सावन मास में है गोला गोकर्णनाथ की आराधना का बड़ा महत्व, छोटी काशी के नाम से भी है प्रसिद्ध | New India Times

वी.के.त्रिवेदी, ब्यूरो चीफ, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT:

सावन मास में है गोला गोकर्णनाथ की आराधना का बड़ा महत्व, छोटी काशी के नाम से भी है प्रसिद्ध | New India Times

भारत वर्ष के राज्य उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी में छोटीकाशी के नाम से विख्यात गोला गोकर्णनाथ में स्थित भगवान शिव की श्रावण मास में आराधना का विशेष महत्व है। इस तीर्थ स्थल से कई पौराणिक गाथाएं जुड़ी हुई हैं। हर वर्ष श्रावण मास में लाखों की संख्या में भक्त शिवलिंग का जलाभिषेक व दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन मास में इस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल मिलते हैं। छोटीकाशी में प्राचीन शिवलिंग के समीप तीन शिवलिंग और स्थापित हैं, इनमें बूढ़े बाबा का शिवलिंग सबसे प्राचीन है जिससे काटने का प्रयास औरंगजेब ने किया था।कहा जाता है कि ऐसे में कैमी वृक्ष से निकली भैरों की सेना ने औरंगजेब की सेना पर आक्रमण कर दिया था, तो वह डर कर भाग गया। शिवलिंग में काटने के निशान अब भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। यह शिवलिंग बहुत ही चमत्कारी माना गया है। इस मंदिर में पूजा अर्चना के बाद शिव भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।
गोला गोकर्णनाथ शिव मंदिर के पीछे भगवान श्रीकाल भैरवजी महाराज का मंदिर है। मंदिर के बीच गड्ढे में एक शिवलिंग स्थापित है जो प्राचीन गोला गोकर्णनाथ शिव श्रृंग की आकृति का ही है। यहां भी भक्तजन भैरव जी का पूजन करने के साथ शिवलिंग पूजन करते हैं। सावन मास में है गोला गोकर्णनाथ की आराधना का बड़ा महत्व, छोटी काशी के नाम से भी है प्रसिद्ध | New India Times

गोला गोकर्णनाथ प्राचीन शिव मंदिर के सामने चबूतरे पर कई शिवलिंगों के बीच पारद शिवलिंग भी स्थापित है,जो अत्यंत ही दुर्लभ माना गया है। इस शिवलिंग की स्थापना वर्ष 2001 में की गयी थी। रसशास्त्र, रसरत्न, समुच्चय में पारद को शिवजी वीर्य लिखा गया है। पारद से शिवलिंग निर्मित करने की विधि भी बताई गई है। पारद शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से मनुष्य को अक्षय फल की प्राप्ति होती हैं। पारद का विशाल शिवलिंग हरिद्वार में भी स्थापित है।

यहां विराजमान हुए थे शिव

लंका ले जाने का रावण ने लिया था प्रण

लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ जो कि छोटीकाशी के नाम से विख्यात इस शिवनगरी में रेलवे स्टेशन से मात्र 200 मीटर की दूरी पर पौराणिक शिवलिंग स्थापित है। इसे सतयुग में लंका के राजा रावण द्वारा लाया गया था।सरायन नदी और उल्ल नदी के बीच गाय के कान के समान इस क्षेत्र इस अलौकिक शिव मंदिर स्वयं स्थापित हो जाने के बाद इस क्षेत्र को गोकर्ण क्षेत्र के नाम से पुराणों में भी इसका विवरण मिलता है। लंका के राजा रावण द्वारा किए गए 12 सालों की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब रावण से वरदान मांगने के लिए कहा, तो रावण ने भगवान शिव से कहा कि वह स्वयं भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है, अतः उसके साथ लंका चलें और वहीं विराजमान रहें। रावण की यह बात सुनकर देवलोक में भूचाल आ गया। इन्द्र सहित सभी देवता हतप्रभ होकर बम्ह्म जी के पास गये और निवेदन किया कि यदि औघड़ दानी भगवान शिव रावण के साथ लंका चले गये, तो संसार और सृष्टि का कार्य कैसे होगा। कौन करेगा। जब ब्रह्म जी ने भगवान शिव से सोच समझकर वरदान देने को प्रेरित किया इस पर भगवान शिव ने कहा कि रावण यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो, तो ले चलो परन्तु याद रखना कि जहां इस शिवलिंग को भूमि स्पर्श हो जायेगी वहीं पर यह स्थापित हो जाएगा।इससे रावण सहमत हो गया। इसके बाद भगवान शिव स्वयं को एक शिवलिंग में परिवर्तित कर लिया और उसी शिवलिंग को लेकर रावण जब इस क्षेत्र में से जा रहा था तभी यह क्षेत्र भगवान शिव को अच्छा लगा और उन्होंने रावण में तीव्र लघुशंका की इच्छा जगा दी। लघुशंका से काफी परेशान होकर रावण ने यहीं पर गायें चरा रहे एक ग्वाले को बुलाया और शिवलिंग को उसके सिर पर रख और पकड़कर वह लघुशंका करने लगा, जिस स्थान पर रावण ने लघुशंका की थी, वहां झील बन गयी। इसे सतौती के नाम से जाना जाता है। जब रावण लघुशंका कर रहा था, तब भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। थोड़ी देर बाद ग्वाले ने रावण को आवाज देकर बुलाया कि अब वह भार बढ़ाने के कारण शिवलिंग नहीं सम्भाल सकता है और इसलिए वह जल्दी आकर शिवलिंग को ले ले, लेकिन रावण लघुशंका में ही लीन था।आखिरकार थककर ग्वाले ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। जब रावण ने यह देखा तो क्रोध में आकर ग्वाले को मारने के लिए पीछे से दौड़ा, तब ग्वाले ने एक कुएं में कूदकर जान दे दी। परेशान रावण ने वापस आकर शिवलिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। हारकर क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को जोर से दबाया, जिसका निशाना शिवलिंग में आज तक विद्यमान है। उसके बाद रावण अपनी नगरी लंका चला गया। रावण के जाने के बाद भगवान शिव ने ग्वाले की आत्मा को बुलाकर कहा कि आज के बाद संसार तुम्हें भूतनाथ के नाम से जानेगा। मेरे दर्शनों के उपरांत तुम्हारे दर्शन करने वाले भक्तों को विशेष पुण्यलाभ होगा।इसके बाद हर वर्ष श्रावण मास और चैत मास को भगवान शिव दर्शनों को आने वाले लाखों भक्त शिवलिंग के दर्शनों के बाद बाबा भूतनाथ के दर्शन अवश्य करते हैं।


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