ओवैस सिद्दीकी, अकोला (महाराष्ट्र), NIT; दाखले की तारीख करीब आते ही शालाओं द्वारा पालकों के जेब खाली करने का काम जारी हो जाता है। अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने की झुटी आन बान शान मेंपालक पिसे जा रहे हैं एवं संचालक अपनी जेबे भरने में सक्रीय हैं। शहर में मानो शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है। जाबजा दूकाने खूली हैं, अच्छी सुविधा के नाम पर आपसे मोटी रकम निकालने, जिला परिषद एवं नगर निगम के शालाओं में मूलभूत सूविधा का अभाव के कारण पालकों का कान्व्हेंट संस्कृती की ओर रूख बढाने लगा है। जिसकी वजह से शाला प्रवेश हेतू डोनेशन के रेट भी बढने लगे हैं। प्रति वर्ष डोनेशन में बढ़ोतरी हो रही है। शहर के कुछ मशहूर शालाओं में 40 से 60 हजार एवं कही-कही तो एक लाख रूपये तक डोनेशन लेने का गोरखधंदा जारी है। एैसे में गरीब पालक अपने बच्चे को अच्छी शाला में कैसे पढ़ाएं?
विद्या के नाम पर मोटी रकम मिलने की वजह से शहर के साथ-साथ ग्रामीण भाग में भी नर्सरी, कॉन्व्हेंट का बोला बाला ऩजर आ रहा है। पालकों की मानसीकता समझ कर शिक्षा संस्था संचालकों द्वारा डोनेशन व अन्य शिक्षा शुल्क के नाम पर पालकों की जेबे खाली की जा रही है। शिक्षा शुल्क पर नियंत्रण हो इस लिए विगत साल शासन ने शुल्क नियंत्रण कायदा निर्माण किया था। जिसके अनुसार निजी नर्सरी से कनिष्ठ महाविद्यालयों के शुल्क निर्धारण का अधिकार संस्था संचालक को न देते हुए पालक एवं शिक्षक संघ को दिया गया था। शिक्षा शुल्क बढ़ोतरी का प्रस्ताव संस्था चालकों को पालक एवं शिक्षा संघ के सामने रखना होता है तथा उनकी सहमती से शिक्षा शुल्क बढ़ाया जाता है लेकिन इसके विपरीत सभी अंग्रेजी सेमी अंग्रेजी शालाओं में पालक एवं शिक्षक संघ कागज में ही दबे रह गऐ हैं। संस्था संचालक हर साल 10 से 15 प्रतिशत शिक्षा शुल्क में बढ़ोतरी कर रहे हैं साथ ही शाला प्रवेश स्पर्धा निर्माण होने की वजह से डोनेशनकी रकम मे भी काफी बढ़ोतरी हुई है। शहर में कई शालाओं में तो प्रवेश शुल्क के साथ शिक्षा शुल्क भी पालकों पर लाद दिए हैं। इस मनमानी शुल्क वसूली में गरीब कहां जाए? अमीर तो शुल्क भर लेते हैं इसी के चलते शहर में हजारों बच्चे हर वर्ष शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं।
शुल्क नियंत्रण कानून साबीत हो रहा है नाकाम
शुल्क नियंत्रण कायदा अमल में आने के बावजूद पालकों से लूट रूक नही रही है। शुल्क नियंत्रण कायदा भंग करने वाले सरेआम सर उठाते नजर आ रहे हैं। शिक्षा विभाग आंखें बंद किए हुए है। शहर में नामांकित शालाओं द्वारा हर साला 10 से 15 प्रतिशत तक शिक्षा शुल्क वसूला जा रहा है। पालकों से लाखों रूपये अवैध रूप से वसूलने का गोरख धंदा जोरों से जारी है एवं जि.प शिक्षा विभाग मूक दर्शक बना हुआ है, एैसे में शिक्षा विभाग की खामोशी संदेह जनक है। कही एैसा तो नहीं कि शिक्षा अधिकारी की मिली भगत से शिक्षा शुल्क लगातार बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि शिक्षा अधिकारी कारवाई करने से परेज कर रहे हैं? आखीर शिक्षा विभाग मूक दर्शक क्यों है? क्या शिक्षा विभाग को संचालकों द्वारा कोई नजराना दिया जा रहा है जिसकी वजह से शिक्षा विभाग खामोश है? संस्थाओं द्वारा अधिकारियों को कारवाई न करने के एवेज में मोटी रकम पहुंचाए जाने की चर्चाए शिक्षा विभाग में ही जारी है।
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