मोहम्मद तारिक, भोपाल, NIT; विश्व में धर्मनिरपेक्षता और मानव अधिकार की आड़ में इस्लाम को बदनाम कर मुसलमान को आर्थिक, शारीरिक, मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए मनमानी पृष्ठ भूमि के निरंतर प्रयास जारी ! फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका या अन्य देशों में बुर्का पर प्रतिबंध लगाने की साजिशें जबकि पाश्चात्य शैली में मर्द और औरत निर्वस्त्र रहना वहां की परंपरा है ! बिल्कुल ठीक वैसे ही भारत के अंदर तीन तलाक के मुद्दे पर काले हो जाते हैं समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पढ़े लिखे सभ्य से दिखने वाले 85% मूल आबादी की सार्वजनिक सुविधाओं समस्याओं को छोड़ 15% अल्प संख्यक समुदाय के लिए अपमान दृष्टि से रचित मुद्दों में उलझे रहते हैं !
खासतौर से भारत के मुसलमानों को समझना चाहिए कि ढोंगी धर्मनिरपेक्ष शासन कालों और मानवाधिकार की आड़ में सात दशक से इस्लाम धर्म के अनुयायियों को पहुंचाई जाती रही है हानी तो कुछ भरपाई तो करना होगी ! “और कुछ मौकापरस्त इस्लाम को तो मानते हैं लेकिन इस्लाम को जानते ही नहीं ! इस्लाम के खिलाफ उनका अमल क्योंकि पवित्र ग्रंथ खोलकर पढ़ते ही नहीं और उसका अर्थ समझते भी नहीं, इसीलिए वह जल्द दूसरे के बहकावे में आकर शरीयत के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं ! तलाक की बात मन-मुटाओ से संबंध विच्छेद से होती है और जो पूर्व से व्यवस्थाएं हैं उन्हें बदला नहीं जा सकता और न हीं बदलने जाने जैसी चेष्टा की जानी चाहिए और इस्लाम धर्म में तो औरतों को भी खुला के माध्यम से अपने पति से तलाक लेने का पूर्व से अधिकार है !” जुल्म के खिलाफ सब्र न कर कभी आतंकवादी बन जाते निहत्थे और मासूम लोगों की जिंदगीयों के साथ खिलवाड़ तक कर देते हैं ! उन्हें यह समझना चाहिए कि इस्लाम पूरे आलम के लिए पूरी इंसानियत के लिए है और इस्लाम इंसानियत सिखाता है मोहब्बत का पैगाम देता है!
इस्लाम धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने वाले यहां तक कहते हैं कि लहसुन, प्याज, मांस मटन, चिकन, मछली खाना पाप जबकि वह स्वयं लहसुन प्याज और मृत पशु से बने आहार का करते रहे व्यापार ! इस्लाम धर्म में सामंतवादी, पूंजीवादी, अवसरवादी, जुआ-सट्टा, सूद-ब्याज व्यापार, दहेज प्रथा, लोभ लालच, बिना निकाह किए शारीरिक संबंध का नहीं इस्लाम धर्म में कोई स्थान उसे हराम करार दिया गया ! हां यह भी सत्य है इस्लाम धर्म में महिला मां बहन पुत्री माहवारी से तो उसे अछूत मान कर किसी स्टोर रूम, चौखट के बाहर, रसोई घर से दूर नहीं रखा जाता है! बस अ-पवित्रता इतनी जो उस माहवारी के पांच-सात दिन में इबादत करने योग्य नहीं !
“धर्म ही नहीं मेरा कर्म बोलेगा…”
“अब तो वैचारिक द्वंद है!”
मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.