मकसूद अली, यवतमाल (महाराष्ट्र), NIT;
उपभोक्ताओं को खरीद-फरोख्त में मिलने वाली धोखे और फरेब से उबारने और उन्हें इंसाफ दिलाने के मकसद से ग्राहक न्यायमंच का गठन अब अपनी महत्ता खोते जा रहा है। वजह है उपभोक्ताओं को न्यायधीशों द्वारा अपनी पैरवी करने से रोका जाना है।
जिला ग्राहक न्याय मंचों पर सेवानिवृत न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। इस नियुक्ति के पीछे सरकार की यही मंशा होती है कि सेवानिवृत न्यायाधीशों को कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों की ठीकठाक जानकारी होती है, जिससे ग्राहकों को न्याय मिलने में आसानी होती है। लेकिन इन दिनों ग्राहक न्यायमंच कई तरह की गड़बड़ियों के केंद्र में तब्दील होता जा रहा है।
नियमानुसार ग्राहक न्याय मंच में उपभोक्ता को अपने मामले की पैरवी का अधिकार हासिल है, लेकिन जब कोई उपभोक्ता इन दिनों ग्राहक न्यायमंच में न्याय के लिए फरियाद करता है तो पहली ही तारीख पर न्यायाधीश उपभोक्ता से उनके वकील के बारे में पूछकर असुविधा खड़ी कर देते हैं। वकील नहीं होने पर डपटना और रौब गाँठना जैसे इन ग्राहक न्यायमंचों की आम दिनचर्या हो गयी है। उपभोक्ता इसलिए वकील नहीं करता है कि उसके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे नहीं होते। वकील के जरिए पैरवी करने पर वकील मिलने वाले नुकसान भरपाई में हिस्सेदारी मांगता है। दबी जुबान में तो यहाँ तक कहा जाता है कि हिस्सेदारी के सांठगांठ की डोर ग्राहक न्याय मंच के न्यायदाताओं तक भी पहुँचती है।
नियम यह है कि धोखेधड़ी का शिकार कोई भी उपभोक्ता सादे कागज पर ग्राहक न्यायमंच में खुद पर हुए अन्याय की शिकायत कर सकता है। शिकायत के साथ ही उपभोक्ता को वाजिब कागजात जैसे सामान खरीद का बिल, दुकान का नाम पता, दुकानदार का नाम पता और अपने पहचान पत्र की प्रतियां जमा करानी होती है। शिकायत जिस संबंध में की गयी है, उसके विशेषज्ञ द्वारा हस्ताक्षरयुक्त तकनीकी अहवाल भी जमा करना होता है। फिर तारीख मिलने पर संक्षेप में न्यायमंच के न्यायाधीश के समक्ष अपनी बात रखनी होती है। शिकायतकर्ता की बात सुनने के बाद न्यायाधीश उक्त दुकानदार से सफाई मांगता है और संतुष्ट नहीं होने पर जुर्माना और कई बार तो कारावास तक की सजा सुनाता है। इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी वकील की जरुरत नहीं होती है। लेकिन इनदिनों ग्राहक न्यायमंचों में न्यायाधीश द्वारा पहली ही तारीख पर वकील के बारे में पूछकर आम उपभोक्ता को न्याय से वंचित करने की प्रक्रिया शुरु की जा रही है। आम नागरिकों ने राज्य सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए मांग की है कि ग्राहक न्यायमंचों पर ऐसे ही सेवानिवृत न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाए जो जन-सामान्य की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो न कि अतिरिक्त कमाई के प्रति।
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