Edited by Arshad Aabdi, NIT:
लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी
आज हिन्दू वोटों की ख़ातिर छत्रपति शिवाजी को हिन्दू हृदय सम्राट बताने वालो कल तुमने उनके और उनके बेटे के साथ क्या सुलूक किया था? जबकि शिवाजी एक महान बहादुर धर्मनिरपेक्ष समाजवादी व्यक्तित्व का नाम है।
शिवाजी की अफ़ज़ल ख़ान से एक सियासी जंग को धार्मिक रंग देकर मुसलमानों के लिये नफरत पैदा करने वालो, इतिहास का सच तुम्हारे झूठे प्रोपेगंडे का पर्दाफाश कर रहा है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में 30% से ज़्यादा मुसलमान थे।
शिवाजी के 13 बॉडीगार्ड मुसलमान थे। शिवाजी के तोपखाने का प्रमुख ‘इब्राहिम खान’ नाम का मुसलमान था। शिवाजी का एक ही वकील था जिसका नाम क़ाज़ी है, वो भी मुसलमान था। शिवाजी के गुरु का नाम सूफी याक़ूब बाबा था। शिवाजी के थल सेना प्रमुख का नाम नूर ख़ान था।
अफ़ज़ल ख़ान को मारने के लिए शिवाजी को वो “हथियार” बना कर देने वाला सैयद हिलाल मुसलमान ही था। अफ़ज़ल खान के आने की ख़बर देने वाला रुस्तम ए ज़मान मुसलमान था।
इतिहास में कहीं भी नहीं लिखा है कि शिवाजी के सेना के किसी मुसलमान ने शिवाजी को धोखा दिया हो।
शिवाजी ने रायगढ़ में अपने क़िले के सामने मुस्लिमों के लिए मस्जिद बनाई जो आज भी मौजूद है।
एक आम धर्मनिरपेक्ष हिन्दुस्तानी हिन्दू का प्रश्न- “धर्म के ठेकेदारो, छद्म राष्ट्रवादियों, हिन्दुओं के स्वयं भू ठेकेदारो तुम ही बताओ, मुसलमानों से नफरत करूं भी तो किस वजह से?”
हिन्दु धर्मगुरुओं ने “शिवाजी के राज्याभिषेक” को मना किया था। बाद में बहुत मानमनौव्वल के बाद बग़ैर नहाये बायें पैर के अंगूठे से शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया था।
शिवाजी के बेटे संभाजी की हत्या कर के उनके शरीर के टुकड़े करने वाले हिन्दू ही थे। शिवाजी पर हमला करने वाला “कृष्णा भास्कर कुलकर्णी” हिन्दू था।
शास्त्रों के हिसाब से शुद्र का शिक्षा प्राप्त करना अधर्म था। अगर कोई शुद्र शिक्षा प्राप्त कर ले तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।
ज्योतिबा फुले ने शूद्रों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी उठाई और स्कूल शुरू करने के लिए आगे बढ़े हिन्दुओं ने ही ख़ूब विरोध किया। लेकिन एक मुसलमान, जिसका नाम उस्मान शेख़ था, उसने स्कूल के लिए जगह दी।
माता सावित्री फुले जब स्त्री शिक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर निकली उस वक़्त भी हिन्दुओं ने सशक्त विरोध किया यहां तक कि सावित्री बाई पर पत्थर बरसाए गए और गोबर फेंका गया परन्तु उस वक़्त उनके साथ क़दम से क़दम मिला कर चलने वाली फातिमा शेख़ भी मुसलमान ही थी।
हिन्दुओं के विरोध के बावजूद डॉ भीमराव अंबेडकर को संविधान हाल तक पहुंचाने वाले भी मुसलमान ही थे।
धर्म के स्वयं भू ठेकेदारो, अब तुम ही बताओ हमारे पूर्वजों के साथ क़दम से क़दम मिला कर चलने वाले इन मुसलमानों से मैं कैसे नफरत करूं?
यह तो कुछ उदाहरण हैं, अभी इतिहास के पन्नों में बहुत सी सच्ची गाथाएं दफन हैं। देशहित में उन्हें भी निकालना और छद्म राष्ट्र वादियों के झूठे प्रोपेगंडे का पर्दाफाश करना ज़रुरी है क्योंकि इन छद्म राष्ट्रवादियों ने पिछले सात दशक में सत्ता के सरंक्षण में समाज में धर्म और जाति के नाम पर नफरत का बहुत ज़हर फैलाया है।
न संभले तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तां वालो।
तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में।।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.