संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है, यह बात जहाँआरा ने गोपाल किरन समाज सेवी संस्था, ग्वालियर के नेतृत्व मैं डिस्क्शन क्लब एवं (सी.सी.) गोपाल किरन समाज सेवी संस्था द्वारा आयोजित विश्व टीबी महिला नेतृत्व कार्यशाला सामुदायिक भवन श्रोती विहार ठाठीपुर ग्वालियर में कहा कि आप ने बताया कि
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 15 साल से छोटे 10 लाख बच्चे टीबी का शिकार होते हैं. इन 1 मिलियन बच्चों में से 2 लाख 10 हजार से ज्यादा बच्चों की इसी बीमारी के चलते हर साल मौत भी हो जाती है. और, ये सिर्फ वे बच्चे जो एच. आई..वी. नेगेटिव थे. क्योंकि जिन बच्चों को टी.वी. होती है उनके एच. आई. पॉजिटिव होने के चांसेस ज्यादा होते हैं। वहीं, आगेटीबीफैक्ट्स, ओआरजी में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार ही 67 मिलियन बच्चों को लैनेंट टीबी है, और हर साल इस TB के 8 लाख 50 हजार बच्चे पीड़ित हो रहे हैं.
इसका सबसे बड़ा कारण है बच्चों में टीबी के लक्षणों को ना पकड़ पाना. हंसते-खेलते बच्चों में यह गंभीर बीमारी कब घर कर जाती है, इसका पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है.आप लीडरशिप के बारे में विस्तार से बताया ।
श्रीप्रकाश सिंह निमराजे, गोपाल किरन समाज सेवी संस्था ग्वालियर कहा की भारतीय संविधान व कानून के मुताबिक पुत्री को पिता व अपने पति की संपत्ति से दोनों तरफ जमीन जायदाद आदि चल अचल संपत्ति में हिस्सा लेने का कानूनन हक है मगर रीति रिवाज के अनुसार परंपरा के मुताबिक जन्म से लेकर अंतिम समय तक पिता अपनी पुत्री को दान के रूप में विभिन्न उत्सव सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से कपड़े आदि की भेंट करता रहा है और करता आया है महिलाओं को जागरूक करें विधिक साक्षरता के माध्यम से संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी की मांग पुरजोर तरीके से तथा संपत्ति में उनका भी नाम हो यह कोशिश की जानी चाहिए ताकि आर्थिक रूप से मजबूत होने पर उनका सामाजिक सम्मान और परिवार में रुतबा भी बढेगा। बड़ों में टी.बी.के ये 5 लक्षण होते हैं, लेकिन बच्चों का मामला थोड़ा अलग है।
टीबी (क्षयरोग) के लक्षण;
लगातार 3 हफ्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना, खांसी के साथ खून का आना।,छाती में दर्द और सांस का फूलना।,वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।, शाम को बुखार का आना और ठंड लगना।,रात में पसीना आना।
सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी काजीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है तथा यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा लगाकर बात करनी चाहिए और मुंह पर हाथ रखकर खांसना और छींकना चाहिए।
हर वर्ष 24 मार्च विश्व टीबी दिवस (विश्व ट्यूबरक्लोसिस) मनाया जाता है। विश्व टीबी दिवस के माध्यम से टीबी जैसी समस्या के विषय में और इससे बचने के उपायों के विषय में बात करने में सहायता प्राप्त होती है। यह एक जानलेवा रोग है और छूट का रोग है अगर इसे शुरुआत में न रोका गया तो यह एक जानलेवा रोग बन जाता है।
टी.बी.
