कासिम खलील, बुलढाणा(महाराष्ट्र), NIT;विगत 17 फ़रवरी को जिले के ज्ञानगंगा अभयारण्य में दोपहर 12 बजे के करीब भयानक आग लग गई थी, जिसमें तकरीबन 60 हेक्टर जंगल जल कर नष्ट हो गया था। खास बात तो यह है कि ये आग लगी नहीं थी बल्कि लगाई गई थी और यह महान काम किसी और ने नहीं बल्कि “वन” के “रक्षों” ने ही अंजाम दिया था और फिर जब करीब 60 हेक्टर जंगल जल कर नष्ट हो गया तब किसी तरह आग पर काबू पाया गया।
बुलढाणा शहर से कुछ ही किलो मीटर की दुरी पर ज्ञानगंगा अभयारण्य है। जो बुलढाणा, चिखली, मोताला एंव खामगांव इन 4 तहसीलो में करीब 205 चौरस किलोमीटर में विस्तारित है। इस अभयारण्य की खामगांव रेंज अंतर्गत की बोथा-2 बीट के बोरवन इकोफ्रेंडली जलाशय के पास 17 फ़रवरी को आग लगी और देखते ही देखते जंगल की सुखी घास,पेड़ पौधे इसकी चपेट में आते चले गए.ये आग खामगांव रेंज से शुरू होकर बुलढाणा रेंज की उत्तर देव्हारी बीट तक फ़ैल गई और करीब 60 हेक्टर के इलाके को नष्ट कर दिया। विश्वसनीय सूत्रों से इस अग्निकांड की सच्चाई “NIT” को पता चली है। विश्वस्निय सूत्रों के अनुसार ज्ञानगंगा अभयारण्य की खामगांव रेंज की बोथा-2 बिट अंतर्गत के बोरवन इकोफ्रेंडली कुत्रिम जलाशय की वन कर्मियों द्वारा सफाई की गई। इस कृत्रिम जलाशय से रेत,पत्थर,प्लास्टिक निकाला गया था तथा 17 फ़रवरी को इस जलाशय के पास की घास और झाड़ियाँ जलाई गईं, और यही आग अनियंत्रित हो कर जंगल में फ़ैल गई और करीब 60 हेक्टर वन जल गया था। ख़ास बात तो यह है कि वन अधिनियमनुसार दिन में वन कर्मियो को घास जलाने की अनुमति ही नहीं है, इसके बावजूद बोथा-2 बिट के कर्मियों ने दिन में आग लगाकर शासकीय नियम को ठेंगा बताया। इसी प्रकार दुसरा वन नियम यह है कि 15 फ़रवरी के बाद जंगल में आग लगाने के लिए वरिष्ठ अधिकारी डीएफओ से लिखित रूप से अनुमति लेना ज़रूरी होता है। अब प्रश्न यह उठत है कि 17 फ़रवरी को बोथा-2 बिट में आग लगाने से पहले वन कर्मियों ने लिखित रूप से डीएफओ की अनुमति लिए थे क्या ?
इतनी बड़ी लापरवाही “ज्ञानगंगा अभयारण्य” में बरती जा रही है और जंगल में दिन के उजाले में आग के हवाले किया जा रहा है। इस आरक्षित वन में बेख़ौफ़ मवेशी चराए जा रहे हैं। अवैध रूप से पेड़ काटे जा रहे हैं और जंगल के “रक्षक” ही यहां “भक्षक” बने हुए नज़र आ रहे हैं।विशेष बात तो यह है कि जंगल में ये तीसरी बार वन कर्मियों की लापरवाही से आग लगी है। इस से पुर्व 27 जनवरी को बुलढाणा रेंज की बोराला बीट में दिन में घास के पट्टे जलाते वक़्त आग फ़ैल गई थी जिसमें करीब 80 से 90 हेक्टर वन स्वाहा हो गया था। दूसरी घटना दक्षिण देव्हारी बिट की है जहां 35 हेक्टर जंगल जल गया था। दिन में जंगल की घास के पट्टे नहीं जलाने का आदेश होते हुए भी वन के रक्षक दिन में आग लगा कर जंगल को नुक्सान पहुंचा रहे है। जिससे खामगांव रेंज के आरएफओ गजानन भगत और बुलढाणा रेंज के आरएफओ तायडे की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं और यह स्पष्ट हो रहा है कि वे अपना कर्तव्य कितनी ईमानदार से निभा रहे है ???अब बुलढाणा ज़िले के इस वैभव “ज्ञानगंगा अभयारण्य” को बचाने के लिए अकोला वन्यजीव विभाग के प्रभारी डीएफओ प्रमोद लाकरा ने ही उचित निर्णय लेना ज़रूरी हो गया है और जिन कर्मियों ने वन नियम को दुर्लक्षित कर दिन में जंगल में आग लगाईं और लापरवाही बरती उन्हें अपने कर्तव्य का दोषी मानते हुए सज़ा मिलनी ही चाहिए।
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