अजीम कुर्बानी की याद दिलाता है कर्बला का वाकिया, उस जुल्म को याद कर मनाया जाता है यौमे आशूरा | New India Times
अरशद रजा, लखनऊ (यूपी), NIT:
अजीम कुर्बानी की याद दिलाता है कर्बला का वाकिया, उस जुल्म को याद कर मनाया जाता है यौमे आशूरा | New India Times

आज 21 सितम्बर है यानी यौम ए आशूर।
आज के ही दिन मुसलमानो के रसूल हजरत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अ स और रसूल के पूरे परिवार का कत्ल यजीद नामक शराबी तानाशाह द्वारा करबला नामक जगह पर कर दिया गया था।
रसूल के नवासे का जुर्म बस इतना था कि उन्होने मानवता व अहिंसा का पैग़ाम दिया।
इस्लाम की तारीख में यज़ीद ही पहला आतंकवादी थी।
इमाम हुसैन अस ने इस आतंकवादी के आगे घुटने टेकने की जगह अपने पूरे परिवार की क़ुरबानी देना स्वीकार की।
करबला में जंग नहीं बल्कि ज़ुल्म हुआ। छः महीने के एक छोटे से मासूम बच्चे को भी नही बख्शा गया। इस नन्हें बच्चे हज़रत अली असग़र को भी बाप की गोद मे कत्ल कर दिया गया। ज़ुल्म इतना किया गया कि जब इमाम हुसैन ने इस बच्चे को दफन कर दिया गया तो यज़ीद की फौज ने ज़मीन मे भाला डालकर नन्हें बच्चे की लाश भाले की नौक से निकाली।

अजीम कुर्बानी की याद दिलाता है कर्बला का वाकिया, उस जुल्म को याद कर मनाया जाता है यौमे आशूरा | New India Timesयज़ीदी फौज ने इमाम हुसैन के एक भी साथी को दफन नहीं होने दिया। सभी के सर काटकर भाले की नोक पर लटका कर यजीद के दरबार मे ले जाया गया।
करबला के मैदान में रसूल के परिवार से 72 लोगों को कत्ल कर दिया गया। अफसोस तो इस बात का है की क़तार करने वाले भी मुसलमान थे। ये वो मुसलमान थे जिन्हे अच्छे और बुरे की पहचान ख़त्म हो गयी थी।
इमाम हुसैन को जब कत्ल किया गया तो पहले उनके ऊपर 10 घोडो़ को दौड़ाना गया। ये घोड़े कोई मामूली घोड़े नही थे बल्कि ये घोड़े वह थे जो पीसने व तोड़ने के काम आते थे। इन घोडो़ के एक पैर का वज़न लगभग 65 कि ग्रा होता था। इमाम हुसैन की सारी पसलियाँ टूट गयी थी। जब उनकी लाश को उठाया गया तो सारी पसलियाँ बिखर रही थी।

अजीम कुर्बानी की याद दिलाता है कर्बला का वाकिया, उस जुल्म को याद कर मनाया जाता है यौमे आशूरा | New India Timesकौनसा ऐसा ज़ुल्म ना था जो रसूल के परिवार पर ना हुआ हो।
इसी ज़ुल्म को दुनिया को बताने के लिये और इमाम हुसैन को श्रृधान्जली देने के लिये मुहर्रम महीने की 10 तारीख को आशूरा मनाते हैंलब्बैक या हुसैन।


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