कीटाणु से होने वाली बीमारी है, जो कमजोर, कुपोषित व्यक्ति को आसानी से होती है। आम तौर पर यह बीमारी दो प्रकार की होती है। फेफड़े की टी.बी. और फेफड़े के बाहर की। फेफड़े की टी. बी. एक मरीज से दूसरे को फैल सकती है। और यही बीमारी घातक है। फेफड़े के बाहर की टी. बी. गले की गठानों में, जोड़ों में, रीढ़ की हड्डी में, आंतों में, मस्तिष्क इत्यादि में हो सकती है। इस प्रकार की टी. बी. से दूसरो को कीटाणु फैलने का खतरा नहीं रहता।
फेफड़े़ की टी. बी. के मुख्य लक्षण:-
तीन सप्ताह से अधिक बुखार, तीन सप्ताह से अधिक
भूख कम लगना और वजन का घट जाना, कभी-कभी छाती में दर्द या सांस फूलता है।
अगर घर या गाँव, शहर में ऐसे लक्षण का व्यक्ति हो तो पास के स्वास्थ्य केन्द्र अथवा हमारे केन्द्र में आकर जाँच करवाएँ। इसमें देर ना करें। हो सकता है आपके प्रियजन को टी.बी. हो।
जाँच और इलाज में देर के कारण:
मझ रहे थे पता नहीं था कि असली बीमारी टी.बी. है।
इलाज के दौरान ध्यान देने वाली बातें:
टी.बी. का पक्का इलाज है जिससे बीमारी जड़ से मिट जाती है पर इसके लिये सही दवा सही मात्रा में पूरे 6-9 महिने नियमित रूप से लेनी पड़ेगी।
टी.बी. के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते रहते हैं और दवा लेने पर कुछ समय बाद ही घटते हैं। टी.बी. के दवाई का असर निश्चित तौर पर होता है। अगर दवा नियमित रूप से नहीं लेंगे तो यह बीमारी गंभीर बनकर आपको बहुत कमजोर बना देगी और इससे मृत्यु भी हो सकती है। बीच-बीच में दवा नहीं लेने से दवाओं का असर कम हो जाता है जिससे आगे इलाज में मुश्किलें आती हैं। बीमारी के लक्षण ठीक होने और बीमारी जड़ से खत्म होने में अंतर है। 2-3 महीने दवा खाने से आपको अच्छा लग सकता है, पर बीमारी खत्म नहीं होती है। लक्षण ठीक होने पर दवा बंद करने की भूल ना करें। 2-3 महीने में दवा बंद कर देंगे तो इलाज अधुरा रहेगा जिससे आपको और आपके परिवार को कई परेशानियां हो सकती हैं। दवा डाॅक्टर के सलाह पर ही बंद करें।
दवा के बारे में:
टी.बी. का दवा हर रोज लेना है। आपको दवा एक पैकेट के रूप में दिया गया है। लाल केप्सूल को खाली पेट में खाना है बाकी दवाओं को 2-3 घंटे बाद खाने के साथ ले सकते हैं। दवा 5-5 मिनट के अंतर से भी ले सकते हैं। दवा जितनी मात्रा में दी गई है उतनी मात्रा में ही लेना है। कम या अधिक नहीं लेना है। ऐसा करने से बीमारी नहीं हटेगी।शुरू में अधिक दवा दी जाती है पर रोगी की स्थिति बेहतर होने पर दवाईयों की संख्या कम की जाती है। यदि किसी मरीज को सुई (इंजेक्शन) लगता हो तो उसे चिकित्सक की सलाह से समय पर लगाना चाहिए। टी.बी. की दवा से लाल रंग का पेशाब होता है इससे घबराना नहीं है। कुछ लोगों को दवाई से अल्लरपन लगता है। पर बीमारी ठीक होने पर लक्षण ठीक हो जाता है। दवा से भूख न लगना, खुजली होना, खखार में लाल रंग आना, बुखार ठीक न होना, शुरू 1 माह खाँसी 1 माह तक ठीक न होना। पेशाब में जलन, पेट दर्द हो सकता है।
दवा के साथ परहेज:
टी.बी. का इलाज घर पर हो सकता है अगर मरीज नियम से दवा ले और खांसी के समय मुंह पर कपड़ा रखे और खुले में न थूके तो परिवार वालों को खतरा नहीं रहता। खखार या बलगम को धूल या राख से ढकना चाहिए। टी.बी. के मरीज रोजमर्रा की सब चीजें खा सकते हैं। चावल में तेल डालकर खाना, दाल, सोयाबीन की बड़ी, मूंगफली और संभव हो तो मांस मछली और अंडे खा सकते हैं।
