वी.के.त्रिवेदी, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT;
आज पूरे भारत में घमासान मचा हुआ है उसका मुख्य कारण है तुष्टिकरण की नीति। भारतवर्ष के अलग-अलग जनपदों में सवर्ण सड़क पर आ गए हैं और एससी- एसटी एक्ट के अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं।यह सच है कि आप लोग मोदी की दया दृष्टि से चुनाव जीते सांसद और मंत्री बने लेकिन इस सच के बोझ से वर्तमान सांसद इतना दब गए कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ कानून बनाने से नहीं रोक पाए।रोकना तो दूर उलटे कानून बनाने के लिए आपके ही बीच के कुछ मंत्री और सांसद कानून बनवाने के लिए और इस कानून के बनने से वोट बैंक में होने वाले इजाफे से परिचित करवाने के लिए मोदी पर दवाब डालने गए। कुछ ने ख़ामोशी से हामी भरी। कुल मिलाकर कानून बनवाते हुए पूरी संसद में बिना किसी चर्चा के तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कानून पास करवा दिया। जब कर नहीं तो डर नहीं अर्थात यदि आपने इस कानून को बनाकर अच्छा ही किया तो डर कैसा ? यह डर अपने आप से है या उन लोगों से है जिन्हें और जिनकी नस्लों को बर्बाद करने में आप लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
बहरहाल यह मुझे नहीं पता कि आपने क्रिया- प्रतिक्रिया का नियम पढ़ा है या नहीं लेकिन इतना अवश्य समझ लीजिए कि जब किसी वस्तु पर बल लगाया जाता है तो उसके द्वारा भी उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाता है जिसे साइंस में क्रिया- प्रतिक्रिया (Action-reaction law) का नियम कहते हैं। आप लोगों ने तो अपना बल लगा लिया अब उन लोगों के विपरीत बल लगाने से पलायन क्यों कर रहे हो? आप लोगों को मंच ,माला और माइक से खास लगाव होता है ? यह कैसा समय है कि मंच भी है माला भी है और माइक भी है लेकिन अफ़सोस वह आपसे बहुत दूर है। अक्सर सभी देखते हैं कि जब धरना प्रदर्शन होते हैं तब मंत्री, सांसद, नेता उसमें बढ़-चढ़कर चढ़कर हिस्सा लेते हैं और जनता की सिम्पैथी बटोरकर अगले इलेक्शन की दमदारी मजबूत करते हैं। जगह जगह पर देखा जा रहा है कि नेता लोगों को भागना पड़ रहा है। एक समय होता है जब नेता लोग घर घर जाते हैं और आज जब जनता आप लोंगो के पास आ रही है तब आप लोग भाग रहे हो।इसका मतलब क्या समझा जाए आपकी नियत में बहुत बड़ा खोंट है। एक तरफ मोदी कहते हैं “सबका साथ सबका विकास” परंतु तुष्टिकरण की नीति से पता चलता है कि फूट डालो राज करो।
सक्षमता हो फलदर वृक्ष की भाँति तब होगा सर्व समाज का विकास
आजकल देखा जा रहा है कि लोग नास्तिक होते जा रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि ईश्वर है ही नहीं जबकि सभी को पता है कि आस्तिक-नास्तिक कोटिपूरक है। आस्तिक का मतलब जो भगवान के प्रति आस्था रखता है अर्थात उसकी नजर में भगवान है। नास्तिक का मतलब जिसका सोचना है कि ईश्वर है ही नहीं। मैं केवल इतना बताना चाहता हूं कि अगर कोई वस्तु बनी है उसको बनाने वाला अवश्य होता है। आपने देखा कि हेलीकॉप्टर निकलता है हम लोग बहुत तारीफ करते हैं तो उसे किसी ने तो बनाया ही होगा। बहुत सारी किताबें पढ़ते हैं अगर किताब है उसको लिखने वाला तो कोई होगा ही। एक से एक तेज गति की गाड़ियां सड़क पर दौड़ती हैं इसका मतलब गाड़ियों को बनाने वाला कोई तो होगा ही। किसी होटल पर खाना खाया और यदि खाना अच्छा लगा तो खाना बनाने वाला तो कोई होगा ही। बहुत सारी कंपनियों के कपड़े पहनते हैं और हम लोग कहने की तारीफ करते हैं कि कपड़े बहुत सुंदर हैं तो बनाने वाला कोई होगा ही या नहीं होगा कहने का मतलब है कि निर्जीव वस्तुओं को बनाने वालों को नहीं देखा है जिसकी हम तारीफ करते हैं और जो पूरी सृष्टि का निर्माता है उसको इतनी जल्दी देख लेंगे। आजकल लगातार देखा जा रहा है कि जो लोग सक्षम है वह कुछ लोगों के साथ कीड़े मकोड़े जैसा व्यवहार करते हैं परंतु उनको पता होना चाहिए कि मृत्यु के बाद कहां जाओगे? वहां पर लेखा-जोखा पूरा लिखा रहता है सत्य की राह पर चलने वाले व्यक्ति को जब कोई ठेस पहुंचाता है तब उसका विनाश होता है यह पुराणों में भी लिखा है। हर सक्षम व्यक्ति को फलदार वृक्ष की भांति बनना चाहिए। आप लोगों ने भी देखा होगा कि ये लोग जब तक सत्ता में रहते हैं या फिर नौकरी में रहते हैं तब तक उनका घमंड सातवें आसमान पर रहता है और उनसे बात करना या उनसे नमस्ते करने में भी उनको खराब लगता है परंतु जैसे ही मंत्री पद से हटे या प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत हो गए उसके बाद वह खुद कुछ जगहों पर बैठते हैं लेकिन उनसे कोई बात करना पसंद नहीं करता है ।यह हमारे देश की विडंबना है कोई भी व्यक्ति महान तब होता है जब उसके सिद्धांत अच्छे हो, व्यवहार मिलनसार हों। जबकि अकाट्य सच यह है कि अगर आप मंत्री बन गए हैं या फिर एक प्रशासनिक अधिकारी बन गए हैं तो आप अपने लिए जनता के लिए नहीं ।जनता को न तो आप धनाढ्य करने जा रहे हैं न जनता को कोई सौगात देने जा रहे हैं। बल्कि जनता को सौगात नियमों के आधार पर ही मिलती है। प्रतिदिन कोई न कोई इस तरीके के मामले आते रहते हैं और भारतीय संविधान कहता है कि एक निर्दोष को अपराधी नहीं बनाना चाहिए उसमें चाहे जांच में कितना समय लगे ?
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