वी.के.त्रिवेदी, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT;
एक समय वह था जब राक्षसराज रावण के चगुंल से अपहृत सीता जी को छुड़ाने और रामराज्य की स्थापना के लिए ईश्वर स्वरूप विष्णु भगवान को राम के रूप में अवतरित होना पड़ा था और भगवान श्रीकृष्ण को अपहृत सोलह सौ किशोरियों को बंधनमुक्त कराना पड़ा था। जिस रावण के बंधन से सीता जी को मुक्त कराने के लिए भगवान राम को रावण का वध करना पड़ा था उस रावण का चरित्र ऐसा था कि उसने सीता जी का अपहरण करने के बाद नारी अस्मिता से खिलवाड़ करने की जगह उसे राजभवन से दूर एक वाटिका में महिला बंदी रक्षकों के साथ रखा था। इतना ही नहीं बल्कि वह जब भी वहाँ पर जाता था तब अपनी पत्नी के साथ जाता था। उसने अपहृत सीता जी को एक माह का समय शादी करने के लिए सोचने के लिए दिया था। जिस समय सीता जी का अपहरण किया गया उस समय न वह किशोरी थीं और न ही वह अबोध बच्ची थीं बल्कि वह व्यस्क विवाहिता थीं। इस समय कलियुगी रावणों की संख्या बढ़ती जा रही है जो माह दो माह का समय सोचने के लिए नहीं देते हैं और न ही अपने से दूर रखकर नारी मर्यादा का सम्मान करते हैं बल्कि तुरंत इंसानियत को तार तार कर देते हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार के दो रुप होते हैं, एक जबरदस्ती अपहृत करके होता है और दूसरा किसी के देख लेने पर होता है। किशोरियों का भी यहीं हाल होता है और कुछ शहर व स्थान ही ऐसे होते हैं जहाँ पर किशोरियों का अपहरण कर लिया जाता है। किशोरी का अपने प्रेमी के साथ भाग जाना और पकड़े जाने पर बलात्कार का आरोप लगाना जोर जबरदस्ती की श्रेणी में नहीं आता है। इधर कुछ घटनाएं ऐसी सामने आ रही हैं जिन्हें सुनकर दिल दहल उठता है और मानवता चिल्लाने लगती है।
इस समय जम्मू कश्मीर के कठुआ और गुजरात के सूरत में हुई दो अलग अलग घटनाओं से पूरा देश क्षुब्ध है, क्योंकि यह दोनों घटनाएं इंसानियत को कलंकित कर सीता हरण और बलात्कार की परिधि से ऊपर है। किशोरी अथवा महिला सारी दुनियादारी जानती है लेकिन अबोध बच्ची इस दुनियादारी से दूर देवी स्वरूपा होती है, अगर बच्चियों के साथ कुछ गलत होता है तो वह रावण से अधिक दंडनीय अपराधिक कृत्य है। जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ साल तथा सूरत में बच्ची के साथ किया गया अमानवीय कुकृत्य अक्षम्य अपराध है और ऐसे लोगों को सरेआम तत्काल फाँसी पर लटका दिया जाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई बच्चियों के साथ पुनः ऐसी घिनौनी नीच हरकत करने की हिम्मत न कर सके। ऐसे लोगों को किसी भी दशा में न तो देव स्वरूप इंसान कहा जा सकता है और न ही राक्षस स्वरूप रावण ही कहा जा सकता है। कठुआ और सूरत में बच्चियों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया है वह निश्चित तौर पर हत्या और बलात्कार करने से कई गुना बड़ा अपराध है। सरकार को चाहिए कि बच्चियों के साथ होने वाले कुकृत्यों पर रोक लगाने के लिए एक विशेष चाइल्ड एक्ट बनाकर फाँसी का प्रावधान करे तथा ऐसा अमानवीय व्यवहार करने वाले हैवानों के साथ भी अमानवीय कृत्य करते हुए उन्हें तड़पा तड़पा कर सरेबाजार मारा जाना चाहिए। बच्चियों से रेप करना दिमागी पागलपन और दिवालियेपन का प्रतीक है। बलात्कार की परिभाषा परिभाषित करने का समय आ गया है क्योंकि महिला के आरोप मात्र लगाने पर आरोपी को बलात्कारी की श्रेणी में रखना उचित नहीं है।
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