अतिश दीपंकर, पटना (बिहार), NIT; बिहार के भागलपुर जिले में आज विक्रमशिला महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। महोत्सव में कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयुक, डी एम , एसएसपी, DSP सहित अन्य पुलिस पदाधिकारी, प्रमुख, उपप्रमुख सहित ,अन्य जनप्रतिनिधि एवं सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे। महोत्सव में मतभेद किये जाने का भी आरोप लगाया गया है। कुछ लोगों को आमंत्रण पत्र दिया गया और कुछ को नहीं दिया गया। लोगों ने आरोप लगाया कि महोत्सव कुछ चंद लोगों की इशारे पर चलता है। इससे अच्छा है कि ऐसा महोत्सव ना हो । मिडिया के बीच भी मतभेद किया गया है। कुछ को आमंत्रण दिया गया, कुछ को नहीं दिया गया। विक्रमशिला की उपेक्षा को लेकर विभिन्न संगठनों ने विभिन्न तरीकों से इसका विरोध किया है। विरोध के बीच विक्रमशिला महोत्सव का उद्घाटन किया गया। ज्ञातव्य है कि 2007 से विक्रमशिला महोत्सव मनाया जा रहा है लेकिन आज तक विक्रमशिला का विकास नहीं हो पाया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि विक्रमशिला महोत्सव में पैसों का दुरुपयोग होता ह, यदि उतना पैसा गरीबों में लगा दिया जाता तो कुछ लोगों का उद्धार हो जाता, लेकिन इस महोत्सव में कुछ चंद लोगों का ही उद्धार होता है। आखिर इस महोत्सव से आजतक मिला क्या ? 2007 में प्रथम- प्रथम विक्रमशिला महोत्सव का जो आगाज हुआ था वैसा आज तक नहीं हो पाया है। 2007 विक्रमशिला के महोत्सव के संयोजक डॉक्टर प्रोफेसर विनय प्रसाद गुप्त की संयोजक तत्व में जो कार्यक्रम हुआ था वो यादगार बन कर रह गया है और वैसा कार्यक्रम अब तक नहीं हो पाया है। क्षेत्र के लोग आज भी वैसे कार्यक्रम की अपेक्षा रखते हैं। यह तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन हुआ था।
लोगों का आरोप है की आयोजन से कुछ चंद लोगों को ही फायदा होता है। सोचने वाली बात है कि, आज विक्रमशिला महोत्सव की स्थिति ऐसी क्यों हुई ? जाहिर है कि ,जिन्होंने विक्रमशिला के लिए पूरी जीवन भर काम किया था और उसे वैसे लोगों को सही जगह नहीं दिया गया। बल्कि उनकी उपेक्षा की गई। हो सकता है शायद यही कारण हो कि विक्रमशिला महोत्सव की यह दुर्गति हुई है। जाहिर है उचित लोगों को उचिता स्थान नहीं मिलेगा तो लोगों का विरोध तो होगा ही। इससे जुड़े लोगों को इस पर सोचना चाहिए कि यह महोत्सव की स्थिति ऐसी क्यों हो गई और मंथन कर अवश्य सीख लेना चाहिए।
हंलाकि प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विदेश से लोग पढ़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय का नालंदा से भी ज्यादा ख्याति थी। “विक्रमशिलि की स्थापत्य एवं मूर्तिकला ” पुस्तक में ,पुस्तक के लेखक डॉक्टर विनय प्रसाद गुप्त ने लिखा है कि ,नालंदा विश्वविद्यालय से भी यह विश्वविद्यालय काफी प्रचलित थी। इसकी उपेक्षा से लोगों में आक्रोश है।
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