मेहलक़ा अंसारी, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
मुनिश्री विद्यासागर जी की दीक्षा के 50 वर्ष पूर्ण होने पर यहाँ राजस्थानी भवन में आयोजित “संयम कीर्ति” स्तम्भ का लोकार्पण कार्यक्रम एवं भगवान महावीर स्वागत द्वार के भूमिपूजन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में शरीक सांसद नंद कुमार सिंह चौहान ने इसे एतिहासिक पल बताया। उन्होंने कहा कि जैन समाज ही नही बल्कि हम सभी बड़े ही सौभाग्यशाली हैं, कि हमें मुनिश्री का आशीर्वाद मिलता है। सांसद चौहान ने आगे कहा कि, इस पांडाल में उपस्थित हम सभी बड़े भाग्यशाली हैं कि हमें गुरुवर्य का आशीर्वाद, उनकी वाणी सुनने का अवसर प्राप्त होने के साथ ही हमने उनके चरणों मे बैठकर आशीर्वाद प्राप्त किया हैं। श्री चौहान ने आगे अपने उद्बोधन में कहा कि, मुनिश्री केवल जैन संत ही नही अपूति सारे संसार के संत हैं, उनमे ईश्वरीय अंश हैं, उनका जन्म ही जगत कल्याण के लिए इस भारत की पावन भूमि में हुआ है। समाज को संस्कारित करने का दायित्व उन्होंने निभाया हैं। विश्व के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों से लेकर सभी राजनेता जबभी संशय से घिर जाते तो मुनिश्री के चरणों मे बैठकर मार्ग प्राप्त करते हैं। 1997 में मुनिश्री के बुरहानपुर आगमन के साथ उनके चरणों से नगर धन्य हो गया था। सांसद श्री चौहान ने दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि एक बार मुनिश्री बुरहानपुर से खंडवा के लिए सड़क मार्ग से भरी गर्मी में प्रस्थान कर रहे थे, मैं ने गाड़ी रोकते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उनके साथ बिना जूता पहने कुछ दूर चला तो मेरे पैरों मे छाले पड़ कर उसमें से पानी रिसने लगा। मैं ने हॉस्पिटल जाकर मरहम पट्टी की। उस रात मैं रात भर यह सोचता रहा कि यह सन्त कैसे जीवन जीते हैं ? तभी मुझे एहसास हुआ कि यह साधारण मूर्ति नहीं, इन में तो ईश्वरीय शक्ति वास करती हैं। तपस्या देखना हो तो जैन मुनियों की देखे तो जैन मुनियों की तपस्या के आगे नतमस्तक होना पड़ता है। चिलचिलाती धूप में शरीर पर वस्त्र नही, भारी ठंड मे शरीर पर वस्त्र नही। गलती से हमारे शरीर का बाल यदि टूट जाता तो सारे देवता याद आ जाते है। जैन मुनिजी तो केशलोचन के माध्यम से अपने बाल निकालते हैं। भगवान श्री महावीरजी के कदमों पर चल कर धरती पर बैठे लोगों को को मुनिश्री श्री विद्यासागरजी ” जियो और जीने दो ” का मंत्र दे रहे हैं। जो भी मुनिश्री का दर्शन प्राप्त कर उनका मार्गदर्शन लेता हैं, तो उसका जीवन धन्य हो जाता हैं, मुनिश्री श्री विद्यासागरजी की साँसे, उनकी धड़कने इस जगत की कल्याण के लिए संकल्पित हैं। ऐसे मुनिश्री एवम जैन समाज के संयम कीर्ति स्तम्भ के कार्यक्रम में आकर में धन्य हो गया हूं।
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