फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:
कड़ाके की ठंड में जहां लोगों का आम जीवन प्रभावित होता है वहीं मुसाफिरों व बेघरों की हालत और भी चिंताजनक हो जाती है। जिनके पास रहने के लिए अपना कोई आशियाना नहीं है या फिर जो इस मौसम में दूर-दराज के इलाकों से शहर में इलाज करवाने आते हैं वह बेरहम ठंड का कहर झेलने को मजबूर हो जाते हैं।
बहराइच जिले में लोग दूर-दराज इलाकों से इलाज के लिए आ तो जाते हैं लेकिन उनके सामने एक समस्या खड़ी रहती है और वह है शहर में ठहरने और इस शीतलहरी वाली ठिठुरन भरी सर्दी में रात गुजारने की समस्या। बुधवार रात जब एनआईटी संवाददाता ने रैन बसेरों का हाल देखा गया तो उसमें कहीं गद्दा-रजाई कम पड़े मिले तो कहीं पर इंतजाम न होने से लोग ठण्डी फर्श पर ही रात गुजारने को मजबूर दिखे। डीएम साहिबा के निर्देश पर जिम्मेदारों ने बेघरों और मुसाफिरों को ठंड से बचाने के लिए जो रैन बसेरे खोले हैं उनमें कोई समुचित इंतजाम नहीं किए गए हैं। जब शहर के रैन बसेरों का जायजा लिया और यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर जाड़े में लोगों की जिंदगी कैसे कट रही है तो हमें जो नतीजे और हालात दिखे वह काफी चौंकाने वाले थे। जिलाधिकारी ने औचक निरीक्षण कर मातहतों के पेंच कस्ते हुए रैन बसेरों की व्यवस्थाएं चाक-चौबंद किये जाने का निर्देश दिया था तो हमे लगा था कि व्यवस्थाएं बहुत बेहतर होंगी लेकिन हमारी उम्मीदें रियालिटी चेक के दौरान रैन बसेरों का हाल देख पूरी तरह से धराशायी हो गयीं। हमने सबसे पहले बीती रात करीब 8:30 बजे रेलवे स्टेशन स्थित रैन बसेरे का जायज़ा लिया जहां हमें डीएम मैडम के निर्देशों और रैन बसेरे की असल हकीकत में ज़मीन आसमान का अंतर दिखा। इस रैन बसेरे का हाल इतना बत्तर था कि यहां एक कम्बल में दो-दो राहगीरों को लेटने को कहा गया। जब हमने इसकी वजह पूछी तो पता चला कि जिम्मेदारों ने यहां 10 कम्बल ही मुहैय्या कराए हैं। इस रैन बसेरे में इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात तो यह थी कि यहां महिलाओं और पुरुषों को एक ही जगह लेट कर रात गुजारने की व्यवस्था की गयी थी। इसके बाद हम अपनी टीम संग रात्रि करीब 10 बजे रोडवेज बस स्टैण्ड की ओर रुख किया और वहां बनाये गये रैन बसेरे का जायज़ा लिया तो यहां का नज़ारा हमें रेलवे स्टेशन से अलग मिला यहां महिलाओं और पुरुषों के ठहरने के लिये व्यवस्थाएं अलग-अलग थीं लेकिन जब हमने यहां तैनात कर्मचारी से बात की तो उसने बताया कि यहां भी 10 कम्बल उपलब्ध हैं, 5 महिलाओं के लिये और 5 पुरुषों के लिये। यहां की हालत देख कर हमें अंदाज़ा हो गया कि जिम्मेदारों ने महेज़ खानापूर्ति के लिये इन रैन बसेरों की व्यवस्थाएं सुनिश्चित करायी हैं। रात्रि करीब 10:30 बजे हमने जिला अस्पताल के रैन बसेरे का भी जायज़ा लिया तो यहां भी जिलाधिकारी माला श्रीवास्तव के निर्देश बेमाने ही दिखे यहां भी महिलाओं और पुरुषों के लिये ठहरने और इस सर्द भरी रात को गुज़ारने में लिये व्यवस्थाएं एक ही जगह दिखीं। इस रैन बसेरे में भी महिलाएं और पुरुष एक साथ ही नज़र आये।
रेलवे स्टेशन की ओर हमने दोबारा करीब 11 बजे फिर रुख किया तो यहां का नज़ारा देख हामरी रूह कांप गयी। रैन बसेरा इतनी छोटी जगह में बनाया गया था कि उसकी जगह जल्द ही भर गयी और फिर रेलवे स्टेशन के कम्पाउंड में लोग ठण्डी फर्श पर बिना किसी इन्तेज़ाम के कोई प्लास्टिक बोरी ओढ़े तो कोई चादर का सहारा ले कर लेटा नज़र आया। हमने जब रैन बसेरे का हाल जाना तो पता चला कि रैन बसेरे में 35 लोग मौजूद हैं जिनमें 6 महिलाएं और 29 पुरुष थे साथ ही एक नाबालिग बच्चा भी था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन 35 लोगों के लिये जिम्मेदारों ने महेज़ 10 कम्बल ओढ़ने के लिये रखे थे जिसमें हमें एक कम्बल में दो लोग सोते दिखे और जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि कम्बल नहीं हैं ऐसे में वह किसी तरह रात गुजारने की कोशिश कर रहे हैं। रेलवे स्टेशन पर यात्री इधर-उधर किसी तरह इस सर्द रात को गुज़ारने की जद-दो-जहद करते नज़र आये। सवाल यह उठता है कि क्या इंसानी ज़िन्दगियों का कोई मोल नहीं है? इस सर्द रात में खुली फर्श पर सो रहे राहगीर यदि किसी अनहोनी का शिकार होते हैं तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा? अब देखना यह है कि जिलाधिकारी महोदया इसे संज्ञान में लेकर जिम्मेदारों को आवश्यक दिशा निर्देश देंगी या फिर बेचारी आम गरीब जनता इसी तरह ठण्ड का दंश झेलती रहेगी।
अधिशाषी अधिकारी बोले भेजवाता हूँ कम्बल बावजूद इसके नहीं पहुंचा कम्बल
रैन बसेरों के रियालिटी टेस्ट के दौरान रेलवे स्टेशन पर एक ही कम्बल में दो-दो लोगों को रात गुज़ारता देख हमने अधिशाषी अधिकारी पवन कुमार से दूरभाष पर रात्रि 8:38 पर बात की और कम्बल कम होने से अवगत कराया तो उन्होंने कम्बल भेजवाने का आश्वासन देते हुए कहा कि कल मैं वहां की स्थिति का स्वयं जायज़ा लूंगा और रैन बसेरे का एरिया जितना ज्यादा हो सकेगा बड़ा कराने का प्रयास करूंगा जिससे किसी को कोई दिक्कत न हो सके। अधिशाषी अधिकारी साहब से वार्ता के बाद हम अपनी टीम संग रात्रि करीब 12 बजे तक रेलवे स्टेशन पर मौजूद रहे लेकिन न तो वह स्वयं ही आये और न ही उन्होंने कम्बल ही भेजवाया। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आम जन की पीड़ा को जिले के जिम्मेदार कितनी गंभीरता से लेते हैं???
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