गुलज़ार अहमद, मैनपुरी (यूपी), NIT; हमारे देश को आज़ाद हुए लगभग 70 वर्ष पूरा होने वाला है, इस बीच कई सरकारें आयीं और गयीं, देश में कई बदलाव हुए, देश ने बैलगाडी से चलकर मेट्रो ट्रेन तक का सफ़र तय किया, देश में कई दिशाओं में बदलाव हुआ लेकिन आज तक सपेरा समाज मे कोई बदलाव नही हुआ है। सपेरा समाज के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के बिना भीख मांगकर या कचरा आदि बीनकर खुले मैदान में तंबू लगाकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। चाहे तपती धूप हो या बारिश की मार ये लोग बिना छत के रहने को मजबूर होते हैं। जब बारिश का मौसम आता है तो इन्हें जीवन यापन करने में बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है।एक तरफ़ जहाँ हमारा देश मंगल पर जीवन की कल्पना को साकार करने मे जुटा है वहीं दूसरी ओर बिडम्बना तो देखिए किसपेरा समाज के लोगों का आवास में रहने का सपना साकार नहीं हो पा रहा है और ये लोग लाचारी का जीवन जीने को मजबूर हैं। गरीबी और संसाधनों के अभाव में डेरा में रहने वाले बच्चे स्कूल जाने में असमर्थ हैं, इन बच्चों को पढाई से ज्यादा पेट भरने की चिंता रहती है।
सरकार से बुनियादी सवाल यह है कि आखिर 70 सालों में सरकार का ध्यान इस समाज के लोगों के दयनीय दशा पर क्यों नही गया? देश में विकास के नाम पर तमाम योजनाएं बनाई जाती हैं फ़िर भी इन लोगों की की स्थिति मेंसुधार क्यों नहीं हुआ ? क्यों यह समाज मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाया ? आखिर इनकी इस हालत का जिम्मेदार कौन है ???
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