टी.बी. की दवा के साथ टाॅनिक, ग्लूकोज बाॅटल, खांसी सिरप लेने से कोई फायदा नहीं है।
बीड़ी, गांजा, तंबाकू, गुटखा फेफड़े को खराब करते हैं इसलिए इन आदतों को छोड़ देना चाहिए।
अधूरा इलाज करवा चुके मरीजों से बात:
हमें मालूम नहीं था कि टी.बी. है, डाॅक्टर ने नहीं बताया।, दवा बहुत महंगा था कहां से करते। पेशाब लाल हुआ डर गये। गर्मी कर गये, खाँसी में खून आया। हफ्ते में बीमारी ठीक नहीं हुई तो बंद कर दिये। अस्पताल गाँव से दूर था। महीने बाद ठीक लगा तो बंद कर दिये। कमाने खाने चले गये।, टाॅनिक और खाँसी सिरप पी रहे थे।, कुछ दिन आराम लगा और फिर जस के तस।,खाँसी के साथ खून आने लगा और कमजोरी बढ़ गई। तब जांच कराने आए हैं।, घर के लोग जादू-टोना बता रहे थे
13 बीमारी के जांच और इलाज के लिये पैसे नहीं थे।,अधूरे इलाज के तीन बड़े़ नुकसान:-
बीमारी फिर से पनप सकती है। मरीज की मृत्यु हो सकती है।,अधूरे इलाज से रोग के कीटाणुओं को दवा का अनुभव हो जाता है और इन दवाओं का असर कम हो जाता है। दोबार इसका इलाज बहुत लंबा, खर्चीला और मुष्किल होता है। ऐसी टी.बी. का इलाज फेल भी हो सकता है।, अधूरे इलाज से कीटाणु खाँसी द्वारा परिवार के अन्य सदस्यों और दूसरे लोगों को फैल सकते हैं। इससे परिवार व गांव के लोगों की परेशानी बहुत बढ़ सकती है।
घर के कम उम्र के बच्चों की जाँच और इलाजः
पांच साल से कम आयु के बच्चों की कीटाणु से लड़ने की क्षमता कम होती है इसलिए बीमारी होने की ज्यादा संभावना होती है। सही जाँच और कुछ दवाओं के उपयोग से उन्हें रोग से बचाया जा सकता है। बच्चों को टी.बी. रोग सुरक्षा के लिये 3-6 महीने तक एक प्रकार की गोली दी जाती है जो उसके लिए बेहद जरूरी है। इसलिए जिन्हें फेफड़े की टी.बी. है उन्हें परिवार के 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की जांच और इलाज करवाना अत्यन्त आवश्यक है।
महिलाओं को गलत चीजों के प्रति नाराजगी दिखानी चाहिए और जो सही है, उसके लिए खड़ा होना चाहिए। महिलाओं को अपने भले के लिए संकोच छोड़ मुखर होना चाहिए।
प्रिती जोसी, राधा सेनी, रजनी सिंह, गोपाल सिंह, लाता काजल, मंधु आदि वक्ताओं ने अपने सम्बोधन में शैक्षिक एवं सामाजिक परिवर्तन पर अपने विचार रखे, जिसमें समाज में व्याप्त सामाजिक कुरुतियोँ, अन्धविश्वास, रुढिवादिता, पाखंडवाद से दूर रहने तथा शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। इस दौरान महिलाओं का आव्हान किया गया कि हमारा संगठन बने और हमारा सहयोग सदेव रहेगा।
कार्यक्रम के आयोजक राधा सेनी और उनकी टीम को शानदार आयोजन के लिए गोपाल किरण समाज सेवी सस्था परिवार की तरफ से बहुत बहुत बधाई दी गई।
महिलाओ ने कहा की जरूरत है अपनी पहुंच बनाये रखना, हम सभी धन्य हैं। बेहतरीन सोच, बेहतरीन कार्यक्रम और एक एक व्यक्ति का ध्यान रखने की प्रवृत्ति स्वागत योग्य है। राधा सेनी और उसकी टीम का सहयोग/संचालन भी मनभावन/काबिले तारीफ रहा। जिसकी अध्यक्षता श्रद्धेय श्रीप्रकाश सिंह निमराजे, संचालन श्रद्धेया राधा सेनी जी ने किया।
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