संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:
गोपाल किरण समाज सेवी संस्था ग्वालियर द्वारा डॉ अम्बेडकर पार्क सामुदायिक भवन के समीप कवीर कालोनी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें श्रीमती संगीता शाक्य (डिविजनल कॉमाडेड होम गॉर्ड ग्वालियर एव चम्बल संभाग ग्वालियर) ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीप्रकाश निमराजे जी द्वारा की गई।
इस मौके पर मुख्य अतिथि श्रीमती संगीत शाक्य ने कहा कि हमें अपने अधिकारों के प्रति स्वयं जागरूक होना होगा। महिलाओं ने विशिष्ट पहचान स्थापित की है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। प्रारभ में अतिथि के द्वारा डॉ भीमराव अम्बेडकर, भगवान बुद्ध के आदम कद प्रतिमा पर मालार्पण किया गया तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत श्रीमती आशा गौतम (समाज सेवीका ग्वालियर), राधा सैनी, काजल, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मीना शुक्ला द्वारा किया गया। तत्पश्चात आगनवाड़ी की कार्यकर्ता मीना शुक्ला ने आगनवाड़ी द्वारा संचालित होने वाले कार्यक्रमों के बारे में बताते हुए महिला दिवस के बारे में जानकारी दी। राधा सैनी ने अपने जीवन के कटु अनुभवों को रखते हुए कहा कि हमें किसी भी परिस्थिति में धैर्य नहीं खोना चाहिए, अपने आत्म विश्वास को बनाये रखना होगा। नाहिलाओ को अपनी रक्षा के लिए स्वयं आगे आना होगा और स्वयं आर्थिक रूप से मजबूत बनना होगा। प्रीती जोशी ने महिला हिंसा के विभिन्न स्वरूपों पर चर्चा की और प्रशंसा सिंह ने महिलाओं को जागरूक होने पर बल दिया।
श्रीप्रकाश सिंह निमराजे अध्यक्ष गोपाल किरण समाज सेवी संस्था ग्वालियर ने महिलाओं की चर्चा करते हुए कहा कि भारत में आज महिलाओं को समानता, स्वतंत्रता सामाजिक न्याय और हक-हकूमत, मान-सम्मान के साथ आगे बढ़ने का जो अधिकार मिला है वह विश्व भूषण बाबा साहेब डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा लिखित भारतीय संविधान की देन है इसलिए महिलाओं को बाबा साहेब के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। महिलाएं अपनी मेहनत और काबिलियत के बलबूते अब नित नये गौरवशाली कीर्तमान स्थापित कर रही हैं। महिलाएं सफलता की नई नई ऊचाइयों को छू रही हैं और उनके हौसले भी बुलन्द हैं। डॉ. आंबेडकर महिलाओं की उन्नति के प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि किसी भी समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है? दुनिया की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, इसलिए जब तक उनका समुचित विकास नहीं होता कोई भी देश चहुंमुखी विकास नहीं कर सकता। डॉ. आंबेडकर का महिलाओं के संगठन में अत्यधिक विश्वास था।उनका कहना था कि यदि महिलाएं एकजुट हो जाएं तो समाज को सुधारने के लिए क्या नहीं कर सकती हैं? वे लोगों से कहा करते थे कि महिलाओं और अपने बच्चों को शिक्षित कीजिए। उन्हें महत्वाकांक्षी बनाइए। उनके दिमाग में यह बात डालिए कि महान बनना उनकी नियति है। महानता केवल संघर्ष और त्याग से ही प्राप्त हो सकती है। वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य रहते हुए डॉ. आंबेडकर ने पहली बार महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश (मैटरनल लिव) की व्यवस्था की। संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में संविधान निर्माताओं में उनकी अहम भूमिका थी। संविधान में सभी नागरिकों को बराबर का हक दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 में यह प्रावधान है कि किसी भी नागरिक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। आजादी मिलने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में सुधार शुरू हुआ। आजाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में उन्होंने महिला सशक्तीकरण के लिए कई कदम उठाए। सन् 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। उनका दृढ़ विश्वास कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी। डॉ. आंबेडकर प्राय: कहा करते थे कि मैं हिंदू कोड बिल पास कराकर भारत की समस्त नारी जाति का कल्याण करना चाहता हूं। मैंने हिंदू कोड पर विचार होने वाले दिनों में पतियों द्वारा छोड़ दी गई अनेक युवतियों और प्रौढ़ महिलाओं को देखा। उनके पतियों ने उनके जीवन-निर्वाह के लिए नाममात्र का चार-पांच रुपये मासिक गुजारा बांधा हुआ था। वे औरतें ऐसी दयनीय दशा के दिन अपने माता-पिता, या भाई-बंधुओं के साथ रो-रोकर व्यतीत कर रही थीं। उनके अभिभावकों के हृदय भी अपनी ऐसी बहनों तथा पुत्रियों को देख-देख कर शोकसंतप्त रहते थे। बाबा साहेब का करुणामय हृदय ऐसी स्त्रियों की करुण गाथा सुनकर पिघल जाता था।
