अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; राजस्थान में भाजपा सरकार के गिरते ग्राफ के बावजूद कांग्रेस नेताओं में आपसी एकजुटता के कमी के कारण कांग्रेस की मजबूत स्थिति के बावजूद सत्ता हासिल करना मुश्किल दिखाई दे रहा है। राजस्थान के धोलपुर विधानसभा का उपचुनाव अगामी 9 अप्रेल को होना है। इस चुनाव में बसपा उम्मीदवार न होने के कारण बसपा का समर्थन कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा को मिलना तय होने के बावजूद भी उनका जीतना मुश्किल माना जा रहा है। बनवारी लाल शर्मा के नामांकन भरते समय कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट तो अपनी टीम के साथ पहुंचे थे लेकिन अंतिम समय तक पुर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कांग्रेसियों को इंतजार था लेकिन गहलोत आखिर तक वहां नही पहुंचे। इसके कारण आम कांग्रेसजनों को काफी निराश होते देखे गये।राजस्थान में कांग्रेस अब मुख्य रुप से दो धड़ों मे बंटी नजर आ रही है। एक धड़ा पुर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है, तो दुसरे धड़े का नेतृत्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलेट कर रहे हैं। दोनों नेताओं की अलग-अलग सोशल मिडिया ग्रुप बने हुये हैं, जो अक्सर अपने नेता का प्रचार प्रसार करते रहते हैं लेकिन कभी-कभी यह एक दुसरे के खिलाफ भी सोशल मिडिया का उपयोग करते हैं। गहलौत वेसे तो दो-दो दफा मुख्यमंत्री व प्रदेशाध्यक्ष रहने के साथ-साथ केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। गहलौत लोकप्रिय व संगठनकर्ता माने जाते हैं। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद दुबारा सरकार लाने में वो हमेशा नाकामयाब रहे हैं। जबकि सचिन पायलेट सोने का चम्मच लेकर राजेश पायलेट के घर पैदा होने के कारण सचिन पायलेट भी उनके देहांत के बाद सांसद व केन्द्रीय मंत्री बने थे। लेकिन इस बार वह प्रदेशाध्यक्ष बने एवं लोकसभा का चुनाव भी हार गये।लेकिन जनता में अपनी पकड़ बनाने के बावजूद पायलेट ने अधिकतम समय गहलौत को कमजोर करने मे बिताने के कारण कांग्रेस की हालत जस की तस कमजोर ही बनी हुई है। दूसरी तरफ इन दोनों नेताओं के अलावा राहुल गांधी के काफी नजदिकी माने जाने वाले पुर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह व सीपी जोशी के अलावा राष्ट्रीय सचिव हरीश गोधारा भी अपने अलग-अलग ग्रुप बना रखे हैं। लेकिन तीनों ही सांसद का चुनाव हारने के बावजूद अंकड़ पर आज भी कायम हैं।
राजस्थाध कांग्रेस के नेताओं में एकजुटता की कमी के कारण धोलपुर के उपचुनाव में भाजपा की जीत का आंकलन है। वहीं कांग्रेस में अनेक ऐसे नेता मौजूद हैं जो जेहनी तौर पर संघ के काफी करीब होने के कारण कांग्रेस के डूबते जहाज से छलांग लगाकर भाजपा में कुदने को तैयार बेठे हैं। 2018 की शुरुवात के चलते इस तरह के अनेक कांग्रेस नेताओं के भाजपा में जाने का सिलसिला इतना तेजी के साथ चलेगा जिसकी कल्पना करना भी आज काफी आसान नहीं है।
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