सवर्ण आरक्षण पर अकोला वासियों की प्रतिक्रियाएं: किसी ने कहा राजनीतिक दिखावा किसी ने कहा समाज से खिलवाड़ | New India Times

ओवैस सिद्दीकी, ब्यूरो चीफ अकोला (महाराष्ट्र), NIT:

सवर्ण आरक्षण पर अकोला वासियों की प्रतिक्रियाएं: किसी ने कहा राजनीतिक दिखावा किसी ने कहा समाज से खिलवाड़ | New India Times

सबका साथ सबका विकास के एलान पर सत्ता में आई भाजप सरकार अपने विभिन्न कारनामों के चलते विगत सालों से चर्चा का विषय बनी हुई है। जहां अधिकतर आम जनता सरकार से असंतुष्टता दिखती है वहीं पार्टी के ही कुछ नेताओं ने भी पार्टी का साथ छोड़ने में भलाई व्यक्त की है। इसी प्रकार अन्य कई मुद्दों की तरह देश में आरक्षण का मुद्दा तूल पकडे हुए है, विभिन्न समाज आरक्षण को लेकर भाजप सरकार को घेरे हुए हैं। बात करते है सवर्ण आरक्षण की, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को बीते बुधवार को संसद की मंजूरी मिली है और राज्यसभा ने करीब 10 घंटे तक चली बैठक के बाद संविधान (124 वां संशोधन), 2019 विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दे दी है। इससे पहले सदन ने विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधनों को मत विभाजन के बाद नामंजूर कर दिया। लोकसभा ने इस विधेयक को मंगलवाार को ही मंजूरी दी थी जहां मतदान में तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया था. उच्च सदन में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया. कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाये जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जतायी. हालांकि सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए इसे सरकार का एक ऐतिहासिक कदम भी बताया।किंतु सरकार का यह फैसल कितना प्रभावशाली साबित होता है यह आने वाला समय ही बताएगा।

देश में पिछड़े जाती के करोडो अल्पसंख्यक बेरोजगारी, बीमारी, गन्दगी, गरीबी से लड़ रहे हैं और सरकार को सवर्णो की फिक्र पडी है। भाजप सरकार केवल अमीरो एवं सवर्णो की सरकार नजर आ रही है। बीते 4 सालों में केवल देश के उद्योगपतियों की ही उन्नति होती नजर आई है तथा गरीब और गरीबी के दल दल मे धंसता जा रहा है।भाजप सरकार के आने बाद से ही केंद्र में मनमाने कारभार जारी है। सवर्ण आरक्षण फ्लॉप भाजप की फ्लॉप चाल है किसी को इस से कोई फायदा नही होने वाला: डॉ.शफीक अहमद।

आर्थिक आरक्षण पर प्रहार किया सामाजिक न्याय सुनिश्चित करें

केंद्र सरकार ने आज सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण को मंजूरी दे दी है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन की आवश्यकता होगी, जो आंतरिक रूप से सामाजिक न्याय के आश्वासन और सामाजिक रूप से हाशिए के समुदायों के लिए प्रतिनिधित्व से संबंधित हैं। जैसा कि यह स्पष्ट है कि आरक्षण नीति गरीबी उन्मूलन और वित्तीय सुधार के लिए नहीं है, आर्थिक आरक्षण के लिए यह नया कदम उपर्युक्त मामलों की ओर अपने उद्देश्यों को सीमित करेगा और मौजूदा आरक्षित समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। एनडीए सरकार संसदीय चुनावों के मद्देनजर बहुमत के तुष्टिकरण के लिए इस विधेयक को लेकर आई है। यह विधेयक सामाजिक न्याय के मूल संवैधानिक लोकाचार को चुनौती देता है और इसे केंद्र और राज्यों में सभी विपक्षी दलों द्वारा रोका जाना चाहिए। मैं छात्रों और युवाओं से सरकार के कदम के खिलाफ खड़े होने की मांग करता हूं: एड. शोएब इनामदार।

सरकार ने सवर्णो को धोका दिया है।उक्त आरक्षण को असंवैधानिक’ बताते हुये सदन से कइ सदस्यो ने बहिर्गमन भी किया है।भाजप सरकार ने जनता का मजाक उडाया है। आम तौर पर जिस नागरिक की आय करीब 3 लाख होती है इसे आयकर भरना होता है किंतु सरकार के नए धोरण के अनुसार 8 लाख तक की आय वाले नागरिक को गरीब की श्रेणी मे दाला गया है जो हास्यास्पद है।भाजप सरकार जिन वादो के साथ सत्ता मे आई थी सभी विफल साबित होरहे है।गरीबो की नही अमीरो की सरकार बन गई है तथा सवर्ण आरक्षण केवल आगामी लोकसभा चुनाव की तय्यारी है: एड मो.शफीक

सवर्ण आरक्षण आगामी लोक सभा के चुनाव की तैयारी है केवल, चुनाव के मद्देनजर समाज को दिया हुआ एक चौकलेट है। संविधानिक रुप से इसकी अनुमती मिलना मुश्किल है।सवर्ण आरक्षण के खिलाफ एक एनजीओ ने सर्वोच्च न्यायालय मे याचिका भी दाखल की है।सवर्ण आरक्षण के शर्ते भी हास्यास्पद है।कुल मिलाकर सवर्ण आरक्षण केवल चौक्लेट है इस से किसी को कोई फायदा नही होगा: एड. अली रजा खान

भाजप सरकार के इस सवर्ण आरक्षण में काफी कानुनी खामियां नजर आ रही है। उक्त मामले में मोदी सरकार ने कानुनी खामियों को दूर किए बिना चुनावी फायदे के लिए यह नाया फितुर लाया है। यह केवल एक पॉलीटीकल स्टंट नजर आ रहा है, सरकार के इस हरकत पर कइ प्रश्न निर्माण होरहे है तथा यह केवल एक चॉकलेट है। भाजपा सरकार ने सवर्णो के पिठ मे खन्जर मारा है। सरकार ने साढ़े चार साल में कुछ नहीं किया. बिल को जिस तरह से इन लोगों ने लाया और सवर्णों को झूनझूना दे दिया है, जो हिलेगा लेकिन आवाज नहीं करेगा: एड सुमित बजाज।

5 लाख से ऊपर आय पर 20% टैक्स और 8 लाख से कम वाला “ग़रीब”अर्थिक आरक्षण देने पर कोई अनुचित नही लेकिन जाती आरक्षण पर सब कुछ।यह सब भाजप सरकार की राजनीतिक स्टंट बाजी है और कुछ नही।सरकार जनता को आरक्षण के नाम पर गुमराह कर रही है और कुछ नही।बिल मे अनेको खामिया है जिसे दुर करना अत्यंत आवश्यक है किंतु भाजप सरकार अपनी स्टंट बाजी मे व्यस्त है,साथ ही इस बिल मे सम्मिलित की गई शर्ते भी अनुचित है।सरकार के फैसले पिछ्ले 4 सालो से नागरिको के लिए सर दर्द बनते जारहे है।अमीर और अमीर और गरीब और गरीबी के दलदल मे फंसते जारहे है।सरकार के अनुचित फैसले आगामी चुनाव में जरुर एक्सीड़ की राह दिखाएगे।केवल जाती के नाम पर आरक्षण मे पिछ्ली सरकार ने 68और इस सरकार ने 4 साल खराब किए लेकिन आर्थिक आरक्षण का कोई मुद्दा ही नही रहा।होना तो यह चाहिए की अर्थिक रुप से समर्थ नागरिको को आरक्षण मिलना चाहिए: एड. विशाल टिबळेवाल।


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