कुछ लोगों के विरोध की वजह से हिंदू कोड बिल उस समय संसद में पारित नहीं हो सका, लेकिन बाद में अलग-अलग भागों में जैसे हिंदू विवाह कानून, हिंदू उत्तराधिकार कानून और हिंदू गुजारा एवं गोद लेने संबंधी कानून के रूप में अलग-अलग नामों से पारित हुआ जिसमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए। लेकिन डॉ. आंबेडकर का सपना सन् 2005 में साकार हुआ जब संयुक्त हिंदू परिवार में पुत्री को भी पुत्र के समान कानूनी रूप से बराबर का भागीदार माना गया। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुत्री विवाहित है या अविवाहित। हर लड़की को लड़के के ही समान सारे अधिकार प्राप्त हैं। संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन होने पर पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर का हिस्सा मिलेगा चाहे वो कहीं भी हो। इस तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में डॉ.आंबेडकर ने बहुत सराहनीय काम किया।
वयस्क मताधिकार भी डॉ. आंबेडकर का ही विचार था जिसके लिए उन्होंने 1928 में साइमन कमिशन से लेकर बाद तक लड़ाई लड़ी। इसका उस समय विरोध किया गया था। उस समय यूरोप में महिलाओं और अमेरिका में अश्वेतों को मताधिकार देने पर बहस चल रही थी। आंबेडकर ने वोट डालने के अधिकार के मुद्दे को आगे बढ़ाया। उन्होंने निर्वाचन सभा के सदस्यों को चेताया था कि भारतीय राज्यों को एक जगह लाने की उत्सुकता में वह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से समझौता न करें। डॉ. आंबेडकर ने संरक्षण आधारित लोकतंत्र के बजाय नए भारत के लिए अधिकारों वाले लोकतंत्र को चुना हर वर्ष 8 मार्च को हम लोग महिला दिवस मनाने की औपचारिकता पूरी करते हैं लेकिन यदि हम सही में महिलाओं को सम्मान देना चाहते हैं तो उन सभी गर्न्थो जिनमे उन वाक्यो को विलोपित करना होगा ।जो महिलाओं को दोयम दरजे को मानता हो। धर्म ग्रन्थ केवल इतना भर लिखकर ही नहीं रूकते हैं बल्कि महिलाओं के खाने पीने व कपड़े और आभूषण पहनने तक की आचार संहिता लागू करने की बात करते हैं।लेकिन विडंबना यह है कि अन्याय एवं भेदभाव से परिपूर्ण इन्हीं धर्म ग्रन्थों का जगह -जगह अखंड पाठ करवाया जाता है और महिलाओं को इनमें अधिक से अधिक शामिल किया जाता है। इन धर्म ग्रन्थों के अलावा भी महिलाओं के साथ कदम कदम पर समाज की ओर से अन्याय अत्याचार व जुल्म किया जाता है और हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है कि
आज भी घर परिवार एवं कहीं रिश्तेदारी में किसी बुजुर्ग की भी मौत हो जाती है तो उसके लिए रोने चिलाने का ठेका महिलाओं के नाम फिक्स किया हुआ है ऐसा क्यों है ? यदि किसी की भी मौत पर रोना चीखना चिलाना इतना ही ज्यादा जरूरी है तो महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी उसी प्रकार दहाड़े मारमार कर रोना बिलखना चाहिए।
इसके अलावा कोई भी सभा समारोह इत्यादि आयोजित किया जाता है तो पुरुषों को कुर्सियों पर बैठाया जाता है लेकिन महिलाओं को नीचे जमीन पर बैठना पड़ता है।
मंचो पर विराजमान और सम्मान दोनों ही मामलों में महिलाओं को नदारद रखा जाता है ऐसा क्यों ? ऐसे ही घूंघट प्रथा में भी महिलाओं के साथ जमकर भेदभाव आज भी जारी है यदि घूंघट रखना इतना ही आवश्यक है तो पुरुषों को भी घूंघट निकालकर ही हर काम करना चाहिए।
पुनर्विवाह के मामलों में भी महिलाओं के साथ जमकर भेदभाव किया जाता है जो पुरूष विधुर हो जाते हैं वे तो बड़ी शान से पुनर्विवाह कर लेते हैं लेकिन विधवा को आजीवन विधवा बनाकर ही रखा जाता है।
इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं से भेदभाव किया जाता है जैसे कि पूरे देश में जगह जगह पुरूष छात्रावास बने हुए हैं लेकिन महिला छात्रावास बहुत ही कम जगह देखने को मिलते हैं जबकि हकीकत में महिला छात्रावासों की जरूरत ज्यादा है। अतः 8 मार्च महिला दिवस को केवल औपचारिकता निभाने के लिए मत मनाओ बल्कि आओ हम सब मिलकर महिला दिवस के दिन संकल्प लें कि महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
महादेवी कामत ने कहा कि अमीरी गरीबी का भेद मिटाकर सिर्फ महिला होने का सम्मान दिवस है। कितने ही घर हैं जो सिर्फ कामवाली बाइयों की वजह से सुचारू रूप से चल रहे हैं। आज महिला दिवस के उपलक्ष्य में अपने घर पर काम कर रही कामवाली महिला बाई को भी सम्मानित करना चाहिए। गरीब होने के नाते क्या वह महिला सम्मान की हकदार नहीं है? आइए इस भ्रांति को मिटा दें कि सम्मान भी अमीर गरीब का भेद करता है। आइए इस भ्रांति को भी मिटा दें कि महिला ही महिला कासबसे अधिक शोषण करती हैं।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया।
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