Edited by Daya Shankar Pandey, देहरादून (उत्तराखंड), NIT:
हाल में एक तथाकथित स्टिंग के मामले से फिर चर्चा में आए न्यूज चैनल ‘समाचार प्लस’ के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ उमेश कुमार पिछले तीन दिनों से उत्तराखंड पुलिस के साथ कहां हैं किसी को खबर नहीं है। न उनके घरवालों को, न उनके दफ्तर वालों को, न ही उस प्रदेश की पुलिस को जो उन्हें उनके घर से गिरफ्तार करके ले गई थी, न ही उस प्रदेश की पुलिस को, जिस पर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी थी और न ही उस प्रदेश की पुलिस यानी झारखंड की पुलिस को जो उनको रांची की अदालत में एक दूसरे मामले में पेश करने के लिए गिरफ्तार करने देहरादून आई थी।
नेशनल प्रेस दिवस पर एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली अपनी बातों से देश की जनता और पत्रकार बिरादरी को यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि देश में अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर कोई अंकुश नहीं है और अगर मीडिया की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है तो उसमें कहीं न कहीं उसकी अपनी कमजोरी ही शामिल होती है। जेटली ने यह भी कहा कि वाणी की स्वतंत्रता पर खतरे की कोई गंभीर शिकायत न होना दर्शाता है कि प्रेस स्वतंत्र रूप से काम कर रही है। चलिए हम जेटली जी की दोनों बातें मान लेते हैं तो जेटली जी को यह जवाब देना चाहिए कि दो साल पहले जब उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार एक स्टिंग के बाद बर्खास्त हुई थी, वो सही था या यह कि उनकी ही पार्टी के मौजूदा मुख्यमंत्री ने उसी स्टिंग करनेवाले पत्रकार के खिलाफ अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, वो सही है।
हरीश रावत की सरकार बर्खास्त होते ही अरुण जेटली ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश को बताया था कि भारतीय लोकतंत्र में पहली बार हुआ है कि किसी खबर के आधार पर कोई सरकार बर्खास्त हुई है और यह लोकतंत्र और पत्रकारिता की जीत है। तो आखिर इन दो सालों में क्या हो गया कि वही पत्रकार उनकी पार्टी के दूसरे नेताओँ की नजर में चुभने लगा।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.