बाबूल... | New India Times

Edited by Pankaj Sharma, NIT:

लेखक: ममता वैरागी

बाबूल... | New India Times

बिटिया के जन्म की खबर मिलते ही एक पिता कितना धीर ओर गंभीर हो जाता है, उसका ह्रदय भर सा जाता है। वह बेटी को देखता है ऐश्वर्या महसूस करता है कि उसके घर बेटी आई है, अब उसे सब कूछ ऐसे करना और रहना होगा कि बेटी को कोई तकलीफ ना हो। वह नहीं बता पाता अपनी मां से, पत्नी से, या किसी अन्य से।, उसे तो एक बहूत बड़ी जिम्मेदारी मिलती है। मां भले कूछ का कूछ कहती रहे, पर बेटी का पिता, अपने दिल में बेटी से बहुत ही ज्यादा स्नेह रखता है पर मजबूर रहता है। वह बताता भी नहीं, शायद अपने प्यार को अपनी भावनाओं को अपने पिता बनने के जज्बात को किसी के साथ साझा नहीं कर सकता।

बाबूल... | New India Times

बहूत चाहता है एक पिता अपनी बेटी को। दिन रात खप जाता है उसके लिए और देखो कन्यादान के वक्त किस तरह मजबूत ह्रदय रख कलेजे के टूकडे को किसी अन्य को सौंपता है पर यहां भी जाहिर नहीं होने देता कि उस पर क्या बीत रही है। और सुखी रही बेटी जब तो ठीक पर यदि उसकी आंखों के सामने उसकी बेटी को अच्छा घर बार ना
मिल पाय तो समझो पिता फिर नहीं संभाल पाता अपने आप को। जान तक चली जाती है एक बेटी के पिता की। इसलिए एक पिता वह भी बेटी का हो, तो समझो, यह दिन रात अपनी मासूम बेटियों के लिए लगा है। बेटी जैसे जैसे बड़ी होती है पिता की धडकनें बढ़ती जाती हैं। इसे भी केवल वही समझता है दूजा नहीं। इस तरह एक बाबूल कितना प्यारा होता है उसकी तूलना किसी से नहीं कर सकते। उसके मन में जो समन्दर हिलोरें मारता है स्नेह का वह एक पिता ही समझ सकता है। काश सभी समझें, एक बेटी के पिता का हाल और उनकी बेटियों पर कोई जूल्म ना करें। ताकि एक पिता सुकून भरी जिंदगी जी सके। वक्त के पहले बेटी का गम लेकर ना मरे।


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