अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी (यूपी), NIT:
देश की अज़ादारी में झांसी का नाम रोशन करने वाली ऐतिहासिक मजलिसे अज़ा की शुरुआत रविवार सुबह दस बजे “अज़ाख़ाना – ए- अबूतालिब” मेवातीपुरा झांसी में हुई।
सर्व प्रथम तिलावते क़ुरान मौलाना सैयद फरमान अली आब्दी, सफल संचालन- मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी ने किया।
मर्सियाख़्वानी देश के मशहूर मर्सियाख़्वां ने,”है अजब चीज़ बहन भाई का प्यार – छोड़ कर भाईयों को बहनों को नहीं मिलता क़रार।” पढ़कर वातावरण भावुक कर दिया।
उसके बाद जनाब चन्दन सान्याल (फैज़ाबाद) ने पेशख़ानी की और कलाम,” अली ने बाये बिस्मिल्लाह को मेराज बख़्शी है, न होते गर अली तो क़ुरान को नुक्ता नहीं मिलता।”
मजलिसे अज़ा को ख़िताब करते हुऐ मुज़फ्फरनगर से पधारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मौलाना कर्रार मौलाई ने फरमाया,” इमाम हुसेन और उनके परिवार के अट्ठारह बनी हाशिम और उनके 72 साथी ही हैं जिन्होंने हमें इज़्ज़त के साथ जीना सिखाया। सत्य,अहिंसा, वतन से मोहब्बत और सबकी भलाई के लिये कार्य करने का अनुपम संदेश दिया। इमाम हुसैन ने “ज़िल्लत की ज़िंदगी से इज़्ज़त की मौत बहतर है।” का स्पष्ट संदेश दिया। आज जो कुछ भी हमारे पास है, वह इमाम हुसैन का ही सदक़ा है। हमारा अज़ीम मुल्क हिन्दुस्तान इमाम हुसैन और उनके साथियों को बहुत प्यारा था। उन्होंने हिन्दुस्तान आने की इच्छा प्रकट की थी। आज 18 बनी हाशिम के ताबूतों की शबीह उठाकर हम हिन्दुस्तानी उन्हें श्रृध्दापूर्वक ताज़ियत पेश कर रहे हैं। यह अट्ठारह बनी हाशिम हैं, इमाम हुसैन, उनके भाई – हज़रत अब्बास, अब्दुल्ला, जाफर, उस्मान, मोहम्मद, जाफर, अब्दुल रहमान इब्ने अक़ील, उनके भतीजे – क़ासिम, अब्दुल्ला, अबूबकर, अब्दुल्ला और अबु अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम इब्ने अक़ील, अब्दुल्ला बिन मुस्लिम बिन अक़ील, उनके भांजे – औन व मोहम्मद, उनके लड़के – अली अकबर, अब्दुल्ला रज़ी उर्फ अली असग़र। इनको सच्ची श्रृध्दांजली यही होगी कि हम सत्य अहिंसा आपसी प्रेम विश्वास और भाईचारे के साथ रहकर देश और समाज का भला करें।
इसके बाद ग़मगीन माहौल में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के साथ 18 बनी हाशिम के ताबूत, ज़ुलजनाह और अलम की ज़ियारत कराई गई। मसायबी तक़रीर अन्तर्राष्ट्रीय युवा मुक़र्रिर मौलाना सैयद नावेद हैदर आब्दी ने पढ़े। नौहाख्वानी अन्तर्राष्ट्रीय नौहाख्वां जनाब शबीह अब्बास, अज़ान अब्बास , हाशिम रज़ा और साथियों ने की। इसके पश्चात सभी अज़ादारों ने दस्तरख्वान में शिरकत की। अंत में देश, दुनिया, समाज में सुख शांति और उन्नति की प्रार्थना की गई। इस अवसर सर्व श्री सैयद शहनशाह हैदर आब्दी, काज़िम रज़ा, नदीम हैदर, अज़ीम हैदर, नज़र हैदर फाईक़, नजमी हैदर, ज़ायर सगीर मेहदी, हाजी तकी हसन, शाकिर अली, मज़हर हसनैन, मोहम्म्द शाहिद, ज़मीर अली, रिज़वान हुसैन, ज़फर हसनैन, समर हसनैन,सैयद कर्रार हुसेन, सलमान हैदर, अस्कर अली, मोहम्मद इदरीस, शाहरुख हुसैन, आसिफ हैदर, दानिश अली, फज़ले अली, नादिर अली, शहज़ादे अली, शाहनवाज़ अली , ताज अब्बास, अता अब्बास, मोहम्मद अब्बास, रईस अब्बास, सरकार हैदर” चन्दा भाई”, आरिफ गुलरेज़, नजमुल हसन, ज़ाहिद मिर्ज़ा, मज़ाहिर हुसैन, ताहिर हुसैन, ज़ामिन अली, राहत हुसैन, ज़मीर अब्बास, आबिस रज़ा, सलमान हैदर, अली जाफर, अली क़मर, फुर्क़ान हैदर, निसार हैदर “ज़िया”, मज़ाहिर हुसैन, आरिफ रज़ा, इरशाद रज़ा, असहाबे पंजतन, जाफर नवाब, काज़िम जाफर, वसी हैदर, नाज़िम जाफर, नक़ी हैदर, जावेद अली, क़मर हैदर, ज़ामिन अब्बास, ज़ाहिद हुसैन” “इंतज़ार”,अख़्तर हुसैन, नईमुद्दीन, मुख़्तार अली, के साथ हज़ारों की संख्या में इमाम हुसैन के अन्य धर्मावलम्बी अज़ादार और शिया मुस्लिम महिलाऐं बच्चे और पुरुष काले लिबास में उपस्थित रहे। “अलविदा अलविदा, ऐ हुसैन अलविदा” की गमगीन सदाओं के साथ मातमी जुलुस का समापन हो गया।
आभार संयोजक सैयद जावेद अली आब्दी ने ज्ञापित किया।
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