अबरार अहमद खान, भोपाल, NIT; मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में विभिन्न स्थानों पर ईदुल अज़हा की नमाज़ शान्तिपूर्वक अदा की गई। सब से पहले सुबह सात बजे न्यू कबाड़ खाना स्थित जामा मस्जिद अहले हदीस में मौलाना मोहम्मद मुदस्सिर सल्फ़ी ने नमाज़ अदा कराई उसके बाद उन्होंने अपने भाषण में, सब से पहले अल्लाह की प्रशंसा की फिर नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद भेजा।
मौलाना मोहम्मद मुदस्सिर सल्फी ने लोगों से ख़िताब करते हुये कहा कि आज ईदुल अज़हा यानी कुर्बानी का दिन है। यह एक महान दिन है जिसमें पूरी दुनिया के मुसलमान हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत पर अमल करते हुये लाखों जानवर अल्लाह का तकर्रुब हासिल करने के लिए जबह करते हैं। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अल्लाह का नाम कुराआन में 69 बार आया है जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आप अल्लाह के नज़दीक कितने महान थे।
जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम 80 वर्ष के हुये तो उन्होंने ने अल्लाह से प्रार्थना की, “हे भगवान, मुझे नेक बच्चा देना , फिर अल्लाह ने उन्हें अच्छी खबर दी,भगवान ने उनके साथ अपने रिश्ते का पहला परीक्षा लिया और कहा, “अपने बेटे और उसकी मां को एक निर्जन रेगिस्तान घाटी में छोड़ दो, जहां नहीं कोई इंसान , या फलदायी फल न उगता हो और न ही पीने के लिए पानी मौजूद हो। इब्राहीम ने अपने छोटे से परिवार को मक्का में छोड़कर चले आए। जहां अल्लाह ने इस छोटे परिवार पर अपनी रहमतों की बारिश की। जब इस्माइल युवावस्था की उम्र तक पहुंचे तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने सपने में देखा कि मैं अपने बेटे को अपने हाथों से ज़बह कर रहा हूँ। तो उन्होंने ने अपने बेटे के सामने इस ख़्वाब को बयान किया तो हज़रत इस्माईल ने कहा आप को जो कुछ भी आज्ञा दी गई है वह सब कर गुजरिये, आप मुझे उन लोगों में से पाओगे जो धीरज रखते हैं। ”
फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को लेकर मिना की ओर गये और माथे के बल लिटा कर जबह करने ही वाले थे कि अल्लाह की ओर से एक आवाज़ आई कि ऐ इब्राहीम तुम ने तो अपना ख्वाब सच कर दिखाया । फिर अल्लाह की ओर से एक मेंढ़ा आया जिस को आप ने जबह किया।
यह एक महान त्याग है, जिसके द्वारा हर साल लाखों जानवरों को अल्लाह का तकर्रुब हासिल करने के लिए जबह किया जाता है।
आज, हमारे कई मुस्लिम भाई जानवरों को ज़बह करेंगे । याद रखें कि अल्लाह के पास न तो मांस पहुंचता है और ना ही खून बल्कि अल्लाह के पास हमारा और आप का तक्वा पहुंचता है ।
कुर्बानी का गोश्त खुद भी खाएं रिश्तेदारों को भी खिलाएं । साथ ही साथ गरीबों को भी बाटें । अंत में उन्होंने ने कहा कि जिस तरह क़ुर्बानी के जानवर का गोश्त बेचने की अनुमति नहीं है, वैसे ही उसके चमड़े को बेच कर उसका पैसा अपने ऊपर इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं है। क़ुर्बानी के कुल चार दिन हैं ।
उसके बाद तमाम मुसलमानों के लिए दुआ की गई।
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