अशफाक कायमखानी, ब्यूरो चीफ जयपुर (राजस्थान), NIT:
राजस्थान में कांग्रेस की तरफ से बरकतुल्लाह खान, मौलाना असरारुलहक, उस्मान आरिफ खान, डाॅ. अबरार अहमद, दूरु मियां, व अश्क अली टांक एवं भाजपा की तरफ से नजमा हेपतुल्लाह के राज्यसभा में एवं लोकसभा में एक मात्र कांग्रेस की तरफ से कैप्टन अय्यूब खां झुंझुनूं से सांसद अब तक बन चुके है। साथ ही राजस्थान सरकार मे अनेक मंत्री भी बन चुके है। लेकिन इस तरह का नेतृत्व उभरते रहने के साथ साथ नेतृत्व नष्ट होता भी रहा है। नजमा ऐपतुल्लाह कांग्रेस से भाजपा मे व डा.अबरार अहमद कांग्रेस से भाजपा मै फिर भाजपा से वापस कांग्रेस मै आ चुके है। इसके अलावा नवाब अमीरुद्दीन व उसमान आरिफ राज्यपाल भी विभिन्न प्रदेशों के रह चुके है।
उक्त सांसदो व राज्यपाल बनने के बावजूद उनका नेतृत्व पूरी तरह उभरने से पहले ही उनके नेतृत्व का नष्ट कर देने की सफल चाले चली गई। इसके बावजूद अलग अलग समय मे वामपंथ, स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ , लोकदल, जनता पार्टी, भाजपा , जनता दल व कांग्रेस से अलग मुस्लिम विधायक बनते जरुर रहे है। लेकिन उन्हीं के दलो के नेताओं ने सुनियोजित तरिके से उस नेतृत्व को नष्ट (कच्ची मोत) करने का काम किया। अनेक विधायक सभी सरकारो मे नाम मात्र या फिर कुछ असरकारक मुस्लिम मंत्री व एक दफा कुछ समय के लिये बरकतउल्ला खान मुख्यमंत्री भी बने है। उसमान आरिफ, केप्टन अय्यूब खा व डा.अबरार केंद्र सरकार मे मंत्री भी रहे है।
मजबूत मुस्लिम सियासी लीडरशिप राजस्थान मे अभी तक उभर नहीं पाने का प्रमुख कारण दलो के दिग्गज नेताओं की मुस्लिम लीडरशिप को चालाकी से क्रश करना रहा है। लेकिन दूसरा कारण किसी तरह की रिस्क उठाये बीना मुस्लिम लीडर खूद किसी ना किसी दूसरे लीडर का पिछलग्गू बनने मे विश्वास करना भी रहा है। पंजाब व हरियाणा सहित राजस्थान की केबीनेट मे मंत्री रहने वाले चोधरी तैयब हुसैन के अलावा अहमद बक्स सिंधी, महबूब अली, जकीया इनाम, अश्क अली, नफीस अहमद, नसरु खा, रमजान खा, चोधरी अब्दुल रहमान, अब्दुल अजीज, तकीऊद्दीन, दूर्रु मियां, आमीन खा, नसीम अख्तर, व यूनूस खां सहित अनेक विधायक अलग अलग समय मे अलग अलग दल की सरकार मे मंत्री भी रह चुके है। इनके अलावा हमीदा बेगम व जाहिदा खान संसदीय सचिव रह चुकी है। लेकिन सरकार मे इतना कुछ अलग अलग समय मे दखल होने के बावजूद परीणाम सकारात्मक आने के बजाय ढाक के तीन पात ही आये है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान के मुस्लिम समुदाय मे हमेशा से एक पार्टी के आगे नतमस्तक रहने के कारण मजबूत लीडरशिप अभी तक उभर नही पाने का दूसरा कारण उनका चुनाव बाद मुस्लिम समुदाय के हितो के लिये काम करने के बजाय अपने आकाओ को खूश रखने मे समय गवाना रहा है। अगर अब तक करीब 38- विधानसभा क्षेत्रो से अलग अलग समय मे अलग अलग दलो से मुस्लिम विधायक जीतते रहे है। वही 62- सीट ऐसी है कि अगर मुस्लिम थोड़ा अन्य समुदाय के मतो को अपने साथ जोड़ ले तो, वो अपना विधायक आराम से जीतवा सकते है। एवं करीब 85- सीट पर अगर त्रिकोणात्मक संघर्ष हो तो मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण स्थिति मे आकर निर्णायक की भूमिका निभा सकते है। राजस्थान की कुल 200 सीटो मे आरक्षित 59 सीटो मे से अधीकांश सीटो पर ठीक ठीक मत होने के कारण दलित मतो से गिवन टेक के फारमूले पर समझोता करके अन्य सीटो पर बाजी अपने पक्ष मे कर सकते है।
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