछले 8 वर्ष से नीमच जिले में जमे हुए हैं। 

युवा नेताओं ने बताया कि जिला चिकित्सालय से सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार जिला चिकित्सालय में पिछले 2वर्ष 9 माह में जनवरी 2014 से 2016 में अब तक 770 बच्चों की मौत हुई है। युवा नेताओं ने बताया कि यूनिसेफ ने प्रदेश के चुनिंदा शहरों में शिशु मृत्युदर कम करने के लिए शिशु गहन चिकित्सा इकाई की स्थापना की थी, लेकिन विडंबना देखिए कि पिछले 2 वर्ष 9 माह में उपचार के दौरान 692 नवजात शिशुओं की मौत शिशु गहन चिकित्सा ईकाई में हुई हैं, जबकि वहां 24 घंटे शिशु रोग विशेषज्ञ तैनात रहते हैं। ऐसे में 2 वर्ष 9 माह में इतने बच्चों की मौत होना चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ को कठघरे में खड़ा करता है। 

युवा नेताओं ने जिला चिकित्सालय से उपलब्ध अधिकृत जानकारी का हवाला देते हुए बताया कि जिला चिकित्सालय के शिशु गहन चिकित्सा इकाई में पिछले 2 वर्ष 9 माह में 692 नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है। साथ ही अस्पताल में उपचार के दौरान एक माह से एक वर्ष के 78 बच्चों की भी उपचार के दौरान मौत हुई है, जिसमें 2014 में 20, 2015 में 25 व 2016 में अब तक 28 बच्चों की मौत हो चुकी है।

युवा नेता तरूण बाहेती और संदीप राठौर ने बताया कि हत्यारे जिला चिकित्सालय में बच्चों की मौत के साथ ही महिलाओं की मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। पिछले 2 वर्ष 10 माह में 19 प्रसूताओं की मृत्यु प्रसूति के दौरान हुई है तथा पिछले 5 वर्ष में 62 महिलाओं की मौत खून की कमी से, जबकि 35 महिलाओं जच्चा-बच्चा वार्ड में हो चुकी है। विडंबना है कि नीमच जिले में आए दिन बड़े-बड़े रक्तदान शिविर लगते हैं और सैकड़ों यूनिट रक्तदान होता है। ऐसे में खून की कमी से 62 महिलाओं की मौत होना। कई प्रश्नों को जन्म देता है। ऐसे में कैसे कहें कि जिला चिकित्सालय में चिकित्सक अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं।

युवा नेताओं ने आरोप लगाया कि नीमच जिले में बच्चों और महिलाओं की मृत्यु के यह आंकड़े प्रदेश सरकार व नीमच जिले के विधायकों और सांसद के लिए भी शर्मनाक बात है। नीमच जिले की जनता को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह सहित नीमच के सांसद, विधायकों से इन मौतों पर जवाब मांगना चाहिए। युवा नेताओं ने इन मौतों के आंकड़ों को लेकर नीमच जिले के सांसद और विधायकों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जन प्रतिनिधियों को अपने पद पर रहने का अधिकार ही नहीं है, उन्हें अपने पद से त्याग-पत्र देकर अपने घर बैठना चाहिए। युवा नेताओं ने मांग है कि जिला चिकित्सालय में इन मौतों के लिए जिम्मेदार चिकित्सकों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए। युवाओं ने नेताओं ने कहा कि वे जिला चिकित्सालय में व्याप्त समस्याओं और लापरवाही के खिलाफ संघर्ष समिति लगातार आवाज उठाती रहेगी